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हिट फिल्म से चल पड़ी उमा शंकर की जिंदगी की गाड़ी

पंकज भारतीय/रजा मुराद सुपौल : सदर प्रखंड के सुखपुर निवासी मोहन प्रसाद सिंह के छोरे उमाशंकर सिंह ने गांव से भाया दिल्ली-मुंबई-माया नगरी का सफर तय कर साबित किया है कि कोसी की उर्वर भूमि में अपार संभावनाएं छुपी हुई है. आर्थिक रूप से निमA मध्य वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले उमाशंकर की माया […]

पंकज भारतीय/रजा मुराद
सुपौल : सदर प्रखंड के सुखपुर निवासी मोहन प्रसाद सिंह के छोरे उमाशंकर सिंह ने गांव से भाया दिल्ली-मुंबई-माया नगरी का सफर तय कर साबित किया है कि कोसी की उर्वर भूमि में अपार संभावनाएं छुपी हुई है. आर्थिक रूप से निमA मध्य वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले उमाशंकर की माया नगरी की यात्र संघर्षो से भरी है.
बावजूद लीक से हट कर सोच रखने वाले उमा शंकर ने हार नहीं मानी और अंतत: उमा शंकर के सोच को शोहरत मिली और अब निर्माता अरबाज खान और निर्देशक अभिषेक डोगरा की फिल्म ‘डॉली की डोली’ में कहानी लिखने के बाद उमा शंकर के कैरियर की डोली चल पड़ी.
बचपन से कुछ अलग था उमाशंकर
उमा शंकर सिंह ने मैट्रिक तक की पढ़ाई गांव में स्थित उच्च विद्यालय सुखपुर में किया. सहरसा एमएलटी कॉलेज से इंटर, बीएचयू से हिंदी स्नातक के बाद हिंदू कॉलेज से हिंदी में पीजी किया. उसके बाद जेआरएफ और नेट की परीक्षा पास की, लेकिन प्रधानाध्यापक बनने की बजाय उमाशंकर ने पहले पत्रकारिता को कैरियर बनाया. एक अखबार में बतौर उप संपादक कार्यरत रहा, लेकिन पत्रकारिता भी रास नहीं आयी और उमा शंकर ने वर्ष 2012 में मुंबई का रुख किया.
ग्रामीणों के अनुसार उमा शंकर का हिंदी भाषा पर बचपन से ही अच्छी पकड़ थी. यही वजह थी कि गांव में प्रति वर्ष होने वाले क्रिकेट टूर्नामेंट में वह स्थायी रूप से उद्घोषक की भूमिका अदा करता था.
संघर्षो से भरा रहा माया नगरी का सफर
उमा शंकर को माया नगरी में अचानक ही पहचान नहीं मिल गयी. वर्ष 2012 से लगातार संघर्ष में जुटे उमा शंकर को आर्थिक संकट के दौर से भी गुजरना पड़ा था. भाई गोपाल सिंह साफगोयी के साथ स्वीकार करते हैं कि हम चाह कर भी उमा की अधिक मदद नहीं कर पाये, लेकिन वह धुन का पक्का बचपन से ही था.
सुखपुर में है उत्सवी माहौल
‘डॉली की डोली’ जो कॉमेडी और रोमांस का मिश्रण है, की सफलता से ना केवल उमा शंकर के परिजन बल्कि गांव के लोग फुले नहीं समा रहे हैं. गांव में उत्सवी माहौल है. फिल्म रिलीज होने के बाद हर रोज गांव के दर्जनों लोग शहर के गंगा टॉकिज में फिल्म देखने पहुंच रहे हैं. गांव के राहुल सिंह ने फिल्म देखने के बाद कहा कि फिल्म की कहानी अच्छी है. मर्चेट नेवी में कार्यरत उमा शंकर के मित्र संजीत राम ने कहा कि मुङो आज अपने मित्र पर गर्व हो रहा है. वह बचपन से ही कुछ अलग था, जबकि गांव के मित्र कुंदन सिंह ने कहा कि बचपन से ही वह शुद्ध हिंदी बोलता था. उसकी इस सफलता से उसे आश्चर्य नहीं हो रहा है. पिता मोहन प्रसाद सिंह और माता आशा देवी ने कहा कि लोग तारीफ करते हैं तो अच्छा लगता है. हमें अपने सपूत पर नाज है.

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