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जीवन-विज्ञान की शिक्षा जरूरी

प्रो गिरीश्वर मिश्र कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा योग को स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बना कर सार्थक पहल की जा सकती है. योग जीवन में संतुलन और अपने पर नियंत्रण स्थापित करने का रास्ता बताता है. योग आज की चुनौतियों के लिए कवच साबित हो सकता है. योग को लेकर हमारे प्रधानमंत्री […]

प्रो गिरीश्वर मिश्र
कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा
योग को स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बना कर सार्थक पहल की जा सकती है. योग जीवन में संतुलन और अपने पर नियंत्रण स्थापित करने का रास्ता बताता है. योग आज की चुनौतियों के लिए कवच साबित हो सकता है.
योग को लेकर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व स्तर जो पहल की, जिसे अपार अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला, उसने न केवल उनकी राजनयिक गतिशीलता का प्रमाण दिया है, बल्कि भारत की पहचान और यहां की परंपरागत ज्ञान राशि की उपयोगिता को भी व्यापक रूप से प्रतिष्ठित किया है. इसके लिए देश उनका हृदय से कृतज्ञ है. योग के प्रदर्शन में लोगों की अभूतपूर्व रुचि देख कर यह तो स्पष्ट ही हो गया है कि लोग इसके प्रति उत्सुक हैं.
योग की चेतना समाज के हर वर्ग में जरूर बढ़ी है. पर आज भारतीय समाज के स्वास्थ्य और जीवन के प्रति सामान्य दृष्टिकोण को देख कर यही लगता है कि सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं है. आवश्यकता है कि योग को जीवन का हिस्सा बनाया जाये. इसके लिए व्यापक पहल जरूरी है और जीवन के आरंभिक वर्षो से ही इसे अपनाया जाये. जब तक इसे सामान्य शिक्षा का अभिन्न व अनिवार्य अंग नहीं बनाया जायेगा, समस्या बढ़ती ही जायेगी.
आज हम सब विचित्र दृश्य देख रहे हैं. भावनात्मक उबाल, क्रोध, हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार, कदाचरण, मादक द्रव्यों का सेवन और स्वेच्छाचार की खबरों से सभी समाचार पत्र अटे पड़े होते हैं.
साथ ही जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और मधुमेह जैसी बीमारियों की चपेट में आता जा रहा है. न केवल इन रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, बल्कि इनमें कम उम्र के लोग भी शामिल होते जा रहे हैं. आधुनिकीकरण और उससे जुड़ा मशीनीकरण आज की जीवनशैली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है. खास तौर पर शारीरिक कार्य की कमी, लगातार बैठे रहना, कंप्यूटर का अत्यधिक उपयोग कुछ ऐसे बदलाव हैं, जिनसे जीने की मुश्किलें बढ़ रही हैं.
खान-पान में ‘जंक फूड’, तमाम अस्वास्थ्यकर पेय, तेज रफ्तार से अनुराग, रिश्तों का अवमूल्यन और अंदर के खालीपन को बाहर के उद्दीपन से भरना आज के उच्च वर्ग में मानक बनाता जा रहा है.
मध्य वर्ग भी उसी के पीछे चलने लगा है. तीव्र गति से बदलती यह जीवनशैली तमाम तरह के रोगों को जन्म दे रही है और समाज की जीवनीशक्ति को खोखली किये दे रही है. निजी जीवन से सुख-चैन छिनता जा रहा है और कार्य में उत्पादकता पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है. इन सबका समाज की शांति व सौहार्द पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
धीरे-धीरे युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इसकी गिरफ्त में आ रहा है. तनाव, अवसाद, अन्यमनस्कता और थकान आज के जमाने में युवा वर्ग के स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चुनौतियां बन कर उभर रही हैं. यदि आज की सामाजिक, आर्थिक तथ्यों को आधार मानें, तो जो परिस्थितियां बन रही हैं, उनसे आज की उभरती नयी पीढ़ी को जो समय भविष्य में आगे मिलेगा, वह और भी जटिल होगा.
संसाधन कम से कमतर ही होते जा रहे हैं और सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में जवान होती पीढ़ी की शारीरिक और मानसिक तैयारी पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है. जो शिक्षा और जिन मूल्यों के लिए हम उन्हें तैयार कर रहे हैं, वे प्रतियोगिता, उपभोक्तावृत्ति और आत्मकेंद्रिकता को ही बढ़ावा दे रही हैं. यह वास्तविकता से दूर ले जानेवाली स्थिति है.
आज की शिक्षा बाहर की दुनिया में पार पाने का प्रशिक्षण शुरू से करती है. प्राइमरी से ही बच्चे पर पढ़ाई का भार इतना कि उसकी सारी शक्ति अपने बस्ते को संभालने में चुक जाती है. होम वर्क का बोझ ऊपर से. धीरे-धीरे उसे अनेक विषयों की तैयारी में जुटना होता है.
यदि विषयों की संख्या और उसकी अच्छी तैयारी के लिए जरूरी घंटों का हिसाब जोड़ें, तो बच्चे की जिंदगी छोटी पड़ जायेगी. सिर्फ स्कूल की पढ़ाई भी नाकाफी होती है. उसे पूरा करने के लिए ‘ट्यूशन’ या ‘कोचिंग’ बेहद जरूरी हैं. अब शारीरिक और मानसिक दबाव, बच्चे और उनके पालक दोनों ही पर बढ़ रहा है. उनकी प्रतिरोधक क्षमता निरंतर कम हो रही है. इसलिए वे बौद्धिक दृष्टियों से अपरिक्व और असंतुलित हो रहे हैं.
अच्छे और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए सिर्फ बाहरी ही नहीं आंतरिक दुनिया पर भी विजय जरूरी होती है.इस दिशा में योग को स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बना कर सार्थक पहल की जा सकती है. योग जीवन में संतुलन और अपने पर नियंत्रण स्थापित करने का रास्ता बताता है. योग आज की चुनौतियों के लिए कवच साबित हो सकता है और सामाजिक स्वास्थ्य को स्थापित करने की दिशा में प्रभावी उपाय. एक सशक्त देश के लिए समर्थ युवा पीढ़ी जरूरी होती है. वर्तमान शिक्षा की कहानी बड़े स्पष्ट शब्दों में कह रही है कि वह इस दृष्टि से अपर्याप्त है.
उसका एक ही संदेश है कि शिक्षा का ढांचा बदलो. शिक्षा को जीवन जीने की समझ भी विकसित करनी चाहिए और देश तथा समाज के साथ जुड़ाव भी. ‘मेक इन इंडिया’ जरूरी है, पर ‘मेक इंडिया’ कहीं उससे पहले जरूरी है और शायद उसकी आधारशिला भी है.

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