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आपके बच्चे का पोषण कौन चुरा रहा

अकसर मम्मियां शिकायत करती हैं कि मैं तो बच्चे के खाने-पीने का पूरा ध्यान रखती हूं, फिर भी उसके शरीर को कुछ लगता ही नहीं. दरअसल, यह शिकायत पेट में कीड़े की वजह से हो सकती है, जिसे पहचानने की जरूरत है. ज्यादातर छोटे बच्चों को कृमि का संक्रमण होता है, जिसके कारण ही उनका […]

अकसर मम्मियां शिकायत करती हैं कि मैं तो बच्चे के खाने-पीने का पूरा ध्यान रखती हूं, फिर भी उसके शरीर को कुछ लगता ही नहीं. दरअसल, यह शिकायत पेट में कीड़े की वजह से हो सकती है, जिसे पहचानने की जरूरत है. ज्यादातर छोटे बच्चों को कृमि का संक्रमण होता है, जिसके कारण ही उनका पोषण प्रभावित होता है. इससे उन्हें खून की कमी या एनीमिया भी हो सकता है. इसका इलाज आसान है. इसके उपचार पर पूरी जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
डॉ अमित कुमार मित्तल
सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी होली
फैमिली हॉस्पिटल, पटना
बच्चों के पेट में कृमि (वॉर्म) होने की समस्या काफी आम है. अधिकतर व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी-न-कभी इस रोग से जरूर ग्रसित होते हैं. कृमि के शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने के अलग-अलग लक्षण दिखते हैं.
आंतों में रहनेवाले वॉर्म : ये सबसे सामान्य कृमि हैं और इसके मामले सबसे अधिक आते हैं. ये कई प्रकार के होते हैं, जिनमें एस्केरिस (राउंड वॉर्म), पिन वॉर्म, हुक वॉर्म, ट्रिचुरा, स्ट्रॉन्गिलॉइड्स प्रमुख हैं. टेपवॉर्म के भी मामले देखने को मिलते हैं. ये मुख्यत: वैसे क्षेत्रों में ज्यादा होते हैं, जहां साफ-सफाई का अभाव होता है. संक्रमण इनके अंडों को निगलने या लार्वा के शरीर में प्रवेश करने से होता है.
लक्षण : लक्षण वॉर्म की संख्या पर निर्भर करते हैं. लार्वा के शरीर में प्रवेश करने के बाद लाल चकत्ते, खांसी, सांसों का तेज चलना, बुखार इत्यादि समस्याएं हो सकती हैं. आंत में जगह बनाने के बाद पेट दर्द, पेट फूलने, उल्टी, चिड़चिड़ापन, शरीर का कम विकास, खून की कमी, सूजन इत्यादि समस्याएं हो सकती हैं. बच्चों में यह काफी आम बात है. कृमि के संक्रमण से उनके मलद्वार में खुजली होती है.
इलाज : लक्षण एवं मल की जांच से पता चलता है कि वाॅर्म किस तरह का है. इसके लिए डॉक्टर की सलाह से एल्बेंडाजॉल दवा ली जा सकती है. इसके अलावा भी कई ऐसी दवाएं होती हैं, जो अलग-अलग वॉर्म पर असरकारी होती हैं. साथ में खून की कमी या विटामिन की कमी को भी दूर करना जरूरी होता है. सरकारी अस्पतालों में डीवॉर्मिंग की दवा मुफ्त में दी जाती है.
टेप वॉर्म : इसे फीता कृमि भी कहते हैं. यह बिना धुली सब्जी या गंदे हाथों से खाने के कारण प्रवेश करता है. यह शरीर के दूसरे भागों जैसे-दिमाग, आंख, मांसपेशियों इत्यादि में भी चला जाता है. दिमाग में अंडों के जाने के कारण न्यूरोसिस्टसरकोसिस नामक रोग हो जाता है. इसमें मिरगी का दौरा, सिरदर्द, उलटी आदि हो सकती है.
पहचान : लक्षण और दिमाग के सीटी स्कैन से इसका पता चलता है कि कृमि के अंडे दिमाग में हैं या नहीं.
इलाज : इसके लिए मुख्यत: एल्बेंडाजॉल एवं स्टेरॉयड दिया जाता है. एल्बेंडाजॉल लगातार 28 िदन तक दिया जाता है. इसका इलाज शिशु रोग विशेषज्ञ की देख-रेख में ही होना चाहिए. इस रोग के कारण होनेवाले दौरे का भी इलाज करना जरूरी है.
हाइडेटिड डिजीज : यह रोग एकिनोकोसिओसिस नाम के वार्म से होता है. ये कृमि बच्चों के मुंह से होते हुए लिवर या फेफड़े में चले जाते हैं. इनके कारण जहरीले टॉक्सिन से भरा एक सिस्ट बनता है, जो फट जाये, तो जान चली जाती है.
लक्षण : पेट में दर्द, पीलिया, छाती दर्द, खांसी, बलगम में खून, बुखार आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं.
पहचान : इस रोग का शक होने पर अल्ट्रासाउंड या एक्स-रे कराया जाता है. बाद में सीटी स्कैन या एमआरआइ से कंफर्म किया जाता है.इलाज : सर्जरी ही इसका उपचार है.
केस
आठ साल के बच्चे को उसकी मां इलाज के लिए लेकर आयी. मां ने बताया कि बच्चा खेलते-खेलते अचानक गिर गया और पूरे शरीर को ऐंठने लगा. उसे दौरा भी पड़ा. ऐसा दो बार हुआ. उसके बाद वह उसे जांच के लिए लेकर आयी थी. जांच के दौरान बच्चा एकदम ठीक था. बच्चे ने बताया उसे सिर्फ कभी-कभी सिर में दर्द होता था. मैंने तुरंत सीटी स्कैन कराने की सलाह दी. तब न्यूरोसिस्टसरकोसिस नाम के रोग का पता चला. उसका उपचार कई दिनों तक चला. अब वह बिल्कुल ठीक हो गया है. अब उसे दौरे नहीं आते हैं और सिर दर्द भी नहीं होता है. इसकी मुख्य वजह पेट में कृमि होना है.
कुपोषित बना सकते हैं पेट के कृमि
पेट में कीड़े होने पर इसके उपचार में देरी नहीं करनी चाहिए. यदि पेट में कीड़ों की संख्या बढ़ जाती है, तो उसके कारण शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है. इसके उपचार के लिए आयुर्वेद और होमियोपैथी में भी कई दवाइयां उपलब्ध हैं. आप अपनी इच्छानुसार दवाओं का चयन कर सकते हैं.
शरीर की क्षतिपूर्ति करता है आयुर्वेद
डॉ एस के अग्रवाल
एमबीबीएस, एमएस, वनौषधि, अमृता पारिवारिक स्वास्थ्य केंद्र, रांची
आयुर्वेद की कई पुस्तकों जैसे चरक संहिता में भी कृमि के बारे में अच्छी जानकारी दी गयी है. इसमें न सिर्फ कीड़ों के बारे में बताया गया है बल्कि उनका वर्गीकरण भी किया गया है. इन पुस्तकों में ऐसे कृमियों का वर्णन किया गया है, जो आंखों से नहीं दिखाई देते हैं. इनका तात्पर्य बैक्टीरिया से हो सकता है. क्योंकि बैक्टीरिया भी बहुत सूक्ष्म होते हैं, जो आंखों से नहीं दिखाई देते हैं. पेट के इन कृमियों से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. इसके लिए एलोपैथी में सबसे बढ़िया दवाई एल्बेंडाजॉल है. इसकी एक टेबलेट ही कीड़े को मारने के लिए काफी है. मगर एलोपैथी की दवाइयों से कीड़ों के कारण शरीर में हुई क्षति को ठीक नहीं किया जाता है. आयुर्वेद की सभी दवाइयां न सिर्फ कीड़ों को नष्ट करती हैं, साथ ही शरीर में हुए नुकसान की भी भरपाई करती हैं.
सिंदूरी : इसके फलों पर सिंदूर के रंग की परत होती है. इसी कारण इसे सिंदूरी कहा जाता है. इसका एक और नाम कामला भी है. यह टेप वॉर्म की खास दवा है. इसके दो-तीन डोज से ही कीड़े निकल जाते हैं.
पलाश के बीज : पलाश कहीं भी आसानी से मिल जाता है. इसके बीज जहरीले होते हैं. इससे उपचार करने के लिए पहले इसका शोधन करना पड़ता है. शोधन के बाद इसके इस्तेमाल से भी पेट के कीड़े आसानी से निकल जाते हैं. इसके अलावा कुम्हड़ा (कुष्मांड) के बीजों से भी इस रोग का उपचार किया जाता है. इसके बीजों को सुखाया जाता है और सुखाने के बाद उनका पाउडर बनाया जाता है. एक या दो ग्राम पाउडर के सेवन से ही सारे वॉर्म निकल जाते हैं.
वायबिडंग : यह भी कीड़ों को मारने की प्रमुख दवा है. कीड़ों को मारने के साथ ही यह लिवर फंक्शन को भी ठीक करता है, साथ ही भूख को भी बढ़ाता है.यह एलर्जी को भी दूर करता है.
दवाई कैसे करती है काम
दवाई का असर 24 घंटे में शुरू हो जाता है. इसके लिए दी जानेवाली एल्बेंडाजॉल टेबलेट को आंतों तक पहुंचने में कुछ घंटे का समय लगता है. यह दवाई आंतों में ही रहती है और कीड़ों को मार देती है. मरे हुए कीड़े मल से होकर बाहर निकल जाते हैं. हालांकि कीड़ों को समाप्त करने के लिए एक ही टेबलेट काफी है.
कुछ मामलों में इसे 15 दिनों के बाद भी दिया जाता है, ताकि इनके बचने की कोई आशंका न रहे. कीड़ों के कारण ही होनेवाले सरकोसिस रोग में एल्बेंडाजॉल को 28 दिनों तक लगातार दिया जाता है. कीड़े खत्म हुए हैं या नहीं इसे कंफर्म करने के लिए दोबारा स्टूल टेस्ट करा लिया जाता है.
– सात दिनों तक पपीते के 11 बीज रोज खाली पेट खाने चाहिए. छोटे बच्चों को पपीते के थोड़े ही बीज दें. गर्भवती महिलाओं को पपीते के बीज नहीं खिलाने चाहिए. – दो चम्मच अनार का जूस लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं. मगर इसे रोज कई दिन तक लेना पड़ता है.
– करेले के पत्तों का जूस निकाल कर उसे गुनगुने पानी के साथ पिलाएं. इस उपचार से बच्चों के पेट के कीड़े तुरंत ही मर जाएंगे. – 10 ग्राम नीम की पत्तियों का रस और 10 ग्राम शहद को एक साथ मिक्स करें और बच्चे को दें. – अजवाइन पाउडर और उतनी ही मात्रा में गुड़ को एक साथ मिक्स करके उनकी एक-दो ग्राम के टेबलेट बनाएं. इसे एक साफ जार में भर के रखें. इस टेबलेट को तीन से पांच साल के बच्चे को रोज तीन समय खिलाएं.
होमियोपैथी में उपचार
होमियोपैथी में भी कई ऐसी दवाइयां हैं, जो इसके कृमि को निकालने में काफी मददगार सिद्ध होती हैं.सिना : बच्चे को जब खूब भूख लगे, खूब चिड़चिड़ापन रहे. किसी का छूना बच्चे को जरा भी बरदाश्त नहीं हो. बच्चा जो भी सामान देखेगा, उसे मांगेगा, मगर उसे देने पर उसे फेंक देगा. खूब खाने के बाद भी वह कमजोर हो. कभी उसे कब्ज रहेगा या फिर शौच ढीला होगा. स्टूल में कॉर्न के जैसे पैच और आंव दिख सकते हैं. मलद्वार में तेज खुजली होगी. ये लक्षण दिखें, तो 30 शक्ति की दवा चार बूंद रोज सुबह दो हफ्ते तक दें.
क्यूप्रियम वेरा : मलद्वार में तेज खुजली होती हो, रात को बेड पर जाते ही बच्चा परेशान हो जाता हो. मलद्वार में कुछ काटने जैसा एहसास हो, तो 200 शक्ति की दवा चार बूंद सुबह-रात एक चम्मच पानी के साथ दें. इस दवा का उपयोग आमतौर पर थ्रेडवॉर्म के उपचार में किया जाता है.
सेंटोनिन : मलद्वार में खुजली होती हो, चिड़चिड़ापन रहे और बच्चा दांत कटकटाता रहे. उलटी के जैसा महसूस हो, मगर कुछ खाने के बाद महसूस होना बंद हो जाये. नाक में खूब खुजली होती हो. बच्चा हमेशा नाक में उंगली रखना पसंद करे, तब ‘2 एक्स’ पावर की यह दवा एक गोली सुबह और एक रात 15 दिनों तक दें.
नोट : बुखार या कब्ज हो, तब यह दवा न दें.
टेप वॉर्म : यह बहुत ही खतरनाक कृमि है. यह दिमाग तक भी पहुंच जाता है, जिसके कारण न्यूरोसिस्टसारकोसिस नाम का रोग हो जाता है. इस रोग के हो जाने पर फिलिक्स मास नाम की 200 शक्ति की दवा चार बूंद सुबह और चार बूंद रात में लें. इस दवाई को दो से तीन महीने तक लगातार लेना होता है.
– डॉ एसचंद्रा, होमियोपैथी विशेषज्ञ

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