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अरे हुजूर, वाह ताज बोलिए!

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा शिक्षाविद् अब भी ताजमहल की बात होती है, तो इसे प्यार, इश्क, मोहब्बत, आशिकी से जोड़ दिया जाता है. लोगों के दिल की ख्वाहिश यही होती है कि वे ताजमहल का दीदार कम-से-कम जिंदगी में एक बार तो जरूर करें. जब मैं पिछले दिनों अमेरिका के दौरे पर थी, वहां वाशिंगटन […]

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा

शिक्षाविद्

अब भी ताजमहल की बात होती है, तो इसे प्यार, इश्क, मोहब्बत, आशिकी से जोड़ दिया जाता है. लोगों के दिल की ख्वाहिश यही होती है कि वे ताजमहल का दीदार कम-से-कम जिंदगी में एक बार तो जरूर करें.

जब मैं पिछले दिनों अमेरिका के दौरे पर थी, वहां वाशिंगटन के स्मिथ सोनियन म्यूजियम में एक अमेरिकी परिवार से बात हुई. परिवार की एक महिला ने पूछा कि क्या मैं इंडिया से हूं? जब मैंने कहा कि हां, तब उसके चेहरे पर रौनक आ गयी और वह कहने लगी कि इंडिया जाकर सिर्फ एक इमारत देखनी है, वह है ताजमहल. अपने मुल्क से दूर अपने मुल्क की ऐतिहासिक विरासत के लिए एक परदेसी के दिल में इतना प्यार देखकर लगा कि शायद हम अपने बेहतरीन ऐतिहासिक विरासत को सियासत और बांटने की राजनीति की भेंट चढ़ाते जा रहे हैं. जिस मुल्क में पटाखों को लेकर भी हिंदू-मुस्लिम की सियासत हो सकती है, वहां जरूरत है अपने मुल्क की हर उस तारीखी विरासत और इमारत से प्यार करने की, जो हमारे मुल्क की तारीख की कहानी बयान करती है. कहानी खुशी और गम और जख्म और मरहम हर तरह की हो सकती है.

लेकिन, एक जिम्मेदार हिंदुस्तानी होने के नाते हमें अपनी तारीख के पन्नों को न सिर्फ पढ़ना चाहिए, बल्कि ऐतिहासिक भूलों से सीखने की भी कोशिश करनी चाहिए. इस सोच को संभालने और संजोने का काम आप-हम-सबको करना होगा.

ताजमहल शाहजहां ने बनवाया, लेकिन उसके पीछे अनगिनत मजदूरों और बेहतरीन कारीगरों का पसीना भी मिला हुआ है. यह बात हम सबको याद रखनी होगी. इस इमारत को हमें एक और नये नजरिये से देखना होगा. यह बात सिर्फ ताजमहल ही से नहीं, बल्कि हमारी हिंदुस्तानी तारीख से जुड़ी हर उस इमारत के बारे में होनी चाहिए, जो अपने वक्त की तारीख को अपने दीवारों-दर से बयान करती रहती है.

काश हमारे सियासतदान समझते कि दुनिया में ताजमहल की क्या अहमियत है. ताजमहल सिर्फ मोहब्बत की निशानी ही नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की तारीख का कोहिनूर हीरा है, जो इसके ताज पर लगा है. हमारी पीढ़ी के पास ताजमहल जैसी नायाब इमारत तो मौजूद है, लेकिन क्या हमारी यह पीढ़ी कोई ऐसी एक भी इमारत बनवा पायी है, जिसे दो-तीन सौ साल बाद आनेवाली पीढ़ी याद रख पाये?

जब हम ताजमहल को सियासत और फसाद की बिसात पर रखते हैं, तो हम शायद गुमनाम कारीगरों और मजदूरों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं, जिनकी मेहनत की वजह से यह इमारत वजूद में आ पायी होगी. हम अपनी छोटी सोच के दायरे में इस मुल्क की हजारों साल पुरानी तारीख को तंग करने का काम क्यों करते हैं. इतिहास की शिक्षिका होने के नाते जब मैं ऐसे लोगों को ऐतिहासिक विरासत को लेकर बेबुनियाद बहस करते देखती हूं, तो बहुत दुख होता है.

सही मायने में ऐसा महसूस होता है कि इन्होंने इतिहास को न समझा है न जाना है. इतिहास को आज के आईने से नहीं देखा जा सकता, उसे उस गुजरे वक्त के आईने में ही देखना और समझना होगा. हमें यह याद रखना होगा कि आज जो कुछ हो रहा है, वह भी कल इतिहास का एक हिस्सा जरूर होगा. आज की सियासत की गलतियों को भी इतिहास में लिखा जायेगा, इसका भी ख्याल रखना होगा. आज अगर हम बीते कल पर सियासत करेंगे, तो जरूर आनेवाले कल के लिए कुछ नहीं छोड़ पायेंगे.

ताजमहल को शाहजहां ने अपनी शरीके-हयात मुमताज महल की याद में बनवाया था. वह शरीके हयात उनके चौदहवें बच्चे को जन्म देते वक्त दुनिया से रुखसत हो गयी थीं. अगर आज के ‘हम दो हमारे दो’ या ‘हमारे एक’ के दौर में इस तारीख को देखा जाये, तो शायद इसे जुल्म ही करार दिया जायेगा.

कई विद्वानों ने तो इस पर बाकायदा बहस भी की है कि क्या यह वाकई मोहब्बत थी? यही नहीं, अगर बहस हो, तो मुल्क की हर ऐतिहासिक इमारत पर बहस हो कि उनका इतिहास कैसा था. मुगलों की बनायी इमारतों में हिंदुस्तानी वास्तु कला का सही आईना नजर आता है. इसलिए हमें अपने मुल्क की सभी तारीखी इमारतों के बारे में जानना और समझना चाहिए. हमें सिर्फ इनकी सियासी सूरते-हाल पर नहीं, बल्कि इनकी समाजी पहचान को भी देखना चाहिए.

उम्मीद तो यही है कि जब हम अपने मुल्क की तारीख को जानने की कोशिश करें, तो उसे कोई सियासी या मजहबी रंग न दें, बल्कि अच्छी या बुरी जैसी भी उसकी तारीखी हकीकत है, उसे उसी तरह जानें और समझें. अगर हम यह कर पाये, तो शायद ऐतिहासिक गलतियों से हम सबक ले सकेंगे और उन्हें दोहराने से हम बचेंगे.

इससे हमारे मुल्क की आनेवाली तारीख खुशियों और तरक्की की कहानियों से भरी होगी. हर सियासी पार्टी को अपने सदस्यों के लिए मुल्क की तारीख को समझने के लिए वर्कशॉप का आयोजन करना चाहिए. राजनेताओं से यह भी गुजारिश है कि जो हो गया उसे तो हम सब जानते हैं, लेकिन अब जो भी हो रहा है, वह आनेवाले वक्त की तारीख होगा, इस बात का जरूर ख्याल रखें.

क्योंकि तारीख कुछ भूलती नहीं है. सब कुछ कहीं न कहीं दर्ज हो जाता है. आप के नाम के साथ, आप के काम के साथ. यह फैसला आपको करना है कि आप तारीख में कैसे दर्ज होना चाहते हैं. अच्छे काम और अच्छे नाम के साथ या फिर उन लोगों की तरह, जिन्हें इतिहास कभी महान नहीं मानता.

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