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सफायर कांड : शिक्षक माफ करें

अनुज कुमार सिन्हा रांची के सफायर स्कूल में एक छात्र विनय महताे की हत्या की घटना के बाद अखबाराें आैर टीवी ने अपने-अपने तरीके से कवरेज किया. पांच दिनाें तक मीडिया में सनसनीखेज तरीके से (अपवाद काे छाेड़ दें) खबरें छापी गयी या चैनल पर दिखायी गयी. प्रतिस्पर्द्धा के इस दाैर में खबराें में आगे […]

अनुज कुमार सिन्हा
रांची के सफायर स्कूल में एक छात्र विनय महताे की हत्या की घटना के बाद अखबाराें आैर टीवी ने अपने-अपने तरीके से कवरेज किया. पांच दिनाें तक मीडिया में सनसनीखेज तरीके से (अपवाद काे छाेड़ दें) खबरें छापी गयी या चैनल पर दिखायी गयी. प्रतिस्पर्द्धा के इस दाैर में खबराें में आगे रहने की हाेड़ ऐसी है कि सीमा आैर मर्यादा का भी ख्याल नहीं किया जाता.
राेज सीमाआें का उल्लंघन हाेता है, अतिक्रमण हाेता है. हम (प्रभात खबर) भी इससे अछूते नहीं रहे आैर इस दाैड़ में कुछ हद तक शामिल दिखे. कुछ अखबाराें ने कुछ शिक्षकाें के नाम छापे, तसवीरें भी छापी. उन शिक्षकाें की, उस शिक्षिका की भी, जिनका इस मामले से दूर-दूर का संबंध नहीं निकला.
बात यहीं तक नहीं ठहरी. मामलाें काे एेसे जाेड़ा गया, मानाे उन शिक्षकाें ने ही हत्या की है, जिनसे पुलिस ने पूछताछ की है. चार-पांच दिनाें में अधिकांश मीडिया की भूमिका एेसी दिखी, मानाे अदालत काेई फैसला सुना रही है. पांच दिनाें बाद जब रांची पुलिस ने खुलासा किया, ताे मामला ऑनर िकलिंग का निकला.
पुलिस ने खुलासा किया कि छात्र विनय की अपने स्कूल की ही एक छात्रा (जाे एक शिक्षिका की पुत्री है) से करीबी दाेस्ती थी, जाे छात्रा के भाई काे खलती थी. इसी कारण उसकी हत्या की गयी. हम मीडिया ने जिन शिक्षकाें काे एक तरह से दाेषी करार दे दिया था, पुलिस के अनुसार वे निर्दाेष हैं. साेचिए, जिन शिक्षकाें काे हम मीडिया के लाेगाें ने एक तरह से खबरें छाप-छाप कर प्रताड़ित किया, उन पर क्या बीत रही हाेगी.
उनकी मानसिक स्थिति क्या हाेगी. क्या उनकी खाेयी प्रतिष्ठा हम वापस करा पायेंगे. इस अंधदाैड़ में हम भी कुछ हद तक शामिल थे (हालांकि हमने काफी सतर्कता बरती, नाम छापने में धैर्य बरता था), इसलिए हमारा नैतिक दायित्व है कि हम उन शिक्षकाें से कहें – हमें माफ करें.
यह सामान्य घटना नहीं है. बाजार का दबाव अाैर एक-दूसरे काे नीचा दिखाने की हाेड़ में हम मीडिया के लाेग राेज कुछ न कुछ ऐसी खबरें छाप देते हैं, जाे जांच के बाद गलत निकलती है, झूठी साबित हाेती है. ऐसी खबरें कितनाें का जीवन प्रभावित कर चुकी हैं. ऐसी ही मीडिया ट्रॉयल के कारण लाेगाें में मीडिया की साख गिरी है. स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि एक बड़ा वर्ग मीडिया काे नफरत की नजर से देखने लगा है.
खबराें का दबाव आैर हाेड़ में ऐसी घटनाएं आगे भी घटने की आशंका बनी रहेगी. चार-पांच दिनाें तक अखबाराें आैर टेलीविजन ने इस घटना में शब्दाें का जिस तरीके से चयन किया, वह चिंता की बात है. कहीं लिखा गया कि ड्रील कर उसकी हत्या की गयी, कहीं लिखा गया कि याैनाचार की आशंका है, कहीं कपड़ाें पर धब्बे की बात कही गयी. सच कुछ आैर निकला.
हाे सकता है कि पुलिस की आेर से साफ-साफ कहने से इनकार करने के कारण मीडिया की दिशा गलत आेर चली गयी, लेकिन पाठक इसे नहीं मानेंगे. पाठकाें आैर दर्शकाें की नजर में हमारी (मीडिया की) की विश्वसनीयता ऐसी घटनाआें से घटेगी ही.
अखबाराें आैर टेलीविजन ने जिस सनसनीखेज तरीके से इस खबर काे लिखा-दिखाया, उससे पुलिस पर भी दबाव बढ़ा था. इसका खमियाजा उन बेकसूर शिक्षकाें काे भुगतना पड़ा. पुलिस कैसे पूछताछ करती है, यह काैन नहीं जानता. इन शिक्षकाें काे भी उस स्थिति का सामना करना पड़ा हाेगा. इन शिक्षकाें ने उस अपराध की सजा भुगती, जाे इन्हाेंने की ही नहीं. बेहतर हाेगा हम सब आगे से सचेत रहें, ताकि काेई दबाव में किसी निर्दाेष काे पकड़ा नहीं जाये. हमें यह अधिकार कतई नहीं है कि किसी का चरित्रहनन करें.
हम मीडिया (हम भी इसमें शामिल हैं) के सामने यह आत्ममंथन का वक्त है लेकिन सच काे स्वीकारने, कमियाें आैर गलतियाें का मानने से स्वस्थ पत्रकारिता का रास्ता खुलता है. मीडिया काे चिंतन करना हाेगा, समाज काे जागना हाेगा आैर एेसा माहाैल बनाना हाेगा, जिसमें अदालत से दाेषी करार देने के पहले किसी काे दाेषी न मान लें. इसलिए हम मीडिया काे इस घटना (कवरेज के तरीके के कारण) से सबक लेने की जरूरत है, ताकि पाठकाें आैर दर्शकाें की नजर में मीडिया (अखबार-चैनल) की विश्वसनीयता न सिर्फ बनी रहे, बल्कि साख भी बढ़े.

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