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लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप ने कहा- 99% विधायक-सांसदों को कानून बनाने में रुचि नहीं

एक बार तो 15 मिनट में नौ-नौ बिल पारित हुए रांची : लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप ने कहा कि कानून बनाना विधायकों या सांसदों का मूल कर्तव्य है. कानून जनहित में बने यह उनकी जिम्मेदारी है. कानून का पालन करना कार्यपालिका तथा इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है. इसी […]

एक बार तो 15 मिनट में नौ-नौ बिल पारित हुए
रांची : लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप ने कहा कि कानून बनाना विधायकों या सांसदों का मूल कर्तव्य है. कानून जनहित में बने यह उनकी जिम्मेदारी है. कानून का पालन करना कार्यपालिका तथा इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है. इसी व्यवस्था से शासन चलती है. इसके बावजूद 99 फीसदी विधायकों या सांसदों को कानून बनाने में कोई रुचि नहीं होती है. सदन में विधेयक पेश होने को गंभीरता से नहीं लेते हैं.
इसका एक कारण है कि कानून बनाने के लिए विधेयक सदन में भोजनावकाश के बाद पेश होते हैं. भोजनावकाश के बाद के सत्र में विधायकों की रुचि नहीं होती है. कई बार तो एेसी स्थिति भी आयी है कि गिन-चुने सदस्यों की उपस्थिति में सदन की कार्यवाही चली है. इस कारण कई बार महत्वपूर्ण विधेयक बिना विधायकों की जानकारी के कानून का रूप ले लेते हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कानून सरकार बनाती है, जबकि यह काम सदन का है. डॉ कश्यप बुधवार को विधायकों के लिए आयोजित विधायी प्रक्रिया संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम में बोल रहे थे. डॉ कश्यप ने विधेयक के उपस्थापन से लेकर कानून बनने तक की जानकारी दी.
अब मात्र 12 से 13 फीसदी समय ही जाता है कानून बनाने में : डॉ कश्यप ने कहा कि आजाद भारत के शुरुआती सालों में सदन का 50 फीसदी समय कानून बनाने में जाता था. आज तो मात्र 12 से 13 फीसदी समय ही कानून बनाने में जाता है. एक बार तो 15 मिनट में नौ-नौ बिल पारित हुए हैं.
नियम है कि बिल की कॉपी सात दिनों पहले सदन के सचिवालय को तथा दो दिन पहले सदन के सदस्यों को मिलनी चाहिए. इसका भी पालन नहीं होता है. ऐसा भी हुआ है कि रात में विधेयक टाइप हुआ है, सुबह में सदन में पेश कर दिया गया है.
राज्यपाल व राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद भी नहीं बना कानून : डॉ कश्यप ने कहा कि कई ऐसे भी उदाहरण भी है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद भी कानून नहीं बने हैं. कानून लागू गजट के प्रकाशन के बाद होता है. कई बार गजट का ही प्रकाशन नहीं हुआ है.
असल में विधायी प्रक्रिया में सुधारों की जरूरत है. विधेयक की ड्राॅफ्टिंग के समय ही विधायकों या सांसदों की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए.
खर्च की गुणवत्ता पर भी होनी चाहिए नजर : अमित खरे : योजना व वित्त विभाग के प्रधान सचिव अमित खरे ने विधायकों को बजट निर्माण की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि केवल खर्च ही महत्वपूर्ण नहीं है.
इसकी गुणवत्ता पर भी नजर होनी चाहिए. श्री खरे ने कहा कि बजट खर्च करने की अनुमति विधानसभा ही देता है. बिना सदन की अनुमति के राशि की निकासी नहीं हो सकती है. बजट बनाने से पूर्व राज्य को होने वाली आय का आकलन करना पड़ता है. केंद्र से मिलने वाली हिस्सेदारी का आकलन करना पड़ता है. पहले राज्यों को मिलने वाली ऋण की कोई सीमा तय नहीं थी. अब केंद्र सरकार ने तय किया है कि राज्य के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का तीन फीसदी ही लोन लिया जा सकता है.
अच्छा करने वाले राज्यों को यह सुविधा 3.5 फीसदी तक की गयी है. झारखंड को भी यह सुविधा प्राप्त है. खर्च योजना गैर योजना मद में होता है. कोशिश यह होती है कि योजना से गैर योजना मद कम हो. बजट से पूर्व इकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है. इसमें राज्य की आर्थिक दिशा पता चलती है. इस मौके पर पूर्व वित्त मंत्री प्रो स्टीफन मरांडी ने भी विचार रखा.
12वां मंत्री संवैधानिक बाध्यता नहीं : डॉ कश्यप : विधायक मनोज यादव द्वारा पूछे गये एक सवाल के जवाब में लोकसभा के पूर्व महासचिव ने कहा कि झारखंड में 12वां मंत्री संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
कम से कम 12 मंत्री होने चाहिए. इसकी आलोचना हो सकती है. इसके पक्ष में कहा जा सकता है कि यह अवैध नहीं है. क्योंकि 12 मंत्री हो और इसमें से किसी के त्याग पत्र दे देने या मृत्यु हो जाने से मंत्रिपरिषद गैरकानूनी नहीं हो जाता है. इस मौके पर कई विधायकों ने सवाल पूछे.

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