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सिंगापुर के सिंह पुरुष ली कुआन यू

।।तरुण विजय।।राज्यसभा सांसद, भाजपाtarunvijay2@yahoo.com सही अर्थो में जिन्हें आधुनिक सिंगापुर का राष्ट्रपिता कहा जा सकता है, ऐसे श्री ली कुआन यू का 91 वर्ष की आयु में 26 मार्च की सुबह देहांत हो गया. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी ने उन्हें शेर के समान महापुरुष बताया और संभवत: वे स्वर्गीय ली के अंतिम संस्कार में […]

।।तरुण विजय।।
राज्यसभा सांसद, भाजपा
tarunvijay2@yahoo.com

सही अर्थो में जिन्हें आधुनिक सिंगापुर का राष्ट्रपिता कहा जा सकता है, ऐसे श्री ली कुआन यू का 91 वर्ष की आयु में 26 मार्च की सुबह देहांत हो गया. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी ने उन्हें शेर के समान महापुरुष बताया और संभवत: वे स्वर्गीय ली के अंतिम संस्कार में भाग लेने सिंगापुर पहुंचेंगे. ली कुआन यू एक ऐसे देश के राष्ट्रपति रहे, जिसे सिटी कंट्री या एक शहर के बराबर मुल्क कहा जाता है. सिंगापुर की कुल आबादी सिर्फ 55 लाख है.

इसका संविधान ही 1959 में बना तथा 1965 में इसे मलेशियाई महासंघ से अलग होकर स्वतंत्र देश बना. प्राचीन काल में यह सुमात्र के हिंदू सम्राट श्री विजय साम्राज्य की एक आखिरी चौकी के रूप में माना जाता था. यह वस्तुत: 54 छोटे-छोटे द्वीपों से बना है, जिसका कुल राष्ट्रीय क्षेत्रफल 718 वर्ग किमी है. यहां का मूल नाम संस्कृत के सिंहपुर से ही निकला है और यहां की आबादी में बहुत बड़ी संख्या भारतीय मूल के नागरिकों की है, जिनमें तमिल भाषी प्रमुख हैं. यहां के राष्ट्रपति तमिलभाषी भी रह चुके हैं. ऐसे देश के किसी नायक के निधन पर सारी दुनिया में शोक की लहर क्यों दौड़ी? क्यों महाशक्तियों के राष्ट्र प्रमुख ली कुआन के देहांत पर गमगीन हुए? और क्यों भारत जैसे विराट देश के प्रधानमंत्री ने उनके अंतिम संस्कार में भाग लेना महत्वपूर्ण समझा?

ली कुआन यू ने राख से सोना बनाने की कहावत वस्तुत: चरितार्थ की और सिद्ध किया कि कोई देश अपने आकार और आबादी से छोटा या बड़ा नहीं होता, बल्कि उसकी महानता का पैमाना उसके नागरिकों की उपलब्धियां होती हैं. आज सिंगापुर विश्व में पूर्वी एशिया के देशों, विशेषकर आसियान देशों का नेतृत्व संभाले हुए है और अर्थव्यवस्था, शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय उच्च अनुसंधान के केंद्रों में सिंगापुर की प्रथम पंक्ति में गिनती होती है. दुनिया के स्वतंत्र एवं सबसे मुक्त अर्थव्यवस्थाओं में सिंगापुर का दूसरा स्थान है तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 42 देशों में भ्रष्टाचार के पैमाने पर सिंगापुर दूसरे क्रमांक का अर्थात् लगभग पूर्णत: भ्रष्टाचारमुक्त देश घोषित किया गया है. यहां हर कोने में स्वच्छता, सुघड़ता और कुशलता आंखें चकाचौंध करनेवाली है.
आबादी के हिसाब से दुनिया में प्रतिव्यक्ति सबसे अधिक गाड़ियां होने के बावजूद यहां के राजमार्गो पर यातायात नदी की लहरों की तरह चलता है. अपराध दर सबसे कम है और बेईमान व्यापारी, अफसर या नेता यहां रह नहीं सकते या रहने की हिम्मत नहीं कर सकते. इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, सामान्य व्यापारिक सेवाओं, प्राकृतिक संपदा और मानव संसाधन के प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर विश्वव्यापी केंद्र बन गया है. दुनियाभर से कच्च माल लेकर उसका श्रेष्ठतम उत्पादन बना कर वापस निर्यात करने में सिंगापुर बेजोड़ माना जाता है. यहां का बंदरगाह दुनिया का दूसरे क्रमांक का व्यस्ततम और कमाऊ बंदरगाह है. यहां रोजगार के लिए वीजा केवल तीन वर्गो के वेतनमान में दिया जाता है. पहला पी-1 वर्ग है आठ हजार डॉलर प्रतिमाह और उससे अधिक वेतन का, दूसरा पी-2 रोजगार वीजा है साढ़े चार हजार डॉलर से सात हजार नौ सौ निन्यान्बे तक का और तीसरा क्यू-1 वीजा न्यूनतम वेतन तीन हजार डॉलर
प्रतिमाह का है. इसी से पता चलता है कि वहां के साधारण नागरिकों की आय कितनी अधिक होगी. सिंगापुर का व्यापार की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद यानी ट्रेड टू जीडीपी अनुपात दुनिया में सबसे अधिक अर्थात् औसतन चार सौ प्रतिशत है. यह सब कैसे हुआ? गुलामी और अंगरेजों की नस्लीय नफरत का शिकार सिंगापुर गरीबी, पिछड़ेपन और गंदगी का शहर माना जाता था. ली कुआन यू इन सब संघर्षो से गुजरे. यहां के लोग उत्साहहीन और आलसी भी थे. ली ने शपथ ली कि वे इस मुल्क की तकदीर बदल देंगे. वे झाड़ू लेकर खुद शहर साफ करने निकलते और गंदगी फैलानेवाले लोगों को शर्मिदा करते. अनुशासन और ईमानदारी में इतने कठोर कि बेईमानों के लिए वे तानाशाह जैसे घोषित किये गये. उनका सिद्धांत रहा कि न गलत काम करेंगे, न गलत काम सहन करेंगे, न गलत काम करनेवाले को माफ करेंगे. उनकी पार्टी ने तय किया कि सिंगापुर के हर नागरिक की आय बढ़ाना और उसकी स्वास्थ्य रक्षा की अंतिम सांस तक विश्व में सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करना उनका मूल उद्देश्य होगा.
आज सिंगापुर की बचत दर दुनिया में सबसे ज्यादा है और यहां के नागरिकों के लिए अमेरिका तथा यूरोप से भी बेहतर आसान स्वास्थ्य सेवाएं हैं. यहां केंद्रीय प्रोविडेंट फंड की नायाब योजना चलायी गयी, जिसके धन से हर नागरिक को स्वास्थ्य सेवा दी जाती है. चीन से कम्यूनिस्ट विचारधारा लेकर आये ली कुआन यू कम्यूनिस्ट विचारधारा के विरोधी होकर सिंगापुर के निर्माता बने और दुनियाभर से सिंगापुर के लिए उन्होंने विदेशी पूंजी का निवेश किया. वे कम्यूनिस्ट केरूप में सिंगापुर जरूर आये, पर पूंजी के विश्व सम्राट के नाते याद रखे जानेवाले व्यक्तित्व के रूप में उन्होंने विदा ली. यहां के सकल घरेलू उत्पाद की दर प्रति व्यक्ति के हिसाब से अमेरिका से भी ज्यादा है और राष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी 298 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो सारी दुनिया को अचंभित करता है.
ली कुआन यू ने जिद, अपूर्व राजपुरुष की योग्यता एवं अत्यंत कठोर अनुशासन की नीति से एक राष्ट्र का अद्भुत निर्माण किया इसलिए वे
महापुरुष कहलाये. सैन्य शक्ति, अणुबम, दूसरे देशों को दबा कर खुद धन कमाने के रास्ते से नहीं, बल्कि बुद्धि, ज्ञान और परिश्रम के एकमेव रास्ते से उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया. उन्होंने भारत के बारे में कुछ उदार और कुछ कठोर बातें कहीं. उन्होंने कहा कि जब तक भारत में जाति व्यवस्था और पारस्परिक जातिगत दुर्भावनाएं हैं, तब तक भारतआगे नहीं बढ़ सकता. भारत की अफसरशाही के बारे में उन्होंने कहा कि यहां के अफसर मेहनत से भी लाभ कमा कर धनी बनना एक पाप या अपराध समझते हैं और वे देश के हर व्यापारी को गलत तरीके से पैसा कमानेवाला अवसरवादी मानते हैं.
इन अफसरों के हृदय में देश का विकास नहीं है और वे यहां ऐसे राज कर रहे हैं, मानों विदेशी हों. चीन की तुलना में ली कुआन यू ने भारत को विकास की दृष्टि से अधिक संभावनाओं वाला देश घोषित किया था, और कहा था कि यहां का लोकतंत्र और कार्यकुशल नौजवानों की बड़ी संख्या भारत को बहुत आगे ले जा सकती है, बशर्ते यहां के लोग अनुशासन और परिश्रम के साथ धन कमाने की राह पर चलें. ली कुआन यू जैसे महापुरुष भारत के लिए भी प्रेरणा के स्नेत कहे जायेंगे

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