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जीडीपी के खराब आंकड़ों के बाद क्यों नहीं थम रही है सरकार की मुश्किलें

नयी दिल्ली : नोटबंदी और जीएसटी के बाद मंदी की मार झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की घबराहट साफ नजर आ रही है. अंदरखाने से आ रही खबर के मुताबिक सरकार कोई राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है. कल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारतीय बैंक संगठन के 70 वें वार्षिक आम […]

नयी दिल्ली : नोटबंदी और जीएसटी के बाद मंदी की मार झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की घबराहट साफ नजर आ रही है. अंदरखाने से आ रही खबर के मुताबिक सरकार कोई राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है. कल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारतीय बैंक संगठन के 70 वें वार्षिक आम सभा बैठकों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हमारे पास दो बड़ी चुनौतियां हैं – निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना और बैंकों के एनपीए की समस्या.

क्या है एनपीए
एनपीए को सामान्य उदाहरण से समझा जा सकता है. कोई शख्स एक समोसा दुकान चलाता है. हर दिन आने वाले 100 ग्राहकों में पांच ग्राहक पैसे उधार रख लेते हैं. धीरे – धीरे यह रकम वापस नहीं आता है. एक वक्त के बाद जब इसके वापस लौटने की संभावना क्षीण हो जाती है तो इसे एनपीए करार दिया जाता है. अनुमान के मुताबिक बैंकों का 100 रुपये में पांच रूपये 30 पैसा कर्ज में डूब चुका है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने गंभीर चुनौती
अर्थशास्त्री भी बैंकों के एनपीए और निजी निवेश में कमी को मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती मान रहे हैं. बताया जाता है कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी एनपीए को बड़ा चुनौती माना था लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ ठोस उपाय नहीं किये. आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के अध्यापक मनोज पांडेय के मुताबिक रघुराम राजन के सख्त रवैये से बैंकों से कर्ज देने वाला और कर्ज लेने वाले दोनों डर गये. एनपीए की मार से पहले से ही जूझ रहे बैंक सहम गये थे. धीरे – धीरे उद्योगपत्ति कर्ज लेने से परहेज करने लगे. लिहाजा बाजार में निजी निवेश की कमी हो गयी है. शोर तो काफी मचा लेकिन इसके लिए कोई ठोस उपाय किये नहीं गये.
राहत पैकेज की तैयारी
पिछले तिमाही के नतीजे के बाद सरकार के सामने अब संकट खड़ा हो गया है. जीडीपी 5.7% आकर तीन साल के सबसे नीचे स्तर पर आ गया है. सरकार इस संकट से निबटने के लिए राहत पैकेज लाने की तैयारी कर रही है. अर्थशास्त्री राहत पैकेज की बात को गलत फैसला बताते हैं. राहत पैकेज की बजाय इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने की सलाह दी जाती है.
अगले तिमाही आ सकते हैं अच्छे नतीजे
अगले तिमाही से जीडीपी के अच्छे नतीजे आ सकते हैं. फेस्टिव सीजन की वजह से बाजार में गतिविधि तेज होगी. दीपावली और दुर्गापूजा तक एक महीने से लंबे समय से चलने वाले उत्सव के बाद बाजार में सुस्ती का माहौल खत्म हो सकता है. वहीं तब तक सरकार अगर जीएसटी को आम कारोबारियों के लिए सहज बनाये जाये तो अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर चढ़ सकती है.

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