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जरूर कराएं ब्रेस्टफीडिंग, शिशु के विकास के लिए है जरूरी

कुछ रोगों, जैसे-निप्पल रिट्रैक्शन या फिर शिशु को बोतल की आदत लग जाने के कारण मां में दूध बनना कम हो सकता है. अत: ऐसे में शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराना बंद करने के बजाय तुरंत डॉक्टर से सलाह लेकर शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने का प्रयास करना चाहिए. डॉ अमित कुमार मित्तल सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी […]

कुछ रोगों, जैसे-निप्पल रिट्रैक्शन या फिर शिशु को बोतल की आदत लग जाने के कारण मां में दूध बनना कम हो सकता है. अत: ऐसे में शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराना बंद करने के बजाय तुरंत डॉक्टर से सलाह लेकर शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने का प्रयास करना चाहिए.
डॉ अमित कुमार मित्तल
सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी होली
फैमिली हॉस्पिटल, पटना
कई बार ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिनके कारण मां ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा पाती है. ऐसा किसी रोग के कारण या कुछ अन्य परिस्थितियों में संभव है. अत: ऐसी स्थितियों में तुरंत डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत होती है. ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा पाने की तीन अवस्थाएं हो सकती हैं –
यदि मां में दूध नहीं बन रहा हो
यदि मां को दूध नहीं बन पा रहा हो, तो इसे लैक्टेशन फेल्योर कहते हैं. यह कई कारणों से हो सकता है. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद जो गाढ़ा पीला दूध (कोलस्ट्रम) होता है, उसकी मात्रा कम होती है, क्योंकि उतनी ही मात्रा शिशु की भूख को मिटाने के लिए पर्याप्त होती है.
घरवाले इसे दूध का कम बनना समझ कर शिशु को अलग से गाय का दूध भी पिला देते हैं, जिससे उसका पेट भर जाता है और ब्रेस्टफीडिंग नहीं करता है. चूंकि ब्रेस्ट में शिशु की भूख और ब्रेस्टफीडिंग के अनुसार ही दूध बनता है, तो समय पर ब्रेस्टफीडिंग नहीं करने पर दूध का बनना कम होने लगता है. अत: मांओं को समय पर ब्रेस्टफीडिंग कराते रहना चाहिए. किसी घाव या कट होने की स्थिति में भी लैक्टेशन फेल्योर हो सकता है. ऐसे में घाव या कट का उचित उपचार कराना चाहिए. मानसिक तनाव या डिप्रेशन के कारण भी यह परेशानी हो सकती है. इस अवस्था में मां की काउंसेलिंग करानी जरूरी होती है.
कभी-कभी मां को प्रेग्नेंसी के दौरान पोषक तत्वों से भरपूर आहार नहीं मिल पाते हैं, इस कारण भी यह समस्या हो सकती है. अत: प्रेग्नेंसी के दौरान मां को पोषक तत्वों से भरपूर आहार मिलना चाहिए. यदि मां को कोई रोग जैसे-हाइपरटेंशन, किडनी या हृदय रोग हो, तो भी यह परेशानी हो सकती है. ऐसी अवस्था में तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ या स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए. वे इसके लिए कुछ उपाय कर सकते हैं. कई बार इसके लिए कुछ दवाइयों और व्यायाम की भी सलाह दी जाती है, जिससे कुछ लाभ होने की संभावना रहती है.
मां फीड नहीं करा पा रही हो
दूसरी अवस्था में मां में दूध तो बनता है, लेकिन वह फीडिंग नहीं करा पाती है. इसका एक सबसे आम कारण है, निप्पल रिट्रैक्शन या फ्लैट निप्पल. इसके कारण बच्चा निप्पल को पकड़ ही नहीं पाता है. इस कारण बच्चा ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर पाता है और इससे धीरे-धीरे ब्रेस्ट में दूध बनना भी कम होने लगता है. यदि यह समस्या हो, तो तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ या गायनेकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए. इस समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है.
उसके बाद मां आसानी से ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है. यदि मां प्रसव के बाद बेहोश हो गयी हो या आइसीयू में हो, तो भी वह ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा पाती है. हालांकि इस तरह के मामले कम होते हैं, लेकिन इस अवस्था में पंप की मदद से ब्रेस्ट मिल्क निकाल कर बच्चे को दिया जाता है. यदि मां को कैंसर या हाइपर थायरॉयड हो और उसकी दवाइयां चल रही हों, तो भी ब्रेस्टफीडिंग कराने से मना किया जाता है. कुछ मानसिक रोगों की दवाइयों के सेवन के दौरान भी ऐसी सलाह दी जाती है.
शिशु फीड नहीं कर पा रहा हो
तीसरी अवस्था में मां में दूध तो बनता है, लेकिन बच्चा फीड कर पाने में असमर्थ होता है. ऐसा आमतौर पर प्री-मेच्योर बेबी में होता है. मां को घबराना नहीं चाहिए और डॉक्टर की सलाह से उसे ब्रेस्टफीडिंग कराने का प्रयास करना चाहिए. कुछ रेयर केस में बच्चों में कुछ मेटाबॉलिक रोगों के कारण भी डॉक्टर ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराने की सलाह देते हैं. कुछ लोगों को भ्रम होता है कि सिजेरियन से डिलिवरी होने पर मां का दूध सूख जाता है. यह गलत है. ऐसा तभी हो सकता है, जब बच्चे को बोतल के निप्पल की आदत लग गयी हो या फिर मां का दूध ठीक से नहीं उतरा हो. अत: ऐसे में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
कम दूध होने के कारण
– देर से दूध पिलाना
– बोतल से दूध पिलाना
– पानी, मिश्री आदि देना
– छाती में दर्द या सूजन होना
– आत्मविश्वास की कमी
दूध बढ़ाने के उपाय
– जन्म के तुरंत बाद ही दूध पिलाना
शुरू करें
– बार-बार दूध पिलाएं
– मां में आत्मविश्वास जगाएं
मां को नहीं होता कैंसर
बच्चा जब छह माह का हो जाये, तब उसे सॉलिड डायट देना चाहिए, जैसे-खिचड़ी, दाल का पानी और उबला पानी आदि. मगर ध्यान रखें कि ब्रेस्टफीड कराना बंद न करें. इससे मां की भी सेहत बेहतर रहती है. जो मांएं दो साल तक बच्चे को स्तनपान कराती हैं, उनको स्तन कैंसर का खतरा कम होता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बच्चा इस उम्र में खाना भी खाता है, तो स्तनपान कैसे कराया जाये. इसके लिए जरूरी नहीं है कि दिन भर स्तनपान कराया जाये. कोशिश करें कि दिन में एक या दो बार स्तनपान जरूर कराएं. मांएं आजकल ब्रेस्ट पंप की मदद से ब्रेस्ट मिल्क स्टोर करती हैं. ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करती हैं, तो उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दें.
डॉ प्रभा रामकृष्ण, स्त्री रोग विशेषज्ञ, एसएकेआरए हॉस्पिटल, बेंगलुरु
मां को भी होता है फायदा
स्तनपान का फायदा सिर्फ बच्चे को ही नहीं, मां को भी होता है. प्रसव के बाद हर महिला का वजन बढ़ा हुआ रहता है. स्तनपान कराने से पोस्ट प्रेग्नेंसी का वजन कम करने में मदद मिलती है. रोजाना महिला स्तनपान करा कर 300 से 600 कैलोरी बर्न कर सकती है.
इससे वजन कम करने में मदद मिलती है. इसके अलावा महिला में प्रसव के पहले और बाद में कई बदलाव आते हैं जैसे हार्मोनल बदलाव, मूड स्विंग , चिड़चिड़ापन आदि. स्तनपान कराने से इन सबसे भी छुटकारा मिलता है. इसके अलावा अगर महिला स्तनपान करा रही है, तो इस दौरान गर्भधारण की संभावना भी कम हो जाती है.
छह माह दें सिर्फ मां का दूध
बच्चा जन्म के तुरंत बाद चौकन्ना रहता है. वह चारों ओर नजरें दौड़ाता है. मुंह खोल कर कुछ खाने की चेष्टा करता है. जन्म के बाद बच्चे को साफ कर मां के पास सुला देना चाहिए. इससे उसे मां के शरीर की गरमी मिलती है एवं मां के हृदय में बच्चे के लिए असीम प्यार उमड़ता है, तब परस्पर अपनेपन की भावना उमड़ती है एवं मां के दूध बनने की क्रिया शुरू हो जाती है. अत: जन्म के बाद शिशु को साफ कर मां के समीप लिटा देना चाहिए. दूध का बनना व निकलना दो अलग-अलग प्रक्रिया है. यह दो हॉर्मोन पर निर्भर करता है. दूध बनाने के लिए प्रोलेक्टिन व दूध निकालने के लिए आॅक्सिटोसिन नामक हॉर्मोन की जरूरत होती है.
मां जब दूध पिलाना शुरू करती है, तो दोनों हॉर्मोन रक्त में बनने लगते हैं. जितनी बार मां दूध पिलायेगी उतनी अधिक मात्रा में हॉर्मोन बनेंगे. जैसे ही मां दूध पिलाना शुरू करती है, इसकी सूचना स्नायु द्वारा मां के मस्तिष्क में पहुंचती है. बच्चा जितनी अधिक देर तक दूध पियेगा रसायन उतनी ही मात्रा में निकलेगा.
तनावमुक्त वातावरण, बच्चे के प्रति असीम स्नेह, दूध पिलाने की प्रबल इच्छा सभी दूध बनने में सहायक होते हैं. इसके विपरीत गुस्सा, चिड़चिड़ापन, तनाव आदि नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. प्रसव के बाद जो पहला दूध आता है उसे कोलस्ट्रम कहते हैं यह गाढ़ा एवं पीला रहता है, जो शिशु के लिए अत्यंत उपयोगी है. इसमें बहुत सारे जीवन रक्षक तत्व होते हैं एवं विटामिन रहते हैं, जोे शिशु को सारी उम्र अनेक रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसमें एक तत्व इम्यूनोग्लोबिन होता है, जो अपरिपक्व आंत पर परत बना कर उसे दमे व एग्जिमा जैसी बीमारी से बचाता है. अत: इसे प्रथम टीकाकरण भी कहते हैं.
क्यों जरूरी है छह माह तक सिर्फ स्तनपान
प्रथम छह माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए. इसका अर्थ है कि बच्चे को पानी, मिश्री, ग्लूकोज आदि दूसरा कोई आहार नहीं देना चाहिए. ये चीजें बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि-
– गरमी एवं बरसात के मौसम में दूध के अलावा पानी देने से दूध पीने की इच्छा खत्म हो जाती है और पानी से संक्रमण भी हो सकता है.
– दूसरा कोई भी पेय सफल स्तनपान में बाधक हो सकता है.
– छह माह तक केवल स्तनपान कराने से बच्चों के मस्तिष्क का संपूर्ण विकास होता है, जिससे बच्चा तेज बुद्धिवाला होता है.
– इससे दो बच्चों के जन्म में अंतर रखने में मदद मिलती है.
– यह माताओं में गर्भाशय एवं स्तन के कैंसर से बचाव करता है एवं खून की कमी के खतरे को कम करता है.
स्तनपान कराने के तरीके
सबसे पहले आरामदायक अवस्था में बैठना चाहिए. पीठ को सहारे से टिका लेना चाहिए.
शिशु को इस तरह लिटाएं कि उसका सिर और गरदन मां की बांह पर टिकी हो एवं सिर उसके शरीर से ऊंचा रहे. स्तनपान के समय बच्चों को अपने पेट से सटा लें. शिशु को कम-से-कम कपड़े पहनाएं. जिन महिलाओं को सिजेरियन से शिशु होता है, वे लेट कर भी दूध पिला सकती हैं. किंतु ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे का सिर थोड़ा उठा कर रखें, ताकि बच्चे के सरकने का खतरा कम रहे.
मां का दूध ही क्यों
– मां का दूध संपूर्ण आहार है, जिसमें सभी तरह के आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन एवं खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है.
– यह सस्ता एवं सुपाच्य है. डब्बे के दूध काफी महंगे हैं एवं बार-बार दूध बनाना कठिन होता है. साफ, सफाई में भी परेशानी होती है.
– यह शरीर के तापक्रम पर रहता है. इसे गरम या ठंडा करने की जरूरत नहीं पड़ती.
– यह सरलता से उपलब्ध है.
– मां के दूध में जीवन रक्षक तत्व रहते हैं, जो नवजात को कई गंभीर बीमारियों से बचाते हैं. ये रक्षक तत्व जीवन भर मनुष्य के रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं.
– दूध पिलाने से एक सुखद मातृ-शिशु संबंध बनता है, जो जीवन भर बना रहता है.
ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल
आजकल अकसर मांओं को बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद नौकरी और काम पर वापस जाना होता है. ऐसे में ब्रेस्ट पंप उनके लिए काफी मददगार साबित होता है. इसकी मदद से कामकाजी महिलाएं दूध स्टोर कर सकती हैं. इसके अलावा कई बार स्तन में दर्द कोई और दिक्कत होने पर भी इससे दूध निकालने में मदद मिलती है. मगर सबसे सही तरीका होगा कि मां खुद ही बच्चे को स्तनपान कराये.
ब्रेस्ट पंप के दूध को कैसे रखें
अगर ब्रेस्ट पंप की मदद से दूध स्टोर कर रही हैं, तो ध्यान रखें कि उसे जितनी जल्दी हो सके बच्चे को पिला दें. अगर स्टोर कर रही हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें. दूध को आठ घंटे तक ही सामान्य तापमान पर रखें. इससे ज्यादा देर अगर रखना है, तो उसे फ्रिज में रखें. फ्रिज में भी सिर्फ 24 घंटे तक ही रखा जा सकता है. दूध इस्तेमाल करने के पहले दूध की बोतल गरम पानी के बरतन में रख दें. दूध को न उबाला जाता है और न माइक्रोवेव में गरम किया जाता है.
(दीपा श्रीवास्तव की डॉ सैय्यद से बातचीत)

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