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दृढ़ता के बिना शुद्धि संभव नहीं

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा जब भी किसी राजनेता ने व्यापक सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर कोई बड़ा निर्णय लिया है, तब उसे कठोर कहा गया. अनेक तर्क-वितर्क देकर उसे पलटवाने का प्रयास हुआ. जो नेता जोखिम न उठा सके, वह नेता कृत्रिम ही हो सकता है. बिहार का ही उदाहरण है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार […]

तरुण विजय

राज्यसभा सांसद, भाजपा

जब भी किसी राजनेता ने व्यापक सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर कोई बड़ा निर्णय लिया है, तब उसे कठोर कहा गया. अनेक तर्क-वितर्क देकर उसे पलटवाने का प्रयास हुआ. जो नेता जोखिम न उठा सके, वह नेता कृत्रिम ही हो सकता है. बिहार का ही उदाहरण है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी का फैसला किया, तो मीडिया से लेकर अनेक दलों ने उसकी आलोचना की- राजस्व में कमी, अवैध मद्यपान में वृद्धि जैसे कुतर्क भी दिये. उनको अपने सहयोगी दलों का भी आक्षेप सहना पड़ा. अदालतों का फैसला भी उनके लिए नकारात्मक ही रहा, लेकिन नीतीश टस-से-मस नहीं हुए. उनकी दृढ़ता को साधुवाद. उनका यह वक्तव्य कि जो मद्यपान के बिना जिंदा नहीं रह सकते, बिहार छोड़ दें, उनका कद बढ़ा गया. प्रदेश के परिवारों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की उन्हें दुआएं मिलीं. अच्छा काम यदि वैचारिक प्रतिपक्षी भी करे, तो उसकी प्रशंसा करनी ही चाहिए. दीनदयाल और लोहिया का यही कहना था. और हिम्मत से नीतीश कुमार ने नोटबंदी का भी समर्थन किया.

भाजपा और जदयू दोनों प्रतिपक्षी हैं, जब चुनाव थे और जब चुनाव नहीं भी थे, तो किसी न किसी मुद्दे पर तकरार हुई, लेकिन जीएसटी और नोटबंदी यदि देश के व्यापक हित में है, तो साथ भी दिया. यही लोकतंत्र का अर्थ है. अन्यथा शत्रुु देशों में वैमनस्य और स्वदेशी पक्ष-प्रतिपक्ष के संबंधों में क्या फर्क रह जायेगा. किसी ने अच्छा किया है तो उसे अच्छा कहने का साहस दिखाना ही बड़प्पन है. पिछले दो सप्ताह से संसद में जाे चल रहा है, वह लोकतंत्र नहीं, अराजकता एवं भीड़तंत्र है. राज्यसभा में दिव्यांगों के लिए एक आवश्यक विधेयक पारित हाने की प्रतीक्षा में है. उनको दी जानेवाली सुविधाओं में पहले केवल सात प्रकार की अक्षमताएं थीं, जिन्हें बढ़ा कर अब नये विधेयक में 19 कर दिया गया है. नोटबंदी के शोर में सभापति ने विपक्ष से कहा कि आप विरोध कीजिये, लेकिन दिव्यांगाें के हित में यह विधेयक तो पारित होने दीजिये. लेकिन, कांग्रेस नेता बोले कि यह विधेयक हम बिना चर्चा के पारित नहीं करना चाहेंगे. बस इसी कारण देश के करोड़ों दिव्यांग अब इस प्रतीक्षा में हैं कि कब विपक्ष का शोर थमे, संसद चले और उनके लिए वरदान स्वरूप यह विधेयक कानून का रूप ले.

नोटबंदी के लाभ आम जनता समझ रही है. कमाल का धैर्य और परिपक्वता दिखायी, परिश्रम से कमायी ईमानदारी की आय को बदलने में परेशानी बेहद हुई, मीलों लंबी पंक्तियाें में खड़े रहना पड़ा, अनेक दुर्भाग्यजनक दुर्घटनाएं हुईं, लेकिन विपक्ष के लाख उकसाने के बावजूद पूरे देश के एक नगर, कस्बे या गांव में भी सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन या किसी भी प्रकार की उग्रता देखने को नहीं मिली. सर्वोच्च न्यायालय की दुर्भाग्यजनक टिप्पणी कि इस नोटबंदी के कारण दंगे भड़क सकते हैं, ठीक नहीं थी. यदि बरसों तक अदालतों के चक्कर लगा-लगा कर जिंदगी बेकार हो गयी- ऐसा माननेवाले करोड़ो होंगे, तो वे कभी दंगाई नहीं बने.

मैं स्वयं देहरादून में बैंककर्मियों से मिला, पंक्तियों में खड़े लोगों से चर्चा की. एक अधेड़ उम्र के पूर्व सैनिक ने कहा कि सरहद पर जवान अपनी जिंदगी देता है, हम क्या कुछ देने की तकलीफ देश के लिए सहन नहीं कर सकते.

भारत की यह जनता धन्य है. आनेवाले समय में कालेधन पर नियंत्रण से आम जनता के लिए सड़कें, स्कूल, ढांचागत संरचनाओं का व्यापक प्रसार होगा. दुनिया में स्वाभिमान विकास की शक्ति का प्राण होता है. जनता का स्वाभिमान अपने देश की महानता में बढ़ता है, तो उसका बहुआयामी असर होता है. हर नागरिक अपना घर लेना चाहता है- कालेधन का जमीन-जायदाद में इतना अधिक पूंजी निवेश हो गया था कि कोई साधारण मध्यम वर्गीय मकान खरीद ही नहीं पा रहा था. नोटबंदी की घोषणा होते ही जमीन-जायदाद के दाम धड़ाम से नीचे गिरे और अब वही मकान खरीदने की सामान्य सीमा में आ गये. बैंक ब्याज दरें कम होने लगीं.

लाखों-करोड़ों रुपये बैंकों में जमा हो रहे हैं. धीरे-धीरे जनता प्लास्टिक वित्तीय विनिमय- नकदविहीन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेगी. सारी दुनिया नकद से दूर जा रही है. चीन, अमेरिका, जापान, यूरोप में 86-92 प्रतिशत सामान्य बाजार में अर्थ व्यवहार क्रेडिट-डेबिट कार्ड या मोबाइल बैंकिंग से होता है. दुनिया आगे बढ़ जाये और हम यही रोना रोते रहें कि अभी वक्त नहीं आया है.

जब पंडित नेहरू के समय मीट्रिक और दशमलव प्रणाली शुरू हुई थी, तो सेर, आना, पाई का अभ्यस्त समाज विरोध करने लगा था.

बड़ी कठिनाई से नयी प्रणाली प्रचलन में आयी, तो हम दुनिया के साथ हो गये. मोबाइल फोन, कंप्यूटरों का भी विरोध हुआ- कहा गया ये विलासिता के साधन हैं, इनसे बेरोजगारी बढ़ेगी, लेकिन आज ये साधन जरूरी हो गये हैं.

नयी सोच और समझ को जितनी तीव्रता से भारतीय समाज ने स्वीकारा, उतना दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता. नोटबंदी तो अभी कष्टप्रद लग रही है, पर भविष्य का भारत इसी प्रकार के दृढ़ निर्णयों से बढ़ेगा और निखरेगा. विपक्ष का शोर नहीं, नेतृत्व दृढ़ता देश को आगे बढ़ायेगी.

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