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स्थापना दिवस के उत्सव का अर्थ

अनंत कुमार एसोसिएट प्रोफेसर एक्सआइएसएस, रांची झारखंड राज्य अपनी स्थापना की सत्रहवीं वर्षगांठ मना रहा है. चारों तरफ उत्सव का माहौल है. तोरण-द्वार, पट्टिकाएं एवं समाचार पत्र, विज्ञापनों के द्वारा झारखंड के विकास की कहानी सुना रही हैं. ऐसा लगता है मानो इन सत्रह सालों में हमने वह सब पा लिया है, जिसकी कल्पना के […]

अनंत कुमार
एसोसिएट प्रोफेसर
एक्सआइएसएस, रांची
झारखंड राज्य अपनी स्थापना की सत्रहवीं वर्षगांठ मना रहा है. चारों तरफ उत्सव का माहौल है. तोरण-द्वार, पट्टिकाएं एवं समाचार पत्र, विज्ञापनों के द्वारा झारखंड के विकास की कहानी सुना रही हैं. ऐसा लगता है मानो इन सत्रह सालों में हमने वह सब पा लिया है, जिसकी कल्पना के साथ एक अलग राज्य का निर्माण किया गया था. इसमें शक नहीं की पिछले सत्रह सालों में बहुत कुछ बदला है.
आंकड़े एवं सूचकांक बताते हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य संबंधित संकेतकों में सुधार हुआ है, एवं कुछ संकेतकों में हमारा प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से भी बेहतर रहा है. स्वास्थ्य संकेतकों, खासकर शिशु-मृत्यु दर, पूर्ण प्रतिरक्षण, संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव में प्रदर्शन बेहतर रहा है. श्रमिक सुधारों एवं निरीक्षण संबंधी अनुपालन में पहला स्थान है. जहां सूचना और पारदर्शिता सक्षम करनेवालों तक पहुंच के रूप में राज्य चौथे स्थान पर है, वहीं एकल खिड़की के तहत सुधार में पांचवें स्थान पर. जीएसडीपी विकास दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है एवं व्यापार सुगमता में हम सातवें स्थान पर हैं.
इन तमाम उपलब्धियों एवं आंकड़ों के बावजूद, विडंबना यह है कि राज्य की आम जनता के जीवन में बदलाव नहीं दिख रहा. इन उत्सवों से इतर, आज जरूरत है कि हम जमीनी सच्चाइयों से रूबरू हों, उसे स्वीकार करें, और इन आंकड़ो के खेल को समझें. ज्यादातर आंकड़े जमीनी सच्चाई से कोसों दूर एवं भ्रमित करनेवाले हैं.
राज्य के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का अभाव है, संविदा पर अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के द्वारा खाना-पूर्ति की कोशिश की जा रही है. ज्यादातर प्राथमिक विद्यालयों में बमुश्किल एक या दो अध्यापक हैं, जिनमें से कई समय पर आते हैं, तो कई नहीं. फिर भी हम दावा करते हैं कि शिक्षा में सुधार हुआ है.
अस्पतालों में जरूरत के अनुसार डॉक्टर नहीं हैं, विशेषज्ञ नहीं हैं, दवाएं नहीं हैं, समुचित इलाज के अभाव में लोग मर रहे हैं, फिर भी दावा यह कि स्वास्थ्य में सुधार हुआ है. बच्चे कुपोषण एवं इलाज के अभाव में मर रहे हैं; संतोषी जैसी लड़कियां भोजन के अभाव में दम तोड़ दे रही हैं. और हम, सलाहकारों, इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों, परामर्शदात्री संस्थाओं एवं मीडिया के सहयोग से अपनी विकास गाथा लिखते, गाते, सुनाते नहीं थक रहे हैं.
झारखंड की वर्तमान सरकार को यह समझना चाहिए कि सपने दिखाकर लोगों को बहुत दिनों तक नहीं बहलाया जा सकता. पुरानी योजनाओं के नाम मात्र बदल देने से योजनाएं न तो सफल होती हैं, और न ही लोगों तक पहुंचती हैं. कई योजनाएं तो केवल कागजों, आंकड़ों एवं विज्ञापनों में ही चल रही हैं.
अलग राज्य की स्थापना के पीछे सपना था कि यहां के लोगों को, मूल-निवासियों को इनका हक मिलेगा. इसके उलट, आज आदिवासी विकास के नाम पर अपनी ही मिट्टी से अलग किये जा रहे हैं. ऐसे में सरकार द्वारा लाये जानेवाली भूमि अर्जन, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना संशोधन विधेयक 2017 का वर्तमान प्रारूप आदिवासियों, दलितों एवं वंचितों को उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास ही लगता है.
आज झारखंडी समाज, खासकर आदिवासी समाज, अपने को अलग-थलग महसूस कर रहा है. विपक्षी दलों का का कहना है कि वर्तमान सरकार एवं इसकी नीतियों ने झारखंड राज्य को जोड़ने के बजाय, समाज को बांटने का काम किया है.
हालांकि, इन सबके लिए सिर्फ वर्तमान सरकार को दोषी ठहराना गलत होगा, लेकिन यह नकारा भी नहीं जा सकता कि इस सरकार ने धर्म के नाम पर लोगों को बांटने में मुख्य भूमिका निभायी है. हाल यह है कि आज आदिवासी समाज जातीय, धार्मिक और राजनीतिक रूप से दो धड़ों में विभाजित हो गया है, जिससे उनके बीच विभाजनकारी और विखंडित राजनीति हो रही है एवं उनकी अस्मिता एवं पहचान पर ही प्रश्न खड़ा हो गया है.
झारखंड धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक, 2017 ने राज्य में सियासी हलचल मचाने का काम किया है. सरना समुदाय का मानना ​​है कि चर्च आदिवासी धर्म और इसकी संस्कृति के खिलाफ साजिश कर रही है. ऐसे में राज्य सरकार को यह समझना चाहिए कि यदि सौहार्दपूर्ण ढंग से इसका हल नहीं निकाला गया, तो यह न केवल आदिवासियों को सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से प्रभावित करेगा, बल्कि राज्य के समग्र विकास में भी बाधक होगा.
आदिवासी नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि ऐसे परिदृश्य में, धर्म के नाम पर विभाजित होने से उनकी शक्ति, स्थिति और सामूहिक आवाज एक सामाजिक समूह के रूप में कमजोर होगी. ऐसे परिदृश्य में, जहां अब तक के आदिवासी समाज को एक मंच पर एकजुट करने के पहले प्रयास सफल नहीं हुए हैं, आदिवासी समाज को अपनी धार्मिक, राजनीतिक, एवं वैचारिक मतभेद के बावजूद वृहद् झारखंड राज्य के हित में एक होना होगा, शायद तभी एक सशक्त और उन्नत झारखंड का निर्माण होगा.
तमाम कठिनाइयों, अवरोधों, बाधाओं के बावजूद झारखंड के लोग आज के दिन को एक विशेष दिन के रूप में मनाते हैं. यह राज्य के लोगों को उनके संकल्पों की याद दिलाता है एवं उनमें एक नयी शक्ति का संचरण करता है कि हमें सुखद एवं समृद्ध झारखंड के लिए एक बार फिर से खड़ा होना है. झारखंड स्थापना दिवस के उत्सव का अर्थ भी यही है.

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