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झारखंडियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहेंगे टेकलाल महतो

हजारीबाग: झारखंड में स्व टेकलाल महतो की छठी पुण्यतिथि मनाने की तैयारी चल रही है. 27 सितंबर को उनके पैतृक क्षेत्र विष्णुगढ़ में मुख्य समारोह होगा. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, विधायक जयप्रकाश भाई पटेल समेत कई सांसद व विधायक शामिल होंगे. एनी होरो, विनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन के साथ टेकलाल महतो […]

हजारीबाग: झारखंड में स्व टेकलाल महतो की छठी पुण्यतिथि मनाने की तैयारी चल रही है. 27 सितंबर को उनके पैतृक क्षेत्र विष्णुगढ़ में मुख्य समारोह होगा. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, विधायक जयप्रकाश भाई पटेल समेत कई सांसद व विधायक शामिल होंगे. एनी होरो, विनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन के साथ टेकलाल महतो झारखंड आंदोलन में शुरुआत से अंजाम तक साथ रहें, साथ ही वे कई बार जेल गये.

झारखंड में नाकेबंदी, सड़क जाम, धरना-प्रदर्शन, जेल भरो कार्यक्रम का नेतृत्व करते रहे. आंदोलन व संघर्ष के सभी मोर्चों पर हाथ में झंडा लिए हमेशा आगे चलते थे. कंधे पर हरा गमछा उनकी पहचान बन गयी थी. झारखंड की संस्कृति व पार्टी के झंडे के प्रतीक उनकी सादगी थी. गरीब अमीर में कभी फर्क नहीं करते थे. विष्णुगढ़ स्थित झोपड़ी वाले घर में हमेशा रहते थे. जनता जब भी उनके घर आती. वे उनसे मिलते थे.

संत कोलंबा से की छात्र आंदोलन की शुरुआत: टेकलाल महतो 1964 में संत कोलंबा कॉलेज हजारीबाग में पढ़ाई के दौरान छात्र आंदोलन में सक्रिय हुए. एक माह, चार दिन तक जेल में भी रहना पड़ा. केंद्रीय कारा हजारीबाग में बेहतर सुविधा की मांग को लेकर जेल के अंदर भूख हड़ताल में बैठ गये, तत्कालीन जेलर नूर साहब की पहल पर सदर एसडीओ की अध्यक्षता में भूख हड़ताल समाप्त हुई. छात्र आंदोलन में एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए.
रेंजर व फॉरेस्टर के खिलाफ गांव में नगाड़ा बजवाया: टेकलाल महतो किसानों, मजदूरों व गांववालों के लिए हमेशा आंदोलनरत रहे. वन विभाग के रेंजर व फॉरेस्टर के जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद किया. उस समय जंगल में घुसने वाले ग्रामीणों को वन अधिकारी पकड़ लेते थे. मुर्गी व खस्सी ग्रामीणों से वसूली आम बात थी. जमीन के मालिक रैयतों व वन भूमि के बीच कोई डिमारकेशन नहीं था. गांववाले जिस जमीन पर खेती करते थे. वन अधिकारी वहां आकर उसे वन भूमि बता कर ग्रामीणों को परेशान करते थे.

इसके विरुद्ध ग्रामीण आंदोलित हुए. टेकलाल महतो के नेतृत्व में गांव में ढोल व नगाड़ा पीटा गया. रेंजर फॉरेस्टर को गांव में घुसने से रोकना है. मुर्गा व खस्सी कोई गांववाला नहीं देगा. गांववालों ने जंगल की सुरक्षा का जिम्मा लिया. गांव वाले तीर धनुष उठा लिये. इस आंदोलन का व्यापक असर हुआ. जंगल में नगाड़ा बजते ही वन अधिकारी भाग जाते थे.

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