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रांची में 10 साल में समाप्त हो जायेगा भूमिगत जल!

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट, इसी तरह जारी रहा दोहन, तो कई शहरों व इलाकों में भी स्थिति चिंताजनक दीपक/उत्तम महतो रांची : सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट (2013-14) में इस बात का खुलासा हुआ है कि अगर इसी रफ्तार से भूगर्भ जल का दोहन जारी रहा, तो 10 साल में रांची […]

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट, इसी तरह जारी रहा दोहन, तो
कई शहरों व इलाकों में भी स्थिति चिंताजनक
दीपक/उत्तम महतो
रांची : सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट (2013-14) में इस बात का खुलासा हुआ है कि अगर इसी रफ्तार से भूगर्भ जल का दोहन जारी रहा, तो 10 साल में रांची में भूगर्भ जल खत्म हो सकता है.
ऐसी स्थिति में पानी का गंभीर संकट उत्पन्न हो जायेगा. यह स्थिति सिर्फ रांची की नहीं है. झारखंड के अन्य जिलों/क्षेत्रों में भी कमोबेश यही स्थिति है. रांची के कई इलाकों में बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के बाद तेजी से भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है. इससे तेजी से जलस्तर नीचे जा रहा है.
बोर्ड के सर्वे से पता चला है कि राज्य में हर वर्ष जलस्तर औसतन छह फीट कम होता जा रहा है. रिपोर्ट बताती है कि राज्य में औसतन 1400 मिमी बारिश होती है. इसके बाद भी भूमिगत जल दोहन का 4.46} पानी ही रिचार्ज हो पाता है.
बारिश के 80 फीसदी से अधिक पानी का संचयन राज्य में नहीं होता है. नतीजा, एक वर्ष में राज्य के कुओं का औसत जलस्तर 19 मीटर तक नीचे जा रहा है. सेंट्रल वाटर बोर्ड द्वारा वर्ष 2012 और 2013 में की गयी कुओं के जलस्तर की गणना के आंकड़े चौंकानेवाले हैं. रिपोर्ट बताती है कि इन दो वर्षो में राज्य के 39 फीसदी कुओं में पानी का स्तर लगातार कम होता गया.
दयनीय है शहरों का हाल : भूमिगत जल के स्तर के लगातार नीचे जाने से शहरों का हाल और अधिक बुरा है. शहरों की बढ़ती आबादी जरूरत के लिए बोरवेल करा रही है. अपार्टमेंट कल्चर में डीप बोरिंग के बिना काम नहीं होता. अपवादों को छोड़ दें, तो शहरों में भूमिगत जल को रिचार्ज किये जाने का काम न के बराबर होता है.
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने धनबाद और रामगढ़ को क्रिटिकल जोन के रूप में चिह्न्ति किया है. रांची, बोकारो, चास, जमशेदपुर, झरिया, गोड्डा के शहरी इलाके को सेमी क्रिटिकल जोन में रखा है. भूगर्भ जल के अत्यधिक दोहन से इन शहरी क्षेत्रों में गरमी शुरू होते ही जल स्नेत सूख जाते हैं. जलस्तर और ज्यादा नीचे चला जाता है.
झारखंड में सिर्फ 500 एमसीएम ही है पानी का भंडार
राज्य में भूगर्भ जल का भंडार मात्र 500 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) है. पहाड़ी इलाका होने के कारण झारखंड में होनेवाली बारिश का ज्यादातर पानी बह जाता है. औसतन हर साल राज्य में 1400 मिमी बारिश होती है.
बारिश का 80 फीसदी सरफेस वाटर और 74 फीसदी ग्राउंड वाटर बह जाता है. राज्य की भौगोलिक बनावट और भूमिगत जल के स्तर को रिचार्ज करने का इंतजाम नहीं होने के कारण 38 फीसदी क्षेत्र में सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है, जो भविष्य के भयावह होने के संकेत दे रहे हैं.
जलस्तर नीचे जाने के कारण
– रिचार्ज के परंपरागत स्नेत (जैसे तालाब, नाले, नदी, मैदान) बंद कर दिये गये
– कच्ची सड़कों की जगह पीसीसी पथ बन गये
– भवनों में शॉकपिट नहीं बनाये जा रहे
– वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा नहीं मिलता
– डीप बोरिंग के बाद रिचार्ज का इंतजाम नहीं होता
– बारिश के पानी को रोकने के लिए व्यवस्था नहीं
क्या है नुकसान
– पानी की राशनिंग करनी पड़ेगी
– दूषित जल के प्रयोग का असर स्वास्थ्य पर पड़ेगा
– विकास पर सीधा असर पड़ेगा राज्य में निवेश प्रभावित होगा उद्योगपति नहीं आयेंगे
– गांव के बाद शहरों से भी पलायन
सरकार ने क्या किये उपाय
– 2019 तक सरफेस वाटर जलापूर्ति बहाल करने व टय़ूबवेल कम करने का आदेश
– उच्च प्रवाही नलकूप और सामान्य इंडिया
मार्क-2 नलकूपों के निर्माण को प्राथमिकता
– आपदा राहत कोष से सभी प्रखंडों में पांच-पांच उच्च प्रवाही नलकूप स्थापित करने का आदेश
– वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा के लिए अनुदान
क्या है निदान
– छोटे घरों में भी शॉकपिट बने
– वाटर हार्वेस्टिंग
– पेड़-पौधों को लगायें व बढ़ायें
– पीसीसी सड़क पर रोक लगे

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