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वैश्विक राजनीतिक समीकरण

डॉ सलीम अहमद राजनीतिक विश्लेषक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ लॉर्ड पामर्स्टन ने ठीक ही कहा है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में न तो कोई हमारा स्थायी मित्र है, और ना ही कोई स्थायी शत्रु, बल्कि हमारे हित स्थायी हैं, और प्रत्येक राष्ट्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने हितों की पूर्ति करे. इस समय, विश्व […]

डॉ सलीम अहमद

राजनीतिक विश्लेषक

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ लॉर्ड पामर्स्टन ने ठीक ही कहा है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में न तो कोई हमारा स्थायी मित्र है, और ना ही कोई स्थायी शत्रु, बल्कि हमारे हित स्थायी हैं, और प्रत्येक राष्ट्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने हितों की पूर्ति करे. इस समय, विश्व राजनीति में जिस प्रकार नये समीकरण उभर रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि भारत-अमेरिकी संबंध इसका अच्छा उदाहरण है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की अनूठी शैली ने भारत की विदेशनीति को एक नया मोड़ दिया है, जिसके कारण, एक ओर जहां विदेशनीति को अभूतपूर्व गति मिली है, वहीं दूसरी ओर, भारत के वैदेशिक संबंधों में तेजी से प्रगाढ़ता आयी है. विश्व-पटल पर भारत की नयी पहचान बनाने के साथ ही, दूसरे राष्ट्रों को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के जरिये भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया है. भारत-जापान संबंध इसका ताजा उदाहरण हैं.

विश्व में भारत की उभरती हुई सकारात्मक छवि को देखकर लगता है कि अब भारत विश्व मामलों में अपनी निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है. हालांकि, भारत के लिए कड़ी चुनौतियां भी हैं, जिन पर मंथन जरूरी है.

एक ओर, जहां भारत अमेरिका के बहुत करीब आया है, वहीं दूसरी ओर, भारत अपने परंपरागत मित्र रूस, जिसने हमेशा संकट के समय भारत का साथ दिया, उससे दूर जा रहा है. संबंधों में लगातार खाई बन रही है. परिणामतः रूस इस बढ़ती हुई खाई को पाटने के लिए पाकिस्तान के साथ संबंधों को बढ़ा रहा है. गौरतलब है कि भारत पहले रूस से सुरक्षा संबंधी सामग्री एवं हथियार खरीदता था, पर अब भारत की प्राथमिकता सूची में इस्राइल और अमेरिका हैं.

भारत की विदेशनीति में हुए बदलाव को रूस बखूबी समझ रहा है, इसी को केंद्रित करते हुए मास्को ने इस्लामाबाद की ओर हाथ बढ़ाया, और हाल ही में, दोनों राष्ट्रों की सेनाओं ने संयुक्त सैन्य-अभ्यास संपन्न किया.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि भारत-अमेरिकी संबंधों के पीछे मुख्य कारण रूस का, वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रभावशाली नेतृत्व में, एक विश्व शक्ति के रूप में उभरना एवं रूस और चीन के बीच संबंधों का विकसित होना है.

साथ ही, यह स्वाभाविक भी है कि ‘मित्र का मित्र अपना मित्र होता है’. इस प्रकार रूस और पाकिस्तान के मध्य संबंधों के लिए एक नया मार्ग स्वतः ही बन रहा है. उधर रूस और चीन दोनों अमेरिका के धुरविरोधी हैं. इस दृष्टिकोण से, भारत के लिए अब एक ही विकल्प है, वह है अमेरिका से संबंध मजबूत रखना.

भारत का चीन की ओबोर का नीति का हिस्सा न बनना और भारत-चीन के मध्य डोकलाम विवाद, दोनों ही घटनाओं से स्पष्ट है कि भारत-चीन संबंध अच्छे न होने के कारण शत्रुता लगातार बढ़ रही है. इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान को चीन आर्थिक, सैन्य, एवं तकनीकी सहायता देकर भारत के विरुद्ध दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की स्थिति को मजबूत करता है, ताकि शक्ति-संतुलन बना रहे.

भारत-अमेरिका संबंध इस शत्रुता को और गहरा करता है. दूसरी ओर, रूस और चीन के संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ रही है. इस प्रकार, विश्व-पटल पर एक प्रभावशाली गुट रूस-चीन-पाकिस्तान बनकर उभर रहा है, जो क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत-अमेरिका के भू-राजनीतिक हितों के लिए हानिकारक होगा.

चाणक्य का कथन है कि ‘शत्रु का शत्रु अपना मित्र होता है.’ यह प्रभावशाली गुट इसी नीति का परिणाम है. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों के कारण, इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच संबंधों में खटास बढ़ रही है, और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का नजरिया भी पाकिस्तान को लेकर सकारात्मक नहीं दिख रहा है.

इस कारण पाकिस्तान ने भी वैश्विक समीकरणों को भांपते हुए रूस के साथ हाथ बढ़ाने में एक क्षण की भी देरी नहीं की. स्पष्ट है कि इस्लामाबाद अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए किसी के साथ भी हाथ मिला सकता है.

वहीं इस उभरते हुए गुट के खिलाफ, अमेरिका-भारत-जापान का गुट बन रहा है, फलतः विश्व राजनीति में जिस प्रकार नये राजनीतिक समीकरण उभर रहे हैं, उससे लगता है कि एक बार फिर विश्व में शीतयुद्ध की तरह दो गुट बन रहे हैं. लेकिन इस बार, भारत रूस के साथ न खड़ा होकर अमेरिका के साथ खड़ा है. वेनेजुएला में आयोजित गुट-निरपेक्ष देशों की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी का शामिल न होना, उनकी विदेशनीति में आधारभूत परिवर्तन का संकेत है कि भारत अब गुट-निरपेक्षता की नीति से पीछे हट रहा है.

विश्व राजनीति में भारत का कद बढ़ रहा है, लेकिन, अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध खराब हो रहें हैं, खास कर पाकिस्तान और नेपाल से. विद्वानों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेशनीति का जादू पड़ोसी देशों के ऊपर नहीं चल पाया.

भारत अमेरिका के साथ संबंधों को बढ़ाए, लेकिन रूस की कीमत पर नहीं. मास्को का नयी दिल्ली से अलग होना, चीन और पाकिस्तान की स्थिति को मजबूत करेगा, जो भारत के हितों के लिए अच्छा नहीं होगा.

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