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पहचान के पूर्वाग्रह से ग्रस्त समाज

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया भारत के बारे में एक विचित्र बात यह है कि अगर काेई कुछ कहता है, तो उस बात की तुलना में कहनेवाला ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. बेशक, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन हमारे देश में अगर कुछ विवादास्पद कहा जा […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
भारत के बारे में एक विचित्र बात यह है कि अगर काेई कुछ कहता है, तो उस बात की तुलना में कहनेवाला ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. बेशक, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन हमारे देश में अगर कुछ विवादास्पद कहा जा रहा है, तो जिसने विवादास्पद बातें कही हैं, उसके लिए सबसे पहले उस व्यक्ति की पहचान को उत्तरदायी माना जाता है.
इसीलिए, अगर मैं पाटीदार आरक्षण के पक्ष में बोलता हूं, तो सबसे पहले यह कहा जायेगा कि मैं एक पटेल हूं और अपनी जाति को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा कह रहा हूं. या अगर कोई प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के खिलाफ है, तो कहा जायेगा कि वह व्यक्ति ऐसा इसलिए कह रहा है, क्योंकि वह एक कश्मीरी है और व्यापक हित की कीमत पर अपने समुदाय की तरफदारी कर रहा है. इस सोच के शिकार सबसे ज्यादा भारतीय मुसलमान हैं, जिन पर लापरवाही से तंग सोच रखने और संकीर्णता का आरोप लगाया जाता है.
ऐसी बातें बिना सोचे-समझे कह दी जाती हैं. इस प्रवृत्ति से रोज ही हमारा सामना हो रहा है और वह टेलीविजन समाचारों में दिखाया जा रहा है, इसलिए इसके बारे में अब और वर्णन करने की जरूरत नहीं है. सभी पाठक इसे समझ जायेंगे कि मेरे कहने का क्या आशय है. हालांकि, मैं सोचता हूं कि इस तरह की बातें अभी हमारे उच्च स्तरीय राजनीति, जो पूरी तरह विनम्रता और शिष्टाचार से भरी हुई है, में प्रवेश करती दिखायी नहीं दे रही है. लेकिन, मैं मानता हूं कि भारत के उपराष्ट्रपति पर प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये बयान के साथ ही यह परंपरा टूट चुकी है.
राज्यसभा टीवी पर करण थापर को दिये गये एक साक्षात्कार में उनसे यह प्रश्न पूछा गया था, ‘मुसलिम समुदाय भयभीत है, वह असुरक्षित महसूस कर रहा है.’ भारतीय मुसलमान जो कुछ भी महसूस करता है, क्या उसके बारे में यह सही मूल्यांकन है, या इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है? इसका जवाब देते हुए हामिद अंसारी ने कहा, ‘अलग-अलग हिस्सों से जो कुछ भी मैंने सुना है, उस आधार पर यह एक सही मूल्यांकन है. मैंने बेंगलुरु में भी ऐसा सुना और देश के अन्य भागों में भी. उत्तर भारत के बारे में मैंने ज्यादा सुना है, असहजता का माहौल है और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है.’
हामिद अंसार के कहे इन शब्दों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और इसे अखबारों में सुर्खियां बना दिया गया. अंसारी ने कितना नपा-तुला बोला इस बारे में जानने के लिए इस साक्षात्कार को पूरा देखना या पढ़ना होगा. उन्होंने कुछ भी गलत नहीं बोला है. वे जो कुछ भी सुन या देख रहे हैं, उसी आधार पर वे मूल्यांकन कर रहे हैं. यहां तक कि वे सरकार को भी दोष नहीं देते हैं. लेकिन, भाजपा की प्रतिक्रिया बेहद अनैतिक और आक्रामक रूप से सांप्रदायिक है.
हामिद अंसारी के कार्यकाल के अंतिम दिन उनका मजाक उड़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने जो कुछ भी कहा, उससे मैं बेहद आहत और दुखी था. पाठकों को याद होगा कि हामिद अंसारी शुरुआत से ही भाजपा के निशाने पर थे. भाजपा के महासचिव राम माधव ने हामिद अंसारी के बर्ताव को लेकर कुछ खराब टिप्पणी की थी, जिसकी आलोचना होने के बाद, बाद में उन्होंने अपने ट्विटर से उसे डिलीट कर दिया था. मैं उसे दुहराऊंगा नहीं, क्योंकि वह बेहद अप्रिय बात थी. इतना सब कुछ होने के बाद भी हामिद अंसारी ने मर्यादा और शालीनता बनाये रखी थी. उनके कार्यकाल के अंतिम दिन नरेंद्र मोदी ने उनके सामने कहा कि उन्होंने (मोदी ने) राजनयिक का सही अर्थ तब जाना, जब वे प्रधानमंत्री बने, क्योंकि एक राजनयिक से हाथ मिलाने या उसकी मुस्कान के बारे में तुरंत जानना मुश्किल था.
नरेंद्र मोदी ने कहा कि हामिद अंसारी के परिवार का कांग्रेस और खिलाफत आंदोलन के साथ लंबा रिश्ता रहा है. उन्होंने कहा कि एक राजनयिक के तौर पर उनका काम मध्य पूर्व पर केंद्रित था और वे उसी प्रकार के माहौल, समान विचारधारा और वैसे ही लोगों के साथ जुड़े रहे थे. नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी हामिद अंसारी ने अल्पसंख्यक आयोग और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के साथ ही ज्यादा काम किया था. मोदी ने इन चुभते शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त की, ‘आपके भीतर कुछ छटपटाहट रही होगी (उन 10 वर्षों में जब अंसारी उपराष्ट्रपति थे)’ , लेकिन अब से आपको इस असमंजस का सामना नहीं करना होगा. आपको आजादी का अहसास होगा और आपको अपनी विचारधार के अनुसार काम करने, साेचने और बोलने का अवसर मिलेगा.’
प्रधानमंत्री के अनुसार अंसारी किस तरह की विचारधारा रखते हैं? इसके बारे में मोदी ने नहीं कहा. उन्हें इसे कहने की जरूरत नहीं थी. मोदी के इरादों को समझना असंभव नहीं है. अंसारी की मुसलिम पहचान के कारण उन्होंने जान-बूझकर उन्हें कम आंका था, एक राजनयिक के तौर पर उनके कैरियर को अरब दुनिया और शिक्षाविद और असिष्णुता पर उनकी प्रतिक्रिया को उनके धर्म के साथ जोड़कर देखा था. मोदी के समर्थकों ने उनके संकेतों को समझकर ट्विटर और टेलीविजन चैनलों पर अंसारी के खिलाफ बेहद भद्दे ढंग से प्रहार किया.
हामिद अंसारी ने अपने भाषण को दुहराते हुए कहा, ‘मुझपे इल्जाम इतने लगाये गये, बेगुनाही के अंदाज जाते रहे.’ इसका अर्थ यह है कि उन पर इतनी बार गलत दोषारोपण किया गया कि अब उनका बेगुनाह साबित होना नामुमकिन है.’ एक पूर्व उपराष्ट्रपति द्वारा कहे गये इन शब्दों से क्या सभी भारतीयों को चिंतित नहीं हाेना चाहिए?
संभवत: हम इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचेंगे. और अगर हम ऐसा करते भी हैं, तो हममें से ज्यादातर लोग उनकी इस चेतावनी को खारिज कर देंगे. क्या भारतीय मुसलमान इस माहौल में असुरक्षित हैं? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर भारत के उपराष्ट्रपति कहते हैं कि मुसलमान असुरक्षित हैं, तो यही कहा जायेगा कि वे ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि वे भी एक मुसलमान हैं.

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