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भाजपा की विचारधारा के मायने

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया क्या प्रधानमंत्री की कोई विचारधारा है? यह पूछना अचरज भरा है, क्योंकि उनकी पार्टी की वेबसाइट पर उसकी विचारधारा विज्ञापित है और उसे हिंदुत्व नाम दिया गया है. लेकिन, इस सवाल के पूछे जाने की जरूरत है, क्योंकि हमारे बुद्धिमान राजनेताओं में से एक ने कहा है कि […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
क्या प्रधानमंत्री की कोई विचारधारा है? यह पूछना अचरज भरा है, क्योंकि उनकी पार्टी की वेबसाइट पर उसकी विचारधारा विज्ञापित है और उसे हिंदुत्व नाम दिया गया है.
लेकिन, इस सवाल के पूछे जाने की जरूरत है, क्योंकि हमारे बुद्धिमान राजनेताओं में से एक ने कहा है कि पार्टी के पास कोई उचित विचारधारा नहीं है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम से एक अखबार ने सवाल पूछा था कि ‘वे अपनी दार्शनिक व्याख्या के तहत देश के प्रति भारतीय जनता पार्टी की भूमिका को किस रूप में देखेंगे, जनकल्याण प्रतिपालक, स्वास्थ्य प्रदाता व समानता को आगे बढ़ानेवाला शिक्षा प्रदाता या पूूरी तरह से अहस्तक्षेप के दृष्टिकोण वाला?’
उत्तर देने के लिए यह कोई साधारण प्रश्न नहीं है. अहस्तक्षेप एक ऐसी सोच है, जहां सरकार अर्थव्यवस्था में शामिल नहीं होती और प्रत्येक चीज के संचालन की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र पर होती है. मोटे तौर पर इसे इस तरह परिभाषित किया जा सकता है- एक ऐसा समाज, जिसके बारे में आयन रैंड जैसे लोगों ने लिखा है, जहां बड़े-बड़े पूंजीपति दुनिया को प्रतिस्पर्धा के जरिये सुंदर बनाते हैं और अयोग्य सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करती है, यहां तक कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को भी वह निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़ देती है और नागरिकों को खुद ही अपनी देखभाल करनी पड़ती है.
वर्ष 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान यह सोचा गया था कि नरेंद्र मोदी वैसी प्रणाली के पक्षधर होंगे, जो कांग्रेस-समर्थित ‘समाजवाद’ से अलग होगी. लेकिन, बीते तीन वर्षों में जो कुछ भी देखने में आया है, वह यह कि ग्रामीण रोजगार योजना जैसी ‘समाजवादी’ योजना, जिसे नरेंद्र मोदी ने बंद करने का वादा किया था, वह आज भी चल रही है. ऐसा लगता है कि जैसे देश को लेकर राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दृष्टिकोण में कोई फर्क नहीं रह गया है.
अपने उत्तर में पी चिदंबरम ने इसी बात को चुनौती देते हुए कहा, ‘भाजपा के पास कोई मूलभूत आर्थिक विचारधारा या दर्शन नहीं है.’ भाजपा की मूलभूत विचारधारा केवल हिंदुत्व और बहुमतवाली सरकार है.
किसी भी सरकार के पास उसका मूलभूत आर्थिक दर्शन जरूर होना चाहिए, जो यह इंगित करे कि वह बायेें से दायें स्पेक्ट्रम में कहां खड़ी हैै. आर्थिक दर्शन के बायें से दायें स्पेक्ट्रम के संदर्भ में एक पार्टी के तौर पर भाजपा कहां खड़ी है, इस संबंध में उसने कभी कुछ इंगित नहीं किया है. इसलिए वह सभी जगह हाथ-पांव मार रही है.
कोई भी इसे एक विरोधी के कटु वचन के रूप में पढ़-समझ सकता है. यद्यपि मैं कांग्रेस का मतदाता नहीं हूं, पर चिदंबरम इन शब्दों के साथ कहां जा रहे हैं, इसका परीक्षण करना मैं जरूरी मानता हूं. चिदंबरम ने कहा, ‘कांग्रेस की सोच से उलट, मैं वह पहला व्यक्ति होउंगा, जो यह स्वीकार करेगा कि हमारे कार्यक्रमों को लागू करने में कई कमियां थीं.
लेकिन, कांग्रेस ने तीन या चार मुद्दों पर जोर दिया, जो उसके मूलभूत दर्शन की ओर इशारा करती है. इनमें पहला है, एक भी व्यक्ति भूख या अकाल से नहीं मरना चाहिए. यही कारण था कि हम मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लेकर आये.’
जिस दूसरे निर्धारक मुद्दे को उन्होंने अपने कार्यक्रम से जोड़ा, वे हैं- गर्भवती महिला, स्तनपान करानेवाली मां, शिशुओं और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे, टीकाकरण कार्यक्रम और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान सहित स्वास्थ्य में दखल. पी चिदंबरम कहते हैं, ‘यह दखल कांग्रेस पार्टी की मूलभूत सोच और दर्शन को परिभाषित करती है’ और आगे चिदंबरम यह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के नजरिये में इस तरह के विशिष्ट मार्गदर्शन का अभाव है.
बीते अगस्त में गोरखपुर में मारे गये 282 बच्चों की मौत पर एक रिपोर्ट की तरह ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘यह घटना केंद्र सरकार को प्रभावित नहीं कर रही है. यह उत्तर प्रदेश सरकार पर असर नहीं डाल रही है. यह किसी के दिल को नहीं छू रही है… उनके लिए दिवाली के अवसर पर बनारस में दिये जलाना और मंदिर बनाना, जैसे उनके हिंदुत्व दर्शन के उदाहरण शिशुओं/मातृ मृत्यु, कुपोषण और भूख से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.’
सवाल यह नहीं है कि क्या यूपीए एनडीए से बेहतर सरकार थी, पी चिदंबरम अपनी सरकार की कमियों को स्वीकार कर रहे हैं. सवाल यह है कि क्या भाजपा, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी के पास कोई विचारधारा और दृष्टिकोण है, जिससे उनकी कार्यप्रणाली प्रकट हो रही है? या क्या चिदंबरम सही कह रहे हैं कि इस सरकार के पास सभी महत्वपूर्ण पहलों को एकजुट करने के लिए कोई ठोस विवरण नहीं है.
मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत, विमुद्रीकरण, सर्जिकल स्ट्राइक, बुलेट ट्रेन, स्टार्ट-अप इंडिया, जीएसटी जैसे कार्यक्रम- क्या ये सभी उसी भव्य और संपूर्ण योजना का हिस्सा हैं? या क्या ये सभी अलग-अलग हिस्से हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं है और उनका एक-दूसरे से कोई जुड़ाव भी नहीं है? यह एक परेशान करनेवाला प्रश्न है, जिसे हम सभी, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के मतदाता भी शामिल हैं, को पूछने की जरूरत है.
कांग्रेस का कहना है कि उसने कुछ विशिष्ट समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की. सही है कि वे उन्हें निष्पादित करने में सक्षम थे, यहां तक कि उनका इरादा सही भी हो, तब भी वे उसे समझाने में असमर्थ थे. वे अब बीती बातें हैं.
अब भारतीय जनता पार्टी की बारी है, वह बताये कि वह क्या तलाश रही है और उसकी भव्य योजना क्या है. व्यक्तिगत रूप से मैं यह उम्मीद कर रहा हूं कि चिदंबरम गलत हैं और पांचवें और दसवें वर्ष की उपलब्धियों को लेकर राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में कुछ सोच-विचार चल रहा है.
क्योंकि, अगर हिंदुत्व विचाराधारा का मतलब केवल पशु वध, मंदिर मुद्दा, लव जिहाद के साथ अार्थिक और विदेशी नीति को लेकर कुछ छिटपुट गतिविधियां भर हैं, तो हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं गहरी मुसीबत में हैं.

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