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Friday, March 29, 2024

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बेहतर रणनीतिकार थे पांडेय गणपत राय

अनुज कुमार सिन्हा 1857 में अंगरेजाें के खिलाफ जब डाेरंडा (रांची) के फाैजी नेता माधव सिंह, जयमंगल पांडेय आैर नादिर अली की अगुवाई में फाैजियाें ने विद्राेह कर दिया आैर रांची काे अपने कब्जे में ले लिया ताे पाेठिया गांव में बैठे पांडेय गणपत राय आगे की रणनीति बनाने के लिए बेचैन हाे गये. वे […]

अनुज कुमार सिन्हा

1857 में अंगरेजाें के खिलाफ जब डाेरंडा (रांची) के फाैजी नेता माधव सिंह, जयमंगल पांडेय आैर नादिर अली की अगुवाई में फाैजियाें ने विद्राेह कर दिया आैर रांची काे अपने कब्जे में ले लिया ताे पाेठिया गांव में बैठे पांडेय गणपत राय आगे की रणनीति बनाने के लिए बेचैन हाे गये. वे एक मंजे हुए देशभक्त नेता थे. उनकी बेचैनी का कारण था कि कैसे जल्द से जल्द छाेटानागपुर के विद्राेही कुंवर सिंह के संपर्क में आयें आैर दिल्ली में बहादुर शाह काे सहयाेग करें. इसके लिए उनके पास ठाेस याेजना थी लेकिन संसाधन के अभाव में उस याेजना काे लागू नहीं किया जा सका.

उन्हाेंने विद्राेही नेताआें से वादा किया था कि छाेटानागपुर से राेहतासगढ़ आैर दिल्ली अभियान के लिए वे दस हजार लाेगाें आैर गाड़ियाें की व्यवस्था करेंगे ताकि गाेला-बारूद आैर ताेप काे दिल्ली पहुंचाया जा सके. गणपत राय काे भराेसा था कि छाेटानागपुर के महाराजा आैर अन्य लाेग इसमें उनकी सहायता करेंगे लेकिन उन्हें सहयाेग नहीं मिला. उन्हें विद्राेहियाें ने कमांडर इन चीफ चुना था आैर इसी नाते गाेला-बारूद , ताेप वे दिल्ली पहुंचाना चाहते थे. इतिहास का आंकलन करनेवाले यह मानते हैं कि अगर गणपत राय अपनी याेजना के अनुसार सारे संसाधन दिल्ली पहुंचा दिये हाेते ताे दिल्ली पर इतनी आसानी से अंगरेज फाैज दुबारा कब्जा शायद नहीं कर पाते.

गणपत राय के पास खासा अनुभव था. पालकाेट राजा के वे दीवान थे. बीमारी के कारण जब उनके एक बेटे का निधन हाे गया था ताे मानसिक शांति के लिए तीर्थाटन करने गये थे. उन्हाेंने अंगरेजाें का जुल्म देखा था. वे चाहते थे कि अंगरेजाें के आंतक काे खत्म किया जाये, लेकिन अवसर नहीं मिल रहा था. महाराजा जगन्नाथ शाही के बारे में उनकी धारणा था कि वे जागरूक नहीं हैं. इसलिए उनका साथ छाेड़ दिया था. वे पाेठिया में सामान्य जीवन जी रहे थे. उम्र भी लगभग 48 साल की थी. उसी समय उन्हें खबर मिली कि डाेरंडा में फाैजियाें ने विद्राेह कर दिया है आैर छाेटानागपुर काे स्वतंत्र घोषित कर दिया है. विद्राेहियाें ने विश्वनाथ शाही काे अपना गवर्नर भी चुन लिया था आैर वे डाेरंडा में बैठने भी लगे थे. गणपत राय का मानना है कि सिर्फ स्वतंत्र घाेषित कर देने से कुछ नहीं हाेनेवाला. इसके लिए आगे की रणनीति बननी चाहिए. वे तुरंत रांची आये आैर विद्राेह करनेवाले फाैजी नेता माधव सिंह, जयमंगल पांडेय आैर नादिर अली से मिले. उन्हें समझाया कि दिल्ली में विद्राेहियाें ने बहादुर शाह काे बागडाेर साैंप दी है, इसलिए दिल्ली से कट कर रहना उचित नहीं है. इसे कानूनी ताैर पर भी मजबूत हाेना हाेगा. इसके लिए आवश्यक है कि दिल्ली सरकार इसे मान्यता दे. इसके लिए बेहतर हाेगा कि पहले कुंवर सिंह से मिला जाये आैर उसके बाद दिल्ली कूच किया जाये. गवर्नर विश्वनाथ शाही इसके लिए सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि छाेटानागपुर में ही रह कर ऐसी व्यवस्था की जाये ताकि अंगरेज यहां दुबारा कदम नहीं रख पाये.

गणपत राय ने माधव सिंह आैर जयमंगल पांडेय काे समझाया, उन्हें अपनी याेजना बतायी. यह भी आश्वासन दिया कि वे खुद (गणपत राय) कमांडर इन चीफ की भूमिका अदा करने काे तैयार हैं. अगर विद्राेही उन्हें अपना कमांडर इन चीफ मान लेते हैं ताे वे राेहतासगढ़ आैर दिल्ली कूच करने के लिए 10 हजार लाेगाें, गाेला-बारूद आैर ताेपाें की व्यवस्था करेंगे. फाैजी नेता काे गणपत राय की याेजना पसंद आयी. गणपत राय का कद बढ़ता गया. गवर्नर विश्वनाथ शाही इस याेजना से असहमत थे. गणपत राय विलंब करना नहीं चाहते थे. दाेनाें के मतभेद सामने आ गये थे. गणपत राय ने विश्वनाथ शाही से संसाधन मांगा, लेकिन शाही ने ताेप, गाड़ी आदि देने से इनकार कर दिया. गणपत राय बेबस थे. चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे. इधर विद्राेही भी नाराज थे. जब उन्हें संसाधन नहीं मिला ताे विद्राेही फाैजियाें ने कड़ा रूख अपना लिया. शाही के घर काे घेर लिया गया, गणपत राय काे भी नजरबंद कर दिया गया. आपसी मतभेद के कारण सारी याेजना लटक गयी थी. गणपत राय की दिल्ली जाने की याेजना सफल नहीं हाे सकी. 20 सितंबर तक अंगरेजाें ने दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया था.बाद में गणपत राय आैर विश्वनाथ शाही ने महसूस किया कि छाेटानागपुर में ही अंगरेजाें के खिलाफ माेरचा जारी रखा जाये. रांची पर 23 सितंबर काे अंगरेजाें ने फिर से कब्जा कर लिया. इन दाेनाें ने अंगरेजाें के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा, लेकिन मजबूत अंगरेज उन पर भारी पड़ते गये. अपने ही देश के कई गद्दाराें ने अंगरेजाें का साथ दिया था आैर विद्राेहियाें की गतिविधियाें की जानकारी अंगरेजाें काे दी थी. गणपत राय आैर विश्वनाथ शाही के कई सहयाेगी पकड़े गये. ऐसे में विद्राेहियाें काे उन्हाेंने फिर से एकजुट करने की तैयारी की थी. इसी बीच गणपत राय काे गिरफ्तार कर लिया गया आैर रांची में फांसी दे गयी. इसके साथ ही यह सवाल जिंदा रहा कि काश, गणपत राय की रणनीति काे आगे बढ़ाते हुए सभी ने उनका साथ दिया हाेता, संसाधन उपलब्ध कराया हाेता, ताे छाेटानागपुर के विद्राेही कुंवर सिंह काे मजबूत करने में सफल हाेते.

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