36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

समाज में खत्म होते संबंध

अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते खत्म हाे रहे हैं, टूट रहे हैं आैर आपसी संबंधाें में तेजी से खटास बढ़ी है. चाहे वह शिक्षक-छात्र संबंध हाे, मरीज-डॉक्टर संबंध हाे, पति-पत्नी का संबंध हाे, परिवार या दाेस्त हाे, संबंध पहले जैसे नहीं रहे. एक मरीज की माैत के […]

अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते खत्म हाे रहे हैं, टूट रहे हैं आैर आपसी संबंधाें में तेजी से खटास बढ़ी है. चाहे वह शिक्षक-छात्र संबंध हाे, मरीज-डॉक्टर संबंध हाे, पति-पत्नी का संबंध हाे, परिवार या दाेस्त हाे, संबंध पहले जैसे नहीं रहे. एक मरीज की माैत के बाद डॉक्टर पर आराेप लगे अाैर अस्पताल में ताेड़फाेड़ की गयी. एक साल पहले झारखंड के सिंहभूम में तीन छात्राें ने अपने शिक्षक काे इसलिए मार डाला था, क्याेंकि उन्हाेंने उन छात्राें काे सिगरेट-शराब पीने से मना किया था.
दाे दिन पहले बंगाल में एक शिक्षक ने छात्र काे मार डाला. कभी शिक्षक छात्र काे पीट कर मार डालते हैं, ताे कभी छात्र शिक्षक काे. खबरें आती हैं कि मां या पिता काे बेटे ने इसलिए मार डाला, क्याेंकि उन्हाेंने बेटे काे मकान-जमीन लिखने से इनकार कर दिया. संपत्ति के कारण भाई ने भाई काे मार डाला. चिंतनीय है कि ऐसी घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं. पति-पत्नी के बीच तलाक के मामले तेजी से बढ़े हैं. सच यह है कि समाज में रिश्ताें की अहमियत खत्म हाे गयी है.
ये रिश्ते ऐसे ही खत्म नहीं हाे रहे. शिक्षा या सेवा का व्यवसायीकरण हाे गया है. रिश्ते पर पैसे भारी पड़ रहे हैं. एक जमाना था, जब शिक्षक अपने छात्राें काे अपने बच्चों जैसा मानते थे. बच्चाें का भविष्य बनाना उनका मकसद हाेता था, वही शिक्षकाें का उद्देश्य हाेता था. शिक्षक बनने का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं हाेता था. आज अधिकतर शिक्षकाें/चिकित्सकों (अपवाद भी हैं) के लिए पैसा ही सबकुछ है. पैसा लेकर पास काे फेल आैर फेल काे पास करने की घटनाएं आती रही हैं. एेसे में संबंध कैसे बेहतर हाेंगे?
दाेनाें के बीच स्वार्थ की दीवार है. न शिक्षक पहले जैसा बच्चाें के लिए साेचते हैं आैर न छात्र पहले जैसा शिक्षकाें का सम्मान करते हैं. शिक्षकाें से समाज काे कुछ ज्यादा ही अपेक्षा रहती है, क्याेंकि वे बच्चाें का भविष्य बनाते हैं. बच्चाें के आदर्श हाेते हैं. (एेसा माना जाता है). समाज में अगर तेजी से पतन हाे रहा है, ताे यह शिक्षकाें में भी दिखता है. नैतिकता का असर इन पर अब असर नहीं पड़ता. हालांकि, अपवाद में अब भी पहले जैसे शिक्षक दिख जाते हैं.
यह मामला सिर्फ शिक्षक-छात्र संबंध तक सीमित नहीं है. चिकित्सा के क्षेत्र में भी यही हाल है.मुझे याद है 1974 में जब मैं छाेटा था, हजारीबाग में अपने दादाजी के बीमार हाेने पर अकेले डॉ जीके मिश्रा के घर उन्हें बुलाने चला जाता था. डॉक्टर मेरे साथ ही दादाजी काे देखने के लिए चले आते थे. अच्छा व्यवहार था. आज मरीज किसी डॉक्टर के घर के बाहर रात में सिर पटकता रहेे, उसके बावजूद डॉक्टर घर से नहीं निकलते. मरीज मरता है ताे मरे. देर रात में ताे घर पर इलाज के लिए जाने का ताे सवाल ही नहीं है. ऐसी बात नहीं है कि इस बदलाव के लिए सिर्फ डॉक्टर हाे दाेषी हैं. समय बदल गया है. विश्वास टूटा है.
डॉक्टर काे रात में बुलाने के नाम पर बुला कर अपहरण की घटनाएं भी घटी हैं. स्वयं काे वे सुरक्षित महसूस नहीं करते. साेचते हैं कि काैन जान गंवाने जाये. भगवान के बाद डॉक्टर का स्थान माना जाता है. लेकिन तभी तक, जब तक कि मरीज जिंदा है. मरीज की माैत हुई कि डॉक्टर पर आफत. मारपीट-ताेड़फाेड़ सामान्य बात है.
ऐसा इसलिए हाेता है, क्याेंकि मरीज के परिजन मानते हैं कि डॉक्टर या अस्पताल ने भारी पैसा लिया है, ताे जान बचाना उसका काम है. सही है कि अस्पताल या डॉक्टर मरीज काे चूस लेते हैं. इलाज महंगा है आैर मरीज के परिजन जमीन-जायदाद, गहने बेच कर भी इलाज कराने के लिए आते हैं. इस उम्मीद के साथ कि जान बचेगी. लेकिन वे भूल जाते हैं कि डॉक्टर भी इनसान हैं, माैत पर उसका भी वश नहीं चलता. अगर माैत पर उसका नियंत्रण हाेता ताे देश-दुनिया के बड़े-बड़े डॉक्टर्स के परिजन नहीं मरते.
तमाम संबंधों काे खराब किया है पैसे ने, सेवा-इलाज के व्यवसायीकरण ने. इसका खामियाजा ताे भुगतना ही पड़ेगा. अब ताे यह कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत आ गया है. लापरवाही के मामले में दावे भी हाेते हैं. विवाद से बचने के लिए बेहतर है कि एक्ट के तहत आनेवाले हर मामले का पाेस्टमार्टम हाे, ताकि माैत के सही कारणाें का पता चल सके. इसके लिए सरकार कानून में इसे जाेड़े. इस समस्या का असली समाधान सिर्फ कानून बनाना नहीं है.
संबंधाें में आयी खटास काे खत्म करना है. डॉक्टर्स, शिक्षक का पेशा सिर्फ पैसा कमाने का नहीं है, उनकी भूमिका अलग हाेती है. इन्हें असली भूमिका में आना हाेगा. पैसे के पीछे भागना नहीं हाेगा. संबंधाें काे समझना हाेगा. अगर आप सिर्फ पैसे के पीछे भागेंगे, ताे आप चाहे शिक्षक हाें या डॉक्टर, आपकाे अलग से न ताे बेहतर दर्जा मिलेगा आै न ही सम्मान. रिश्ताें की डाेर काे आैर मजबूत करने का वक्त आ गया है. यही बेहतर समाज बना सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें