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नयी अर्थव्यवस्था का पहला खाका

अगर नौकरियां नहीं होंगी, प्रतिभाओं के लिए मौका नहीं होगा, तो अर्थव्यवस्था सिर्फ कागजी शेर बन कर रह जायेगी. जेटली का बजट ईमानदारी, वास्तविकता व ताकतवर नजरिये से तैयार भारत के भविष्य का एक दस्तावेज है. भारत में मुट्ठी भर ताकतवर लोगों का एक तबका अरुण जेटली के बजट से बहुत हताश होगा. ये वे […]

अगर नौकरियां नहीं होंगी, प्रतिभाओं के लिए मौका नहीं होगा, तो अर्थव्यवस्था सिर्फ कागजी शेर बन कर रह जायेगी. जेटली का बजट ईमानदारी, वास्तविकता व ताकतवर नजरिये से तैयार भारत के भविष्य का एक दस्तावेज है.

भारत में मुट्ठी भर ताकतवर लोगों का एक तबका अरुण जेटली के बजट से बहुत हताश होगा. ये वे लोग हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति को काले धन में तब्दील कर, देश में या बाहर उसे छुपा कर देश के साथ गद्दारी की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भ्रष्टाचार पर दोहरी मार की है- अतीत के कुकर्मो के मामले में जवाबदेही बहाल करने के लिए धोखेबाजों के लिए कड़ी सजा तथा भविष्य में बेईमानी रोकने के लिए निर्णय-प्रक्रिया में पारदर्शिता.

पैसेवाले लोग हमसे और आपसे बिल्कुल अलग होते हैं. उनके पास बहुत पैसा होता है. पैसा सामान्यत: लालच पैदा करता है. इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं, जो सोचते हैं कि वे चाहे कितने ही गंभीर अपराध क्यों न कर लें, सियासत में बैठे अपने सहयोगियों की मदद से बच कर निकल लेंगे. कालेधन के खिलाफ प्रस्तावित विधेयक इन्हीं खामियों को दुरुस्त करता है. इसके तहत जेल का मतलब कड़ी सजा है.

एक दूसरा समूह भी बजट से नाखुश है और चाहता था कि जेटली नाकाम हो जाएं. विपक्ष के चेहरों पर फैली हताशा इसका साक्ष्य था. कुछ ने अपनी हताशा छुपाने की कोशिश भी की. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अकसर विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध करता है. ऐसा करनेवाले नेता एक जगह गलती कर रहे हैं. वह यह, कि यह बजट एक ऐसी स्थिर सरकार का पूर्ण बजट है जिसे पांच साल अभी रहना है और जो स्पष्ट उद्देश्यों की दिशा में संतुलित, नपा-तुला व विवेकपूर्ण कदम उठा सकती है. यह तो सिर्फ शुरुआत है. आनेवाले साल में इनके दुखी होने के लिए यह सरकार और मसाला देगी. प्रशासन का फलसफा अब साफ होता जा रहा है- नजरिये को उड़ान भरने दीजिए, लेकिन पांव जमीन पर टिके रहें, ताकि सफर मुमकिन हो सके. इसका मतलब व्यवहारिकता से है. मसलन, हम गरीबी कैसे दूर करेंगे? गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले भारतीयों को बिजली, शौचालय और काम मुहैया करा कर. उनके आत्मसम्मान में निवेश करने की जरूरत है. मेरे लिए बजट का सबसे अहम पहलू गरीबों के लिए समग्र सामाजिक सुरक्षा की ओर उठाया गया महान कदम है, वित्त मंत्री के शब्दों में जो ‘न्यायपूर्ण और सहृदय समाज’ की दिशा में है. यह उद्देश्य हमारे संविधान में दर्ज था, लेकिन इसे हासिल करने का तरीका हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की सामथ्र्य के पार दिखता रहा. जेटली परंपरागत सोच के चक्कर में नहीं फंसे. उन्होंने सामाजिक क्षेत्र के साथ कमजोर रिश्ते को मजबूत बनाया और इसके लिए नवाचारी योजनाएं बनायीं. अब गरीबों को एक रुपया मासिक में दुर्घटना बीमा उपलब्ध होगा. दिल्ली में कम-से-कम दर्जन भर पूर्व वित्त मंत्री होंगे, जिनमें कई सैद्धांतिक रूप से दक्ष भी होंगे, पर आज इस कदम पर वे अपने को कोस रहे होंगे.

गरीबी को राहत देकर आंशिक रूप से दूर किया जा सकता है, इसका उन्मूलन सिर्फ रोजगारों से संभव है. नरेंद्र मोदी भारतीयों में भरोसा करते हैं; इसीलिए उनकी सरकार के आर्थिक सोच की नींव ‘मेक इन इंडिया’ है. रोजगारों के विस्तार की जबरदस्त जरूरत महसूस की जा रही है. 80 के संकटग्रस्त दशक में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कहा था कि आर्थिक सुस्ती का मतलब पड़ोसी की नौकरी का जाना है और मंदी का मतलब आपकी अपनी नौकरी जाना है. यूपीए ने 2013 तक आर्थिक सुस्ती को मंदी में बदल दिया था. रोजगारों के लिए निवेश की जरूरत है. निवेश चाहे घरेलू हो या विदेशी, विश्वसनीयता बहाली के बगैर नहीं आता. पिछले नौ महीनों के दौरान सिलसिलेवार अहम निर्णयों के चलते इस बजट ने भारत को एक वैध निवेश स्थल के रूप में दोबारा स्थापित कर डाला है.

निकट भविष्य में सबसे ज्यादा रोजगार बुनियादी ढांचा क्षेत्र में पैदा होंगे, जिसमें सड़कें, रेलवे, शहर और बंदरगाह जैसी सुविधाएं शामिल हैं. सुरेश प्रभु के उत्कृष्ट रेल बजट ने रेलवे स्टेशन को शहर के आर्थिक व मनोरंजन केंद्र के रूप में तब्दील करने का प्रस्ताव किया है. प्रधानमंत्री ने पूछा कि आखिर कोई स्टेशन 25 मंजिला क्यों नहीं हो सकता. राष्ट्रीय बजट ऐसे ही नजरियों का गुणात्मक दस्तावेज है और भारत के वृहद् कायाकल्प की दिशा में जरूरी निवेश के लिए विधायी व प्रशासनिक आधार निर्मित करता है. इसका मंत्र वही है- जवाबदेही के साथ स्पष्टता.

अगर नौकरियां नहीं होंगी, प्रतिभाओं के लिए मौका नहीं होगा, तो अर्थव्यवस्था सिर्फ कागजी शेर बन कर रह जायेगी. जेटली का बजट ईमानदारी, वास्तविकता व ताकतवर नजरिये से तैयार भारत के भविष्य का एक दस्तावेज है. यह एक कल्पनाशील और विश्वसनीय वास्तुकार द्वारा तैयार इस देश की एक भावी योजना है, एक ऐसे शख्स द्वारा जिसने भविष्य को जामा पहनाने के लिए वर्तमान को समझा है. यह भारत की नयी अर्थव्यवस्था का पहला खाका है. (अनुवाद : अभिषेक श्रीवास्तव)

एमजे अकबर

प्रवक्ता, भाजपा

delhi@prabhatkhabar.in

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