पिपली का वानस्पति नाम पाइपर लोनगम है़ यह पाइपरेसी कुल का पौधा है़ इसका प्रयोग औषधि और गरम मसाला के रूप में होता है़ गरम मसाला में इसे पीपर के नाम से जाना जाता है़ विभिन्न भाषाओं में इसे भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है़.
उपयोगी भाग : तना, फल, मूल
संस्कृत : पिपली
मराठी : पिपली
हिंदी : पिपली, पीपल, पीर
तेलगु : पिपुल
अंगरेजी : लौंग पीपर
शीत ऋतु में लगता है फल
इसकी लता भूमि पर फैलती है या दूसरे वृक्षों के सहारे ऊपर उगती है़ पत्ते दो-तीन इंच लंबे, पान के पत्तों के समान होते है़ं पुष्प नर, पुष्पदंड एक से दो इंच लंबे व स्त्री पुष्पदंड डेढ़-एक इंच लंबे होते हैं. पुष्प वर्षा ऋतु में आते है़ं फल लंबे, पकने पर लाल, सूखने पर काले रंग के हो जाते है़ं फल शीत ऋतु में लगता है़ इसकी जड़ को पीपरा मूल कहा जाता है़
यह है आैषधीय उपयोग
यह कफवात जन्य रोगों में उपयोगी है़ इसका प्रयोग, सर्दी, खांसी, दमा, वात, कुष्ठ, अपचन, जॉन्डिस, जुकाम, श्वास रोग, पेट रोग, ज्वार, बवासीर और आमवात आदि में किया जाता है़ इसके फल को कच्ची अवस्था में प्रयोग करने पर ज्वर, कफ और श्वास रोग से राहत मिलती है. गुड़ के साथ लेने पर यह ज्वर व अग्निमाध में लाभकारी है़ चूर्ण को सोंठ चूर्ण, सरसों के तेल, छाछ और दही के साथ मिलाकर मलहम तैयार किया जाता है़ यह दर्द व गठिया में लाभकारी है़
अनिद्रा : इसकी जड़ का चूर्ण दो ग्राम गुड़ के साथ प्रयोग किया जाता है़
दांत निकलना : बच्चों के दांत निकलते समय पिपली के बारीक चूर्ण को दिन में दो बार मसूड़ों पर मालिश करने से दांत सुगमता से निकलता है़
दर्द : शरीर के दर्द को दूर करने के लिए पांच-छह वर्ष पुरानी जड़ के चूर्ण (एक से तीन ग्राम) का प्रयोग किया जाता है.
श्वास रोग : 20 ग्राम पिपली को पानी में उबाल कर काढ़ा बनाया जाता है़ जब पानी आधा बच जाये, तब इसे ठंडा कर दिन में तीन-चार बार इसका प्रयोग किया जाता है़
ज्वर: पिपली के चूर्ण को गुड़ के साथ मिला कर दिन में दो बार प्रयोग किया जाता है़ इसका काढ़ा शहद के साथ प्रयोग करने से ज्वर ठीक होता है़
अपच, गैस : इसके चूर्ण को सेंधा नमक व छाछ के साथ मिला कर उपयोग किया जाता है़
नीलम कुमारी
टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड