-अनुज सिन्हा-
(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर)
टीम इंडिया वर्ल्ड कप से बाहर हो गयी है. एक झटके में कप जीतने का सारा सपना टूट गया. सवा अरब लोगों की दुआएं, मंदिरों में पूजा-पाठ कोई काम नहीं आया. हार भी सामान्य नहीं, बुरी हार हुई. 95 रनों से हार. अब लाख कहते रहें कि बेहतरीन टीम जीती, हमने गलतियां की, कुछ नहीं होनेवाला. सच यही है कि 329 रन बना कर भी भारतीय टीम जीत सकती थी.
ऐसे आसार बन गये थे लेकिन बल्लेबाजों की शुद्ध लापरवाही ने टीम इंडिया की दुर्गति करायी. टॉस महत्वपूर्ण था. धौनी हार गये. टॉस पर किसी का वश नहीं चलता. भारत 25 फीसदी मैच तो टॉस हारते ही हार गया था. फिर दूसरे विकेट के रूप में जब फिंच और स्मिथ ने 182 रन की साझेदारी कर ली तो मैच भारत के हाथ से निकल चुका था. ऐसा लग रहा था कि ऑस्ट्रेलिया की टीम 350-360 रन बना लेगी. लेकिन गेंदबाजों ने वापसी दिलायी. हां, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को हड़काने के लिए शमी, उमेश यादव यहां तक कि मोहित शर्मा ने भी शॉटपिच गेंदें कीं और खुद की फजीहत करायी.
कुछ में जरूर विकेट मिले. मैक्सवेल को चलने नहीं दिया. अंतिम क्षणों में जानसन और फॉकनर नहीं चले होते तो स्कोर तीन सौ के आसपास होता. तब स्थिति अलग होती. जानसन ( 9 गेंद, 27 रन) और फॉकनर (12 गेंद, 21 रन) ने उस कमी की भरपाई कर दी जो मध्यक्रम के बल्लेबाजों के असफल होने से हुई थी. 328 का स्कोर कम नहीं होता. उसके बावजूद विकेट को देखते हुए भारत के लिए यह असंभव नहीं था.
ऐसी बात नहीं थी कि भारत जीत नहीं सकता था. भारत ने 13 बार वनडे में 300 रनों का पीछा करते हुए मैच जीता है लेकिन कुछ को बड़ी पारी खेलनी पड़ती है. आज आरंभ में रोहित शर्मा और धवन का कैच भी छूटा था. दोनों ने 12.5 ओवर में 76 रन बना लिये थे. जीत का आधार बन चुका था. अगर बगैर जोखिम लिए वे इसी प्रकार खेलते रहते तो काम आसान हो गया होता. यहां जमने के बावजूद धवन ने ज्यादा आक्रामकता दिखायी, विकेट गवां दिया. लेकिन उन्होंने अपना काम कर दिया था. आगे का काम करना था विराट कोहली को. टीम को बड़ा भरोसा था. आरंभ से ही परेशान दिखे. गेंदबाजी में बहुत दम नहीं था. विकेट भी अच्छा खेल रहा था पर कोहली नहीं चल रहे थे. लगा कि ध्यान कहीं और है. 13 गेंदों पर एक रन बना कर लापरवाही भरा शॉट खेल कर वे चलते बने. सच कहा जाये तो भारत यहीं मैच हार गया. कोहली का विकेट गिरने के बाद टीम इंडिया संभल नहीं सकी.
जब रोहित और धवन खेल रहे थे, टीम इंडिया हावी थी और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी भयभीत थी, उनके चेहरे पर तनाव था. कोहली के आउट होते ही सारा खेल पलट गया. फिर रोहित गये. उसके बाद तो आने-जाने का सिलसिला चल पड़ा. रैना विकेट के पीछे लपके गये. हां, अंतिम क्षणों में धौनी ने कुछ शॉट खेल कर , कुछ छक्के मार कर दर्द को कम करने का प्रयास किया. जो टीम इंडिया लगातार सात मैच जीत चुकी थी, हर टीम को आउट किया था, आज मात खा गयी. सारे रिकार्ड धरे के धरे रह गये. अब आरंभ होगा दोषारोपण का.
कमियां निकाली जायेंगी लेकिन कोई फायदा नहीं होगा. इस वर्ल्ड कप में जडेजा को बहुत मौका मिला, लेकिन वे न तो गेंद से और न ही बल्ले से सफल हुए. एक मैच को छोड़ दिया जाये तो कोहली असफल रहे. शमी असफल रहे. इन तमाम बातों के अलावा अगर भारतीय बल्लेबाजों ने ओपनिंग जोड़ी के काम को आगे बढ़ाया होता, जोश की जगह होश से काम लिया होता, अनुभव दिखाया होता तो भारत फाइनल खेलता. यह खेल है. अगर आप तय कर लें कि विकेट फेंकनी है, हारना ही है तो किसी हालत में जीत नहीं सकते.