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सरेंडर के लिए तैयार होने को सिर्फ 30 मिनट का समय मिला था पाकिस्तान को

अनुज कुमार सिन्हा 16 दिसंबर यानी विजय दिवस. भारत के लिए गाैरव का दिन. ठीक 45 साल पहले यानी 16 दिसंबर 1971 काे पाकिस्तानी सेना के सुप्रीम कमांडर लेफ्टिनेंट जेनरल ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकाें के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अराेड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. युद्ध में भारत की जीत […]

अनुज कुमार सिन्हा

16 दिसंबर यानी विजय दिवस. भारत के लिए गाैरव का दिन. ठीक 45 साल पहले यानी 16 दिसंबर 1971 काे पाकिस्तानी सेना के सुप्रीम कमांडर लेफ्टिनेंट जेनरल ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकाें के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अराेड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. युद्ध में भारत की जीत आैर पाकिस्तान की पराजय हुई थी. इसी जीत के साथ पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था आैर बांग्लादेश का जन्म हुआ था. यह विजय ऐसे ही नहीं मिली थी. इसके लिए सैकड़ाें भारतीय सैनिकाें ने शहादत दी थी.

लांस नायक अलबर्ट एक्का उन्हीं सैनिकाें में से एक थे, जिन्हाेंने अपनी जान देकर भारत की फाैज के आगे बढ़ने का रास्ता खाेला था. इसी वीरता के कारण उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया गया था. 45 साल बीत गये, दुनिया बदल गयी, लेकिन पाकिस्तान नहीं बदला. न ही उस युद्ध से उसने सबक लिया है. आज भी वह भारत के खिलाफ षड़यंत्र रचने से बाज नहीं आता. अंजाम उसे भी पता है.

आज भारत भले ही अमेरिका काे अपना करीबी-हितैषी देश मानने लगा हाे, ब्रिटेन से संबंध भले ही बहुत अच्छे हाें लेकिन इतिहास की घटना ताे यही बताती है कि अगर 1971 के भारत-पाक युद्ध में तब का साेवियत संघ (रूस समेत कई देश इसमें थे) भारत के पक्ष में खड़ा नहीं हाेता ताे भारत संकट में फंस चुका था. इसी अमेरिका ने युद्ध में पाकिस्तान का पक्ष लिया था अाैर अपना सातवां बेड़ा भारत काे घेरने के लिए भेजा था. ब्रिटेन ने भी अपना युद्धपाेत भारत के खिलाफ भेजा था. लेकिन साेवियत संघ ने तब सच्ची मित्रता निभायी थी. भारत के आग्रह पर उसने अपना युद्धपाेत, परमाणु पनडुब्बी भारत की रक्षा के लिए भेज दिया था. यह निर्णायक साबित हुआ था. साेवियत संघ के इस कदम से अमेरिका आैर ब्रिटेन काे पीछे हटना पड़ा था. इसके बाद ही पाकिस्तान आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर हुआ था.

1971 में देश का नेतृत्व श्रीमती इंदिरा गांधी कर रही थी. मजबूत फैसले लेने के लिए जानी जाती थी. 1971 के चुनाव में बंगाली-बहुल पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी काे बढ़त मिली थी. इसके बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना का आतंक बढ़ गया था. वहां से बड़ी संख्या में लाेगाें का पलायन हुआ. भारत में लगभग एक कराेड़ बांग्लादेशी शरणार्थी के ताैर पर आ चुके थे. पूर्वी पाकिस्तान आजादी की लड़ाई लड़ रहा था आैर इसके लिए उसने मुक्ति वाहिनी नामक संगठन बनाया था. भारत ने पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश की आजादी का खुल कर समर्थन किया था. अप्रैल 1971 में ही प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना काे बांग्लादेश में घुसने के लिए कह दिया था लेकिन तब सेना ने तैयारी के लिए कुछ समय मांगा था. जेनरल मानेेकशॉ सेनाध्यक्ष थे. तय हुआ था कि 15 नवंबर के बाद भारतीय सेना बांग्लादेश में घुसेगी. श्रीमती गांधी काे सभी विपक्षी दलाें का खुला समर्थन था. इस मुद्दे पर पूरा देश एक था. उन दिनाें मेजर जेनरल जेएफआर जैकब पूर्वी कमान के स्टॉफ अफसर थे. उन्हाेंने बाद में एक किताब लिखी, जिसमें युद्ध के साथ-साथ नियाजी के सरेंडर का जिक्र है. भारत-पाक युद्ध 3 दिसंबर, 1971 काे शुरू हुआ था. पाकिस्तानी वायुसेना ने पहले भारतीय वायुसेना पर हमला किया था. बाद में एक इंटरव्यू में जैकब ने खुलासा किया था कि जाे हालात बन गये थे, उसमें अगर पाकिस्तान तीन दिसंबर काे हमला नहीं करता, तब भी भारतीय फाैज अगले दिन यानी चार दिसंबर काे पूर्वी पाकिस्तान में घुस जाती. इस युद्ध में भारतीय फाैज काे सिर्फ खुलना आैर चटगांव पर ही हमले का आदेश मिला था, ढाका पर नहीं. लेकिन हालात बदलते गये आैर फाैज बढ़ती गयी.

जब भारत ने जवाबी हमला किया तब पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका चिंतित हाे उठा था. उसके अपने स्वार्थ थे. तब रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति आैर किसिंगर विदेश मंत्री थे. बाद में जाे दस्तावेज उजागर हुए,उससे पता चला कि कैसे निक्सन खुले तौर पर पाकिस्तान के पक्ष में थे. हमले के बाद निक्सन ने किसिंगर काे कहा था कि हर हाल में पश्चिमी पाकिस्तान काे बचाना है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसिंगर से जार्डन से बात कर लड़ाकू विमान पाकिस्तान भेजने के लिए कहा था. उन्हाेंने चीन काे भी भारत के खिलाफ खड़ा करने की तैयारी की थी. चीन काे अमेरिका की आेर से कहा गया था कि वह भारत सीमा पर अपनी फाैज की संख्या या ताे बढ़ाये या बढ़ाने की धमकी दे ताकि भारत पर दबाव बढ़े.

यह बात अलग है कि चीन ने अमेरिका के सुझाव के बाद भी काेई कदम नहीं उठाया था. इसका एक कारण युद्ध में साेवियत संघ का भारत के पक्ष में खड़ा हाेना माना जा सकता है. अमेरिका ने भारत काे कायर तक कह दिया था. एक सप्ताह के युद्ध के बाद भारतीय फाैज लगातार आगे बढ़ रही थी. उसी दाैरान भारतीय गुप्तचराें काे एक संदेश मिला कि अमेरिका ने पाकिस्तान की सहायता के लिए अपना सातवां बेड़ा रवाना कर दिया है. यह दुनिया का सबसे बड़ा युद्धपाेत था, जाे 75 हजार टन भार का था. परमाणु हथियाराें से लैस था. इस पर 70 लड़ाकू आैर बमवर्षक विमान थे. इसके मुकाबले भारत के पास सिर्फ विक्रांत था. उधर साेवियत संघ काे सूचना मिली थी कि ब्रिटेन ने पाकिस्तान काे सहायता देने के लिए अपना युद्धपाेत रवाना कर दिया है. यह चिंता की बात थी. अमेरिका आैर ब्रिटेन दाेनाें भारत के खिलाफ हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे थे. ऐसे में भारत के पास अपने पुराने आैर विश्वसनीय मित्र साेवियत संघ से सहायता मांगने के अलावा काेई विकल्प नहीं बचा था.

दाे माह पहले ही भारत आैर साेवियत संघ में संधि हुई थी. इसके अनुसार भारत पर हाेनेवाले हमले के बाद उसकी रक्षा का दायित्व साेवियत संघ पर था. भारत ने इस संधि का हवाला देते हुए साेवियत संघ (रूस सबसे बड़ा देश) से सहायता मांगी. खबर थी कि ब्रिटेन के युद्धपाेत से भारत के पश्चिमी तट पर हमले हाेंगे जबकि अमेरिका बंगाल की खाड़ी में माेरचा संभालेगा. बगैर विलंब किये 13 दिसंबर काे ही साेवियत संघ (रूस) ने भारत की रक्षा के लिए परमाणु हथियार से लैस एक बेड़ा रवाना कर दिया. इसमें परमाणु पनडुब्बी भी थी. इसकी अगुवाई एडमिरल व्लादिमीर क्रूग्लायाकाेव कर रहे थे. इसका काम ब्रिटेन आैर अमेरिका के युद्धपाेत काे राेकना था. इसका असर हुआ. ब्रिटिश अाैर अमेरिकी युद्धपाेत के पहुंचने के पहले रूस का बेड़ा पहुंच चुका था. इसकी सूचना ब्रिटिश युद्धपाेत से अमेरिकी युद्धपाेत को दी गयी आैर बताया गया कि वे लाेग विलंब कर गये हैं. रूसी बेड़े की माैजूदगी के बाद ब्रिटेन आैर अमेरिका के युद्धपाेत लाैट गये. अगर रूस के बेड़े के पहले ब्रिटेन आैर अमेरिका युद्धपाेत पहुंच गया हाेता, ताे पाकिस्तान काे नयी ताकत मिल जाती.

जब पाकिस्तान काे यह सहायता नहीं मिली ताे वह पस्त हाेने लगा. भारतीय हमले तेज हाे गये थे. पाकिस्तान के कमांडर नियाजी ने अमेरिका काे संदेश भेजवाया कि वह 14 दिसंबर काे ही समर्पण करना चाहता है. लेकिन अमेरिका ने इस प्रस्ताव काे 19 घंटे तक इस उम्मीद में राेके रखा कि शायद काेई आैर रास्ता निकले. ऐसे में भारत ने जैकब काे यह जिम्मेवारी दी कि वह पाकिस्तानी फाैज काे समर्पण के लिए तैयार करे. जिस समय यह बात हाे रही थी, ढाका में पाकिस्तानी फाैजाें की संख्या 26,400 थी जबकि भारतीय फाैज की संख्या सिर्फ तीन हजार थी, वह भी तीस किलाेमीटर दूर. लेकिन पाकिस्तान फाैज पस्त हाे चुकी थी, मनाेबल टूट चुका था. जैकब एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर की गाड़ी से ढाका में पाकिस्तानी फाैज के हेडक्वार्टर जा रहे थे ताकि सरेंडर के लिए कहा जा सके. वहां नियाजी मिले. उन्हाेंने पहले सरेंडर के प्रस्ताव पर साफ-साफ कहा कि सरेंडर नहीं हाेगा, युद्ध विराम हाेगा. हम यही चाहते हैं. ढाका में पाकिस्तानी सेना के हेडक्वार्टर में घुसकर भारतीय सेना अधिकारी जैकब ने कहा-तीस मिनट का समय देते हैं. प्रस्ताव मानिये, सरेंडर पत्र पर हस्ताक्षर के लिए तैयार हाे जाइए, वरना हम काेई जिम्मेवारी नहीं लेंगे. अगर सरेंडर करते हैं ताे आप सभी के परिवार की रक्षा की जिम्मेवारी हमारी हाेगी. तीस मिनट बाद जैकब ने जवाब मांगा. अंतत: नियाजी सहमत हाे गये. 16 दिसंबर काे शाम में 4.55 बजे नियाजी ने भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अराेड़ा के समक्ष 93 हजार सैनिकाें के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. अपनी पिस्ताैल अराेड़ा काे साैंप दी. यह भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण था. भारत की जीत हाे चुकी थी. बांग्लादेश का उदय हाे चुका था. पूरे बांग्लादेश में भारतीय फाैज की जय-जयकार हुई थी. भारत ने पाकिस्तान की 15,010 वर्ग किलाेमीटर जमीन युद्ध में जीत ली थी, लेकिन शिमला समझाैते के बाद उसे वापस कर दिया. इस घटना काे 45 साल बीत चुके हैं. लेकिन आज भी उस घटना काे याद कर हर भारतीय अपने काे गाैरवान्वित महसूस करता है आैर हर साल इस ऐतिहासिक दिन काे विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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