25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आधार बदलने से सुधरी अर्थव्यवस्था

केंद्र की पिछली यूपीए सरकार के समय प्रस्तुत की गयी जो ग्रोथ रेट चार फीसदी से कुछ अधिक थी, वह मौजूदा गणना के हिसाब से 6.9 फीसदी हो जाती. यदि उस लिहाज से देखा जाये, तो पिछली सरकार के मुकाबले ग्रोथ रेट में मामूली बढ़ोतरी ही दिखती है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2014-15 […]

केंद्र की पिछली यूपीए सरकार के समय प्रस्तुत की गयी जो ग्रोथ रेट चार फीसदी से कुछ अधिक थी, वह मौजूदा गणना के हिसाब से 6.9 फीसदी हो जाती. यदि उस लिहाज से देखा जाये, तो पिछली सरकार के मुकाबले ग्रोथ रेट में मामूली बढ़ोतरी ही दिखती है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2014-15 का जो आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है, उसमें उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की सही तसवीर पेश करने की कोशिश की है. एक प्रकार से यह आर्थिक सर्वेक्षण वास्तिवकताओं के करीब है. वित्त मंत्री ने मुख्य रूप से जो बात कही है, वे जरूरी भी हैं, कि राजस्व घाटे को कम करना होगा, खर्चे कम करने होंगे. सरकार का संदेश यह है कि लोग जो खर्च कर रहे हैं, उन्हें सरकारी सहायता के भरोसे कम, अपनी कमाई से ज्यादा करना होगा.
इस आर्थिक सर्वेक्षण में गौर करनेवाली एक बड़ी बात यह है कि वित्त मंत्री ने स्वीकार किया है कि पिछले वर्ष विपक्ष में रहते हुए उन्होंने तत्कालीन यूपीए सरकार पर विकास में विफल रहने के जो आरोप लगाये थे और जिस तरह से अर्थव्यवस्था की खस्ताहाल तसवीर पेश करते हुए सरकार की आर्थिक नीतियों की निंदा की थी, वाकई में वैसी तसवीर थी नहीं. वित्त मंत्री द्वारा इस तथ्य को स्वीकार करना यह इंगित करता है कि यूपीए सरकार के समय विपक्ष ने देश की अर्थव्यवस्था की जो तसवीर बतायी थी, वास्तव में वैसी स्थिति थी नहीं.
पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने का भी देश को फायदा मिला है. अर्थव्यवस्था की तसवीर को सुधारने में इसका बड़ा योगदान रहा है. व्यापार घाटा कम होने से देश को बहुत फायदा होगा. वित्त मंत्री ने कहा है कि मुद्रास्फीति की दर शून्य हो गयी है, यह भी उन्होंने सही कहा है. इसमें गौर करनेवाली बात यह है कि होलसेल इनफ्लेशन में जो कमी आयी है, उसकी सबसे बड़ी वजह कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने से जुड़ी है. जहां तक खाद्य पदार्थो की खुदरा कीमतों का सवाल है, जिससे देश का प्रत्येक तबका प्रभावित होता है, ये कीमतें कम नहीं हुई हैं. यहां तक कि कई खाद्य पदार्थो की कीमतें बढ़ी हैं, जिस बारे में वित्त मंत्री ने सव्रेक्षण में नहीं बताया है. दरअसल, आम आदमी की जेब से निकला पैसा जिन चीजों में ज्यादा खर्च होता है, उनकी कीमतों में बढ़त अब भी जारी है.
आर्थिक सर्वेक्षण में जिस होलसेल प्राइस इंडेक्स या कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स की बात की गयी है, उसमें ज्यादातर वे चीजें शामिल हैं, जिनकी कीमतें कम हुई हैं. इस इंडेक्स में शामिल जिन पदार्थाे की कीमतें घटी हैं, उनमें भी आम आदमी द्वारा खरीदी जानेवाली कम ही चीजें हैं. और उनकी कीमत घटने का एक बड़ा कारण यह भी है कि इन दिनों उन वस्तुओं की मांग कम हो गयी है. इससे कीमत कम होना लाजिमी है.
वर्ष 2014-15 में ग्रोथ रेट करीब आठ फीसदी होने का अनुमान लगाया गया है. इसकी बड़ी वजह यह है कि मौजूदा सरकार ने इसकी गणना के तरीके को बदल दिया है. ग्रोथ रेट आकलन की गणना के तरीके के आधार को बदलते हुए इसमें पहले से ज्यादा चीजों को शामिल कर दिया गया है. ऐसे में ग्रोथ रेट का बढ़ना स्वाभाविक है. जैसे पहले इसकी गणना में यदि केवल गेहूं था, तो अब इसमें तेल को भी जोड़ दिया गया है. सरकार का यह कहना है कि हमारा देश बहुत विशाल है और इसमें विभिन्न इलाकों में अनेक प्रकार की वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए ग्रोथ रेट की गणना के तहत आनेवाले आइटम्स को बढ़ाया गया है. कहा जाये तो एक तरह से इसकी गणना की बुनियाद में (कुछ हद तक मानक में) बदलाव किया गया है.
हालांकि, ऐसा होने से पिछली सरकार को भी आंकड़ों में फायदा होता दिख रहा है, लेकिन उसके साथ तो जो होना था, वह तो हो चुका. दरअसल, केंद्र की पिछली यूपीए सरकार के समय प्रस्तुत की गयी जो ग्रोथ रेट चार फीसदी से कुछ अधिक रही थी, वह मौजूदा गणना के हिसाब से 6.9 फीसदी हो जाती है. यदि उस लिहाज से देखा जाये, तो पिछली सरकार के मुकाबले ग्रोथ रेट में मामूली बढ़ोतरी ही दिखती है.
हमारे देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा सब्सिडी के तौर पर खर्च होता है. माना जा रहा था कि केंद्र की नयी सरकार सब्सिडी के मोरचे पर कठोर फैसले ले सकती है, लेकिन हालिया दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए सरकार अब ऐसा करने से बचेगी. सभी वर्गो को खुश रखने के लिए सरकार मौजूदा सब्सिडी को जारी रख सकती है. दरअसल, हमारे देश में लोगों को सब्सिडी पाने की आदत बन चुकी है. हालांकि, इसमें गौर करनेवाली बात यह है कि सरकार वास्तव में जिन लोगों के लिए सब्सिडी देती है, उन्हें वह पूरी तरह हासिल नहीं हो पाता है. गरीब आदमी को सरकारी सब्सिडी का फायदा कम ही मिल पाता है और इसका ज्यादातर फायदा मध्यम वर्ग उठा ले जाता है.
जहां तक धन की कमी के कारण भविष्य में सरकारी खर्च में कमी करने का सवाल है, तो इस साल केंद्र सरकार ने चिकित्सा के क्षेत्र में 20 फीसदी, बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में 20 फीसदी और शिक्षा के क्षेत्र में भी 20 फीसदी की कटौती कर ही दी है. इसमें गौर करनेवाली बात यह है कि इस कटौती का जो असर होगा, उसकी रिपोर्ट अगले साल आयेगी, लेकिन फिलहाल जो रिपोर्ट देनी है उसके लिए खाका तो अभी ही तैयार करना है. अगले साल के लिए अच्छी तसवीर तैयार करने के लिए बजट में प्रावधान किया जा सकता है, जिसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिए सरकार को समय मिल जायेगा.
बजट बनाते समय केंद्र में सत्ताधारी पार्टी अपने पिछले कार्यकाल के बारे में नहीं बताना चाहती, जबकि उसे इसका ब्योरा भी देना चाहिए. उम्मीद की जा रही है कि वित्त मंत्री द्वारा आज पेश किया जानेवाला ‘आम बजट’ भी ‘रेल बजट’ की तरह होगा, जिसमें दूरगामी सोच की बात ज्यादा की जायेगी. आर्थिक सर्वेक्षण को देखते हुए शनिवार को प्रस्तुत होनेवाले बजट अनुमान के तौर पर यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार किसी तरह की सब्सिडी को खत्म नहीं करेगी. वित्त मंत्री की कोशिश ऐसा बजट प्रस्तुत करने की होगी, जिससे लोगों को ज्यादा से ज्यादा सब्सिडी का फायदा हो और कुछ राज्यों में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए तमाम वर्गो को साधा जा सके.
मौजूदा सरकार की तमाम आर्थिक नीतियां पिछली सरकार की तरह ही हैं. इसमें कोई खास बदलाव नहीं है. भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार का पहला पूर्णकालिक बजट पिछली यूपीए सरकार की तरह ही होगा. इसमें महज कुछ ही बड़े बदलावों की उम्मीद की जा सकती है.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
मोहन गुरुस्वामी
वरिष्ठ अर्थशास्त्री
delhi@Prabhatkhabar.in

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें