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यह कैसी देशभक्ति है ?

लगभग 30 वर्ष पहले क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्ट इंडीज का पराभव आरंभ हुआ और एलन बॉर्डर के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का दबदबा पूरे विश्व पर छा गया. ऑस्ट्रेलिया की टीम में खुद बॉर्डर समेत कई खिलाड़ी बायें हाथ से खेलनेवाले थे और उनके सलामी बल्लेबाज केप्लर वेसेल्स एक दक्षिण अफ्रीकी थे. उन्होंने […]

लगभग 30 वर्ष पहले क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्ट इंडीज का पराभव आरंभ हुआ और एलन बॉर्डर के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का दबदबा पूरे विश्व पर छा गया. ऑस्ट्रेलिया की टीम में खुद बॉर्डर समेत कई खिलाड़ी बायें हाथ से खेलनेवाले थे और उनके सलामी बल्लेबाज केप्लर वेसेल्स एक दक्षिण अफ्रीकी थे. उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता इसलिए बदल ली थी कि वे अपने मूल देश के लिए नहीं खेल सकते थे. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका में तब काली, एशियाई और मिश्रित आबादी को मताधिकार प्राप्त नहीं था और अपने इस रंगभेद की वजह से दक्षिण अफ्रीका विश्व क्रिकेट से बहिष्कृत था.
उसके कुछ ही वर्षों बाद, जिम्बाब्वे निवासी ग्रेयम हीक ने इंग्लैंड की टीम के लिए खेलना प्रारंभ कर दिया और फिर दक्षिण अफ्रीका के केविन पीटरसन ने भी वैसा ही किया. हाल के समय में, ल्यूक रोंकी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड दोनों के लिए खेले और उसी तरह, अवेन मॉर्गन ने आयरलैंड और इंग्लैंड दोनों की नुमाइंदगी की.

इन मिसालों से साफ है कि न तो उन देशों को अपनी टीम से किसी अन्य देशवासी के खेलने पर कोई एेतराज रहा और न ही उन्हें कोई समस्या रही कि उनका कोई देशवासी क्रिकेट में अपना कैरियर चमकाने किसी अन्य देश की शरण ले.

इसी सप्ताह, केरल से भारत के पूर्व तेज गेंदबाज एस श्रीसंत ने यह कहा कि यदि बीसीसीआइ को मेरी जरूरत नहीं है, तो मैं किसी अन्य देश के लिए खेलने पर विचार करूंगा. श्रीसंत के क्रिकेट खेलने पर 2013 के आइपीएल खेलों के दौरान तब पाबंदी लगी थी, जब उन पर स्पॉट-फिक्सिंग के आरोप लगे. वे उस वक्त 29 वर्ष के थे. स्पॉट फिक्सिंग प्रत्येक गेंद पर शर्त लगाने को कहते हैं. मसलन, किसी गेंदबाज द्वारा कोई विकेट लेने, एक नो बॉल फेंकने या किसी बल्लेबाज द्वारा किसी खास गेंद पर चौका लगाने जैसी चीजों पर सट्टेबाज शर्तें लगाते हैं.
यदि एक सट्टेबाज किसी गेंदबाज से ऐसा संपर्क साध सके कि उसके एक ओवर के परिणाम पहले ही तय कर लिये जायें, तो फिर वह उन व्यक्तियों (जो ज्यादातर गुजराती ही होते हैं) से शर्त लगा सकता है, जो सिर्फ जीत-हार की शर्तें लगाते हुए ऊब कर किन्हीं अन्य अधिक रोमांचक संभावनाओं पर शर्तों के स्वागत को उद्यत हैं. ऐसी शर्तें जीत पाना आसान नहीं होता. कई वर्षों पहले, ब्रिटिश मीडिया ने कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ियों को ऐसा करते पकड़ा था. उसी वक्त श्रीसंत पर भी ऐसे ही आरोप लगे, जिन्होंने उन्हें खेलने पर पाबंदी की हद तक पहुंचा दिया. मगर हाल में एक न्यायालय ने यह पाबंदी पलट दी.
श्रीसंत पिछले चार सालों में खेल न सके और अदालत के इस हालिया फैसले के बाद उन्होंने अपनी निराशा यह कहते हुए प्रकट की कि ‘यह पाबंदी बीसीसीआइ ने लगायी थी, न कि आइसीसी ने. यदि भारत के लिए मेरा खेल पाना मुमकिन न हो सके, तो मैं किसी भी अन्य देश के लिए खेल सकता हूं, क्योंकि मैं 34 वर्ष की उम्र के उस मुकाम पर हूं, जब अधिकतम छह वर्ष और खेल सकूंगा. क्रिकेट से प्यार करनेवाले एक इंसान के रूप में मैं क्रिकेट खेलना चाहता हूं. और फिर बीसीसीआइ तो एक निजी फर्म ही है न! यह तो हम हैं, जो इसके द्वारा चयनित टीम को ‘भारतीय’ टीम की संज्ञा दे देते हैं, पर जैसा सबको विदित है, आखिरकार यह केवल एक निजी निकाय ही तो है.’
श्रीसंत के नजरिये को समझ पाना मुश्किल नहीं है. उन्होंने अपना पूरा जीवन एक ऐसे खेल को समर्पित कर दिया, जिसे अब उन्हें खेलने नहीं दिया जा रहा. ऐसी स्थिति में वे दूसरे देश की ओर से क्यों न खेलें? मुझे इसमें कोई भी बुराई नजर नहीं आती. एक पल के लिए हम नागरिकता में परिवर्तन जैसी वास्तविक दुनिया की उन समस्याओं को परे रख दें, जो इससे पैदा होंगी. एक दक्षिण अफ्रीकी व्यक्ति के लिए ऑस्ट्रेलियाई हो जाना एक भारतीय के लिए किसी अन्य राष्ट्रीयता को अंगीकार करने की अपेक्षा अत्यंत आसान है. गौर करनेवाली बात यह भी है कि श्रीसंत ने किसी अन्य देश की ओर से केवल टी20 खेलने के ही संकेत दिये हैं.
उनका फैसला चाहे जो भी हो, मैं तो यही कहूंगा कि जब अपने देश को उनकी आवश्यकता नहीं रह गयी है, तो उनसे यह अपेक्षा करना कि वे किसी अन्य देश की ओर से न खेलकर स्वदेश के प्रति अपनी वफादारी प्रदर्शित करें, न्यायोचित नहीं होगा. केवल हम भारतीय ही क्रिकेट को इतनी गंभीरता से लेते हैं, क्योंकि हमने इस खेल में अत्यधिक राष्ट्रीयता का निवेश कर रखा है. जब बीसीसीआइ की टीम पाकिस्तान क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा नियंत्रित एक टीम पर जीत दर्ज करती है, तो हम यह मान लेते हैं कि यह ‘पाकिस्तान’ पर ‘भारत’ की विजय है. अपनी क्रिकेट टीम की जीत-हार में हम जिस भावुकता का प्रदर्शन करते हैं, वह हमारी लोकप्रिय संस्कृति के किसी अन्य रूप में नहीं दिखता.
यदि कोई भारतीय हीरो-हिरोइन बॉलीवुड छोड़कर हॉलीवुड जाने का फैसला लेते हैं, तब तो हम इसे राष्ट्र के प्रति विश्वासघात नहीं मानते? इसके उलट, हम तो यहां तक सोच लेते हैं कि यह राष्ट्र के लिए फख्र की बात है कि सिनेमा के क्षेत्र में कोई भारतीय विदेशों में अभिनय कर नाम कमा रहा है. तो फिर अपने क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में हम यह मापदंड क्यों बदल दें? इस बिंदु पर हमारी मानसिकता कुछ अबूझ-सी है और यह विसंगति किसी के भी मन में श्रीसंत के प्रति सहानुभूति पैदा कर सकती है.
एक निजी निकाय के रूप में बीसीसीआइ को यह तय करने का पूरा अधिकार है कि उसकी ओर से कौन खेले और कौन नहीं खेले. वैसे यह निकाय अपने आप में विश्व के सबसे भ्रष्ट खेल निकायों में एक है, पर हम इस मुद्दे को अभी छोड़ दें. हममें से किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह श्रीसंत को यह सलाह दे कि वह अपने कैरियर अथवा प्रतिभा के विषय में क्या करें और क्या न करें. मगर, उनसे यह अपेक्षा करना कायरतापूर्ण तथा बचकाना ही होगा कि वह क्रिकेट से संबद्ध हमारी कल्पित देशभक्ति की मशाल थामे रहें.
(अनुवाद: विजय नंदन)
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com
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