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सिख आतंकवाद के खिलाफ पोस्टर ब्वॉय बने थे केपीएस गिल

नयी दिल्ली :बेहद कड़ाई के साथ पंजाब से उग्रवाद का खात्मा करनेवाले चर्चित पुलिस अधिकारी केपीएस गिल का 82 वर्ष की अवस्था में गुर्दा संबंधी बीमारी के कारण शुक्रवार को निधन हो गया. पंजाब में जब उग्रवाद अपने चरम पर था, उस दौरान दो बार प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे गिल को सुरक्षा मामलों में […]

नयी दिल्ली :बेहद कड़ाई के साथ पंजाब से उग्रवाद का खात्मा करनेवाले चर्चित पुलिस अधिकारी केपीएस गिल का 82 वर्ष की अवस्था में गुर्दा संबंधी बीमारी के कारण शुक्रवार को निधन हो गया. पंजाब में जब उग्रवाद अपने चरम पर था, उस दौरान दो बार प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे गिल को सुरक्षा मामलों में बेहद अनुभवी माना जाता था. यहां तक कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी छत्तीसगढ़ और गुजरात सरकारों ने उनकी सेवा ली थी.कंवरपाल सिंह गिल का का जन्म पंजाब के लुधियाना में वर्ष 1934 में हुआ था.

उनकी कार्यशैली के कारण उन्हें शेर-ए-पंजाब, सुपरकॉप आदि कई संज्ञाएं मिल चुकी हैं. प्रशासनिक सेवा में उनके योगदान और बेहतरीन कार्य को देखते हुए उन्हें केंद्र सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा.सिख आतंकवाद के खिलाफ पंजाब में पोस्टर ब्वॉय भी बने. आइए उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालें.

केपीएस गिल असम के भी पुलिस महानिदेशक रहे हैं. पुलिस सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद श्रीलंका ने वर्ष 2000 में लिट्टे के खिलाफ जंग के दौरान उनके अनुभवों का लाभ लिया था.स्पष्टवादी और आगे बढ़ कर नेतृत्व करनेवाले साहसी पुलिस अफसर गिल 1988 से 1990 तक और फिर 1991 से 1995 में अपनी सेवानिवृत्ति तक पंजाब के पुलिस प्रमुख रहे. उन्हें पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद की कमर तोड़ने और अंतत: उसे जड़ से उखाड़ने का श्रेय जाता है.

गिल की सबसे बड़ी उपलब्धि मई 1988 में उनके नेतृत्व में हुए ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ को माना जाता है. इस अभियान के तहत अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छुपे उग्रवादियों पर कार्रवाई की गयी थी. यह अभियान बेहद सफल रहा था, क्योंकि इस अभियान के दौरान 1984 के सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के मुकाबले गुरुद्वारे को बहुत कम नुकसान पहुंचा था. ऑपरेशन ब्लैक थंडर में करीब 67 सिख आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया था और 43 मारे गये थे. गिल के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के दौरान पंजाब पुलिस पर मानवाधिकार उल्लंघनों के कई आरोप लगे.

वहीं, गुजरात के 2002 दंगों के बाद केपीएस गिल को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था. दंगों के करीब दो महीने बाद नियुक्त हुए गिल ने पंजाब से विशेष रुप से प्रशिक्षित दंगा-निरोधी 1,000 अतिरिक्त पुलिसकर्मियों की तैनाती का अनुरोध किया था. उन्हें हिंसा पर काबू पाने का श्रेय दिया जाता है.

नक्सलवादियों से निबटने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने 2006 में उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया. हालांकि, उनका यह कार्यकाल पंजाब जैसा सफल नहीं रहा. क्योंकि, 2007 में नक्सल हमले में 55 पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे.

गिल कई वर्षों तक भारतीय हॉकी फेडरेशन के प्रमुख भी रहे. हालांकि, उनका यह कार्यकाल विवादों से घिरा रहा. इस दौरान 2008 में फेडरेशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसके बाद इंडियन ओलिंपिंक एसोसिएशन ने फेडरेशन को निलंबित कर दिया था.

इस चर्चित पुलिस अफसर के करियर पर यौन उत्पीड़न का भी दाग है. उन पर 1988 में एक पार्टी के दौरान महिला केे यौन उत्पीड़न का आरोप लगा और 1996 में उन्हें दोषी करार दिया गया.

गिल भारतीय पुलिस सेवा के 1958 बैच के असम और मेघालय कैडर के अधिकारी थे. उन्हें प्रतिनियुक्ति पर पंजाब भेजा गया था.

केंद्रीय मंत्री सांपला ने कहा, ‘‘वह अपनी बहादुरी और साहस के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने हमेशा आगे बढ़ कर नेतृत्व किया और लोगों को प्रेरित किया.’ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी पद्मश्री से सम्मानित पुलिस अफसर गिल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

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