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हौसले की उड़ान : शिक्षा के बूते सारे जहां के अंधेरे से लड़ रही अनु

रामरतन शाही उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की है परीक्षार्थी गोपालगंज : अक्सर पढ़ाई छोड़ने के पीछे अभिभावक और स्वयं बेटियां भी कई परिस्थितियां गिनाती हैं, लेकिन सदर प्रखंड के जादोपुर दियारा क्षेत्र की एक बेटी ऐसी भी है, जो तमाम परिस्थितियों को पछाड़ते हुए पढ़ रही है. यह है चतुर बगहा गांव की अनु कमारी. इससे […]

रामरतन शाही उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की है परीक्षार्थी

गोपालगंज : अक्सर पढ़ाई छोड़ने के पीछे अभिभावक और स्वयं बेटियां भी कई परिस्थितियां गिनाती हैं, लेकिन सदर प्रखंड के जादोपुर दियारा क्षेत्र की एक बेटी ऐसी भी है, जो तमाम परिस्थितियों को पछाड़ते हुए पढ़ रही है. यह है चतुर बगहा गांव की अनु कमारी. इससे विकट न तो किसी की परिस्थितियां हो सकती हैं और न ही पारिवारिक स्थिति. फिर भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी और हौसले के बूते आगे बढ़ रही है. एमएम उर्दू परीक्षा केंद्र पर इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रही छात्रा अनु नेत्रहीन है.
पिता इस दुनिया में नहीं हैं. पांच बहनों में सबसे छोटी अनु की दोनों आंखें बचपन से ही 90 प्रतिशत खराब हैं. परिवार में एक-दूसरे की लाठी पकड़ने वाला भी कोई नहीं है. कल्पना कीजिए, इस परिस्थिति में एक बेटी पढ़ाई की ठान लेती है और 10वीं के नतीजों में बेहतर अंक से उत्तीर्ण हो जाती है, तो इसे विकट परिस्थिति में संघर्ष का बड़ा उदाहरण ही कहा जायेगा. चतुर बगहां गांव की
रहनेवाली अनु ने जिस घर में जन्म लिया, तब से ही परिस्थितियों से संघर्ष जारी है. परिवार में पढ़ाई से दूर-दूर तक किसी का नाता नहीं था. गांव में कुछ दिन परिवार के अन्य सदस्य पढ़ने गये भी तो बच्चों के चिढ़ाने या अन्य कारणों से लौट आये. अनु ऐसे ही माहौल में विद्यालय पहुंच गयी. उसने अक्षर ज्ञान सीखा तो लगा कि दुनिया में बहुत कुछ है, जिसे वह केवल पढ़ाई के जरिये ही जान सकती है.
घर से पैदल स्कूल तक जाना और आना : रोज किसी सहपाठी का साथ करना, जो उसे घर तक ले आये, लेकिन अनु नहीं हारी. न दूरी की चिंता की और न ही असुरक्षा का कोई भाव. रामरतन शाही उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में इंटर की पढ़ाई करने अनु आयी, तो उसे लगा जैसे उसके सपने साकार हो सकते हैं, फिर तो उसने पढ़ना शुरू कर दिया. अनु कुमारी ने बताया कि आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए एक बेहतर शिक्षिका बनने का उसका लक्ष्य है. अब गांव में लोग उसका उदाहरण देकर बेटियों को कह रहे हैं कि अनु पढ़ सकती है, तो तुम भी कुछ करो और आगे बढ़ो.
अनु आगे पढ़ेगी और पढ़ायेगी : अनु कहती है कि वह अब भी आगे पढ़ेगी. स्नातकोत्तर या बीएड करके शिक्षक बनेगी और फिर अपने जैसे ही नि:शक्तों को पढ़ायेगी. वह कहती है कि बेटियां यह सोच कर स्कूल नहीं छोड़ें कि परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं या उन्हें कष्ट सहना पड़ रहा है. वह कहती है कि शिक्षा ने उसे नयी जिंदगी दी है. उसकी आंखों में सपने पलने लगे हैं.
वह खुद को सक्षम महसूस करती है.
नेत्रहीन छात्रा दे रही इंटरमीडिएट की परीक्षा
बेटियों के लिए मिसाल है अनु
हम इस बेटी की दूसरों को मिसाल देते हैं. गांव की यह बेटी न केवल पढ़ती है, बल्कि सांस्कृतिक एवं रचनात्मक कार्यों में भी आगे रहती है. बेटियों को पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए. इसके लिए सभी लोग मिल कर संकल्प करें और अनु का उदाहरण दें.
उमाशंकर मिश्र, प्रधानाध्यापक, रामरतन शाही प्लस-टू स्कूल

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