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ट्रंप से भारत की अपेक्षाएं क्यों?

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी मतदाताओं ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुना है. ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा के सभी तात्कालिक निर्णय रद्द कर दिये, जिनमें ओबामा हेल्थ केयर, ईरान को मदद तथा परमाणु संधि शामिल थे. फिर ट्रंप ने मुसलिम देशों से आनेवाले शरणार्थियों को रोकने के लिए ‘यात्रा […]

तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी मतदाताओं ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुना है. ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा के सभी तात्कालिक निर्णय रद्द कर दिये, जिनमें ओबामा हेल्थ केयर, ईरान को मदद तथा परमाणु संधि शामिल थे. फिर ट्रंप ने मुसलिम देशों से आनेवाले शरणार्थियों को रोकने के लिए ‘यात्रा प्रतिबंध’ लगाने का आदेश जारी किया और यह भी कहा कि जल्द ही पाकिस्तान को भी इस सूची में रखा जा सकेगा.
इस घोषणा को ट्रंप विरोधियों ने मुसलिमों को प्रतिबंध के नाम से प्रचारित किया और फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग से लेकर मीडिया तथा अनेक संगठनों ने इसका तीखा निषेध किया. लेकिन, जनरल सर्वे में अमेरिकी जनता के बहुमत ने ट्रंप को ही समर्थन दिया.
फिर ट्रंप ने एच-1बी वीजा की शर्तें इतनी कठिन कर दी कि भारत सहित अन्य देशों से अमेरिका जानेवाले प्रतिभाशाली लोगों को नौकरी मिलने में कठिनाई होगी. इसे लेकर भी भारत के कुछ वर्गों में विरोध हुआ. इस विरोध का एक अर्थ यह भी था कि ट्रंप के इस निर्णय से अमेरिकी नौजवानों को अमेरिका में रोजगार के ज्यादा अवसर मिलेंगे तथा इसका परिणाम यह होगा कि भारत के तेजस्वी लोग अमेरिका में नौकरी पाने से वंचित रह जायेंगे. मानो अमेरिका में नौकरी पाना भारत के नागरिकों का जन्मसिद्ध अधिकार है और यदि अमेरिका अपने नौजवानों को अमेरिका में नौकरी दे रहा है, तो यह भारत के प्रति अन्याय होगा.
किसी भी देश के साथ मैत्री अपने देश के हितों और स्वाभिमान की रक्षा के आधार पर ही हो सकती है. हर देश को अपने तरीके से, अपनी जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों और सरकार के माध्यम से अपने हित में हर प्रकार का निर्णय करने का पूरा अधिकार होता है. ट्रंप अच्छे हैं या बुरे, इसका फैसला अमेरिकी जनता करे और इसकी कसौटी एक ही होगी- ट्रंप जो भी कर रहे हैं, वे अमेरिका के हित में है या नहीं. ट्रंप से यह अपेक्षा नहीं हो सकती कि जिन फैसलों को वे अमेरिका के हित में समझते हैं, उन्हें इसलिए रोक दें क्योंकि उससे कुछ देशों के साथ उनके मित्र संबंध बिगड़ सकते हैं. राजनीति और कूटनीति का सर्वोच्च एवं सर्वमान्य सिद्धांत एक ही होता है- मेरे अपने राष्ट्र का हित. भारत भी सबसे पहले अपने हितों की रक्षा करता है और उसके बाद अन्य देशों के साथ संबंध बढ़ाता है. दो देशों में अच्छे मैत्री संबंध तब होते हैं, जब उनके राष्ट्रहित तथा आपसी हित मिल जायें. ऐसे उदाहरणों में भारत-नेपाल, भारत-इजराइल तथा भारत-जापान संबंध गिनाये जा सकते हैं.
ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर कार्रवाई कर अपने देश के हित पूरे करने की कोशिश की. भारत को इस पर मलाल करने के बजाय अपने ही देश में ऐसी स्थिति पैदा करनी चाहिए कि भारत के तेजस्वी नौजवान नौकरी के लिए अमेरिका की ओर देखना ही बंद कर दें. क्या भारत हमेशा ऐसे ही देश बना रहना चाहता है कि यहां के शिक्षा संस्थानों से श्रेष्ठ शिक्षा पाकर नौजवान अमेरिकी कंपनियों में सेवा करने के लिए जाते रहें? मातृभूमि को छोड़ना व विदेशी भूमि में नौकरी की लालसा ने माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी कंपनियों के शिखर पदों पर भारतीयों को बैठते देखा है. क्या उनसे सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि वे भारत में अमेरिका तथा यूरोप से बेहतर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, इंटरनेट सुविधाएं और गूगल से बेहतर भारतीय सर्च इंजन बनाने के लिए क्यों नहीं सोचते? वे भारतीय हैं और अमेरिका की सेवा के लिए गये हैं, तो क्या इसी वजह से हमें उन भारतीय एक्सपोर्ट मैटेरियल नौजवानों का सम्मान करना चाहिए और उन पर अभिमान करना चाहिए?
इसलिए ट्रंप द्वारा अमेरिका के हित में किये जा रहे कदमों से इन भारतीयों को संताप हो रहा है, मुझे उन भारतीयों से कोई सहानुभूति नहीं है.
मैं तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं, जब अमेरिकी नौजवान भारत के विश्वविद्यालयों में पढ़ने तथा भारतीय कंपनियों में नौकरी के लिए वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में वीजा मांगने की पंक्ति में खड़े रहा करेंगे. अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरियों का अधिकार ईश्वर ने केवल अमेरिका और यूरोप को दिया, ऐसा कहीं प्रमाण नहीं मिलता. एक समय था, जब भारत शिक्षा और समृद्धि में अमेरिका और यूरोप से भी आगे था. वह समय पुन: लौटाया जा सकता है, यदि भारतीय इस विषय में मन बना लें.
जहां तक ट्रंप द्वारा सात मुसलिम बहुल देशों से आनेवाले शरणार्थियों पर रोक का संबंध है, यह उनकी आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा है. इस प्रतिबंध को मुसलिम प्रतिबंध कहना संकीर्ण सांप्रदायिक सोच का द्योतक है. जिन देशों से आतंकवाद सबसे ज्यादा आपूर्ति हुई है, उनके विषय में निर्णय लेकर अपने नागरिकों की सुरक्षा को मजबूत बनाना गलत बात नहीं है, बल्कि जरूरी है कि इस सूची में पाकिस्तान और सउदी अरब भी शामिल किये जायें.
भारत को अपने हितों की चिंता करनी चाहिए और ऐसी कठोर नीतियां अपनानी चाहिए कि शीघ्र ही हमारा देश आतंकवाद से मुक्त हो जाये. विरोध करनेवालों को चाहिए कि वे इस ओर ध्यान दें, ना कि वाशिंगटन के विश्लेषक बन कर अपना बौद्धिक विलास प्रकट करें.

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