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भूमि विवाद में बाबुओं व साहबों की भी होती है भूमिका

कटिहार: भूमि विवाद के निबटारे के लिए कई पहल की गयी, लेकिन आज भी स्थिति वैसी ही है, जैसे पहले थी. सिर्फ तरीके में बदलाव हुआ है. अब सीधे बेइमानी से भूमि पर कब्जा नहीं किया जाता, बल्कि बाबुओं के मार्गदर्शन व मिलीभगत से कागजी उलझन पैदा करके भूमि विवाद को जन्म दिया जाता है. […]

कटिहार: भूमि विवाद के निबटारे के लिए कई पहल की गयी, लेकिन आज भी स्थिति वैसी ही है, जैसे पहले थी. सिर्फ तरीके में बदलाव हुआ है. अब सीधे बेइमानी से भूमि पर कब्जा नहीं किया जाता, बल्कि बाबुओं के मार्गदर्शन व मिलीभगत से कागजी उलझन पैदा करके भूमि विवाद को जन्म दिया जाता है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने भूमि विवाद को समाप्त करने के लिए कोई पहल नहीं की है. समय व बदलते परिस्थितियों को देखते हुए कई नीतियां व कानून भी बने हैं. जिले में बढ़ते हुए भूमि विवाद पर प्रभात खबर की पड़ताल जारी है. प्रभात पड़ताल की चौथी किस्त यहां प्रस्तुत की जा रही है.
प्रभावी नहीं हैं सरकारी नीतियां : यूं तो भूमि विवाद के बढ़ते मामले को देखते हुए राज्य सरकार समय-समय पर कदम उठाती रही है, लेकिन बाबूगिरी की वजह से सरकारी पहल कामयाब नहीं हो रही है. जिले में दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं, जहां बाबुओं व भू-माफिया व बिचौलियों की मिलीभगत से भूमि विवाद को हवा मिली है. इन्हीं कारणों ने भूमि विवाद का सर्वाधिक मामला अदालत तक पहुंचता है. भूमि सुधार के लिए नीतीश कुमार ने बंदोपाध्याय कमेटी गठित की थी. इस कमेटी ने भूमि सुधार के लिए कई सिफारिशें की थी, लेकिन सरकार ने इस ठंडे बस्ते में डाल दिया. इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ने भूमि विवाद को सुलझाने के लिए थाना व अंचल स्तर पर परामर्श सभा आयोजित करने का निर्देश दिया. सरकार के निर्देश पर परामर्श सभा होती है.
परामर्श सभा में भूमि विवाद के मामले आते भी हैं, लेकिन बाबू व अधिकारियों की परंपरागत कार्य संस्कृति की वजह से परामर्श सभा प्रभावी नहीं हो पाती है.
दाखिल-खारिज में गड़बड़ी : जिले में पर्चाधारी व लाल कार्डधारी को भूमि पर दखल दिलाना प्रशासन के लिए चुनौती है. साथ ही आम लोगों के निजी भूमि विवाद भी इस जिले में कम नहीं है. निजी भूमि को लेकर उठे विवाद भी मारपीट व हिंसक झड़प का रूप ले लेते हैं. इसके पीछे भी भू-माफिया, बिचौलियों व बाबुओं की मिलीभगत ही है. एक भूमि की लगान रसीद दो व्यक्ति के नाम से काट देना. खतियान के आधार पर लगान रसीद काट देना तथा उस लगान रसीद व खतियान के आधार पर जमीन रजिस्ट्री हो जाना. ऐसे कई कारण हैं, जो भूमि विवाद को बढ़ा रहे हैं. दूसरी ओर सिटीजन चार्टर के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोक सेवाओं का अधिकार को बिहार में लागू किया. भूमि विवाद को समाप्त करने के लिए सरकार ने आरटीपीएस के तहत भूमि दाखिल खारिज को भी उसके दायरे में लाया. आरटीपीएस के तहत मोटेशन के लिए आवेदन करने वालों को निर्धारित अवधि में जांच-पड़ताल कर मोटेशन करना है, लेकिन जिले के आरटीपीएस में दाखिल-खारिज के मामले लंबित पड़े हैं. जानकार बताते हैं कि अगर आप बाबुओं से मिल कर मोटेशन के लिए आवेदन नहीं दिये, तो वह आवेदन रद्द हो जायेगा. बाबुओं की मरजी से मोटेशन के आवेदन को स्वीकृत व अस्वीकृत किया जाता है.
हल्का कचहरी में बिचौलिया हावी : लगान रसीद कटाने के लिए हल्का कचहरी में बिचौलियों को राजस्व कर्मचारी द्वारा बैठाया जाता है. सर्वाधिक पंचायतों में हल्का कचहरी में यही बिचौलिया हावी रहते हैं. यही बिचौलिया भू-माफिया को बाबुओं व साहबों से जोड़ता है. मोटे रकम पर जमाबंदी के साथ छेड़छाड़ कर दो-दो व्यक्ति को रसीद काट दी जाती है. यहीं से भूमि विवाद का जन्म होता है. जिले में कहीं भी चले जाइये, हर पंचायत में आमलोग यही कहते मिलेंगे कि जमीन का रसीद कटाना है, तो कर्मचारी से पहले बिचौलिया से मिलिये.
केस स्टडी – 01
स्थानीय निबंधन कार्यालय में जमीन रजिस्ट्री में किस तरफ फर्जीवाड़ा होता है. यह शनिवार को सहायक थाना में अजय कुमार द्वारा दर्ज करायी गयी प्राथमिकी से साफ हो गया. निबंधन कार्यालय के बाबू व भू-माफिया की मिलीभगत से फर्जी भूमि निबंधन का खेल हो रहा है. ऐसे कई मामले हैं, जिससे भूमि विवाद पैदा होता है जो खूनी संघर्ष व हत्या के रूप में सामने आता है.
केस स्टडी- 02
डंडखोरा अंचल अंतर्गत स्थानीय निवासी रामाशीष तिवारी ने वर्ष 1960 में जमीन खरीदी थी. वर्ष 1969 में उस जमीन का मोटेशन हुआ, तब से श्री तिवारी लगान रसीद कटाते रहे. इस बीच भू-माफिया ने खतियान के आधार पर कर्मचारी से मिलीभगत कर वर्ष 2011-12 में दूसरे व्यक्ति के नाम से लगान रसीद काट दिया. उसी रसीद व खतियान के आधार पर गुपचुप तरीके से वह जमीन तीसरे व्यक्ति को रजिस्ट्री हो गयी. जब जमीन रजिस्ट्री के बाद भूमि पर कब्जा करने गये, तब श्री तिवारी को यह सब पता चला. श्री तिवारी ने भूमि सुधार उपसमाहर्ता व अपर समाहर्ता तक गुहार लगायी. अपर समाहर्ता के पहल पर वर्ष 2010-11 में कटे रसीद को रोका गया.
कहते हैं एडीएम
अपर समाहर्ता अशोक कुमार झा ने कहा कि निबंधन एक्ट में कई खामियां हैं, जिसका लोग गलत उपयोग करते हैं. अगर कोई व्यक्ति गलत जमीन का रसीद कटता है, तो उसकी जांच कर कार्रवाई की जाती है. कई मामलों में कार्रवाई हुई है. दाखिल खारिज से संबंधित शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाती है. जमीन खरीदारी करते समय लोगों को अच्छी तरह जांच- पड़ताल कर लेनी चाहिए.

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