39.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सुशील कोइराला के बाद कौन?

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक प्रधानमंत्री मोदी चाह कर भी सुशील कोइराला को श्रद्धांजलि अर्पित करने काठमांडो नहीं जा पाये. शायद माहौल कुछ ऐसा है, जिसमें मोदी जी का जाना ठीक नहीं होता. भारत की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कांग्रेस नेता आनंद शर्मा, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, जदयू नेता शरद यादव […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के
नयी दिल्ली संपादक
प्रधानमंत्री मोदी चाह कर भी सुशील कोइराला को श्रद्धांजलि अर्पित करने काठमांडो नहीं जा पाये. शायद माहौल कुछ ऐसा है, जिसमें मोदी जी का जाना ठीक नहीं होता. भारत की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कांग्रेस नेता आनंद शर्मा, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, जदयू नेता शरद यादव काठमांडो के महाराजगंज में श्रद्धासुमन अर्पित करने गये थे.
पीएम मोदी ने कहा कि हमने एक सच्चा दोस्त खो दिया है. सादगी पसंद सुशील कोइराला सिर्फ भारत के ही सच्चे दोस्त नहीं थे, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए वह हरदिल अजीज थे. दक्षेस की काठमांडो शिखर बैठक में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ जैसे रूठे मित्रों को मनाने में उनकी अहम भूमिका को विश्व के बाकी नेता भी याद करते हैं. सुशील कोइराला दक्षेस मंच के सबसे उम्रदराज नेता थे. नेपाल को भले ही भारत का छोटा भाई कहा जाता है, लेकिन काठमांडो दक्षेस शिखर बैठक में सुशील कोइराला बड़े भाई की भूमिका में थे.
ऐसे सुशील कोइराला ने जरूरत पड़ने पर मोदी जी तक को खरी-खरी सुना दी थी कि नेपाल में नाकेबंदी नयी दिल्ली की उपेक्षापूर्ण नीतियों की वजह से है. सच्चा मित्र वही होता है, जो कमियों की ओर इशारा करे. प्रधानमंत्री रहते सुशील कोइराला नाकेबंदी को लेकर जब भारत के विरुद्ध बयान दे रहे थे, तब वे अपने राजधर्म का पालन कर रहे थे. सुशील कोइराला को इसका श्रेय जाता है कि उनके प्रधानमंत्री रहते नेपाल का नया संविधान लागू हो गया.
लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री पद के वास्ते दोबारा संसद में हुए मतदान में सुशील कोइराला का हार जाना, उनके विरोधियों के लिए तंज करने का कारण बन गया. जबकि सुशील कोइराला ने सितंबर 2015 में संविधान के समर्थन में मतदान करनेवाले दलों से वादा किया था कि वे प्रधानमंत्री पद पर दोबारा नहीं आना चाहेंगे. कैंसर से पीड़ित सुशील कोइराला अपने जीवन के आखिरी वक्त भी नेपाली कांग्रेस के 3 से 6 मार्च, 2016 को होनेवाले महाधिवेशन में अध्यक्ष पद की दावेदारी करनेवाले थे. यह दर्शाता है कि गंभीर रूप से बीमार रहने के बावजूद उन्हें राजनीति के हाशिये पर रहना पसंद नहीं था.
इस बार हर पांच वर्ष पर होनेवाले नेपाली कांग्रेस का महाधिवेशन टलना तय है. इसकेलिए ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ ने सहमति दे दी है. इस समय नेपाली कांग्रेस के लिए सबसे मुश्किल ऐसे नेता के चुनाव की है, जो सबको लेकर चले. ऐसी काबिलियत सुशील कोइराला में थी. कोइराला परिवार के समर्थकों को उम्मीद की किरण, सुजाता कोइराला में दिखती है.
मगर प्रेक्षक गिरिजा प्रसाद कोइराला की बेटी और पूर्व उप प्रधानमंत्री सुजाता कोइराला को बहुत असरदार और दमदार प्रत्याशी के रूप में नहीं देख रहे हैं. यदि नेपाली कांग्रेस के अघ्यक्ष पद पर सुजाता कोइराला नहीं चुनी गयीं, तो मान कर चलना चाहिए कि यह ऐतिहासिक पार्टी एक परिवार के प्रभामंडल से बाहर निकल चुकी.
1951 से अब तक नेपाली कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों मातृका प्रसाद कोइराला, सुबर्ण शमशेर राणा, बीपी कोइराला, कृष्ण प्रसाद भट्टराई, गिरिजा प्रसाद कोइराला, शेर बहादुर देउबा और सुशील कोइराला ने अपनी जिम्मेवारियां समय-समय पर संभाली हैं. इनमें सुबर्ण शमशेर राणा, कृष्ण प्रसाद भट्टराई, और शेर बहादुर देउबा- ये तीनों कोइराला परिवार से ताल्लुक नहीं रखते.
कोइराला परिवार के चार दिग्ग्ज नेताओं मातृका प्रसाद कोइराला, बीपी कोइराला, गिरिजा प्रसाद कोइराला और सुशील कोइराला ने दीर्घकाल तक नेपाल पर शासन किया है, यह भी एक सच है. कोइराला परिवार से बाहर के शेर बहादुर देउबा या रामचंद्र पौडेल जैसे नेता आनेवाले दिनों में सर्वस्वीकृत नेतृत्व दे पायेंगे, अथवा पार्टी में विखंडन की स्थिति बनेगी, यह राजनीतिक मंथन का विषय है.
मान कर चलना चाहिए कि यह पूरा दशक नेपाल की राजनीति का संक्रमणकाल है. नेपाल में पार्टियां टूटी हैं, बाबू राम भट्टराई, ‘मोहन वैद्य किरण’ जैसे कई नये नेतृत्व का प्रादुर्भाव हुआ है.
नेपाल में इस समय 82 पार्टियां ‘लिस्टेड’ हैं. नये राज्यों के निर्माण के बाद पार्टियों की संख्या और बढ़ेगी. मगर, यह संक्रमण सिर्फ सत्ता के गलियारे तक सीमित नहीं है, देश का विकास भी बड़ा सवाल बन कर खड़ा है, जिसकी ‘डिलीवरी’ नये प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अब तक नहीं कर पाये हैं. पीएम ओली और उनके उप प्रधानमंत्री कमल थापा अब तक इसी द्वंद में थे कि पहले चीन की यात्रा करें या भारत की.
इससे क्या फर्क पड़ता है? माओवादी नेता प्रचंड 2008 में प्रधानमंत्री बनने के दूसरे दिन पेइचिंग यात्रा पर निकल गये, इससे क्या नेपाल का कायाकल्प हो गया?
इस समय नेपाल के आम आदमी को यदि पांच सौ रुपये लीटर पेट्रोल और तीन हजार रुपये का गैस सिलेंडर खरीदना पड़े, बारह से बीस घंटे तक बिजली की राह देखनी पड़े, महीनों एक वक्त भोजन कर गुजारना पड़े, तो ऐसी दोस्ती का क्या? और ऐसे नेताओं का भी क्या करना, जो सपनों का सौदागर बन कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते फिरें. नेपाल में भूकंप के बाद ‘नाकेबंदी’ दूसरी त्रासदी थी, जिसने विकास को दशकों पीछे धकेल दिया है. नेपाल भूकंप से सबक ले, उसके तुरंत बाद राजनीतिक हलाहल ने देश के हालात को और बिगाड़ दिया.
केपी ओली ने 2015 में ही संकल्प किया था कि नेपाल में गैस और तेल पाइपलाइन का जाल बिछा देंगे, लेकिन यह घोषणा ‘ओली की गोली‘ बन कर रह गयी.
नेपाल के वाणिज्य मंत्री विष्णु पौडेल 19 फरवरी को पीएम ओली की दिल्ली यात्रा की तैयारी के सिलसिले में ‘ग्राउंड वर्क’ करने आये थे. नेपाल को इस समय अधोसंरचना के लिए ‘इफ्रा फंड’ में पैसा चाहिए. भारतीय वित्त मंत्री अरुण जेतली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से विष्णु पौडेल का मिलना कितना लाभकारी रहा, इसका पता अगले हफ्ते ही चल पायेगा. इस समय सबसे बड़ी चुनौती विश्वास बहाली को लेकर है.
नाकेबंदी ने दोनों देशों के कूटनीतिकों, व्यापारियों और नेताओं के बीच ‘भरोसे की नाकेबंदी’ कर दी, इस सच को हम नकार नहीं सकते. चार महीने में 54 लोग मारे जा चुके हैं. नेपाल राष्ट्रबैंक ने भी माना है कि नाकेबंदी से दोनों देशों के व्यापार की हालत बिगड़ गयी.
24.4 प्रतिशत पर आ चुके निर्यात, और भारत से 31.9 प्रतिशत आयात से इस देश के विकास दर का क्या होगा? ऐसे बिगड़े हालात में ऐसा कौन निवेशक होगा, जो नेपाल में पैसे लगाने का जोखिम ले? नेपाल में ऊर्जा को लेकर बड़ी चिंता है. ऐसे ही संकट से बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देश दो-चार हो रहे हैं. वक्त आ गया है कि भारत ‘काॅमन पावर ग्रिड’ के बारे में गंभीरता से सोचे!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें