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हम जहर खाने को मजबूर

सुभाष चंद्र कुशवाहा वरिष्ठ टिप्पणीकार खेती-बारी में कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण हमारे देश में गुर्दे, त्वचा ,बांझपन, अल्सर और कैंसर की बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं. इसलिए जरूरी है कीटनाशकों का प्रयोग रोका जाये और अविलंब जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाये. हमारी थाली में जहर परोसा जा रहा है, […]

सुभाष चंद्र कुशवाहा
वरिष्ठ टिप्पणीकार
खेती-बारी में कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण हमारे देश में गुर्दे, त्वचा ,बांझपन, अल्सर और कैंसर की बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं. इसलिए जरूरी है कीटनाशकों का प्रयोग रोका जाये और अविलंब जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाये.
हमारी थाली में जहर परोसा जा रहा है, इसका भान दूसरे देशों से आ रहीं खबरों से हो रहा है. हाल ही में भारतीय फल, सब्जियों और चाय को यूरोपियन यूनियन के देशों और सऊदी अरब ने जहरीला बताते हुए आयात पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया. यह आश्चर्य का विषय है कि भारतीय चाय में अभी भी डीडीटी (कीटनाशक) की मात्र पायी जाती है. अपने देश में अब तक लगभग 190 प्रकार के रसायनों, कीटनाशकों या फंफूदी नाशकों का पंजीयन हुआ है, जिनमें से केवल 50 की बर्दास्त क्षमता से हम भिज्ञ हैं. इनके अलावा नकली दवाओं की लंबी सूची भी है.
‘मासेलकर समिति’ की सिफारिश पर संसद में संशोधन विधेयक यही सोच कर लाया गया था कि कुछ नकेल लगे पर बात नहीं बनी. डीडीटी, बीएचसी, काबरेनेट, इंडोसल्फान, डेलड्रीन जैसे रसायन, कृषि एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रहे हैं, जो बाहर प्रतिबंधित हैं. देश में कुल 40 ऐसी दवाएं कृषि क्षेत्र में प्रयोग में लायी जा रही हैं, जो बाहर प्रतिबंधित हैं. डीडीटी 1972 से और डेलड्रीन जैसी घातक कीटनाशक 1970 से अमेरिका में प्रतिबंधित है, मगर हमारे चाय बगानों में बहुतायत में प्रयोग हो रहा है. हमारे यहां कीटनाशकों का बेचना या खरीदना नियंत्रित नहीं है.
कीटनाशकों के प्रयोग में जैसी लापरवाही बरती जा रही है, उससे न केवल प्रयोगकर्ता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, अपितु हवा, पानी और सभी खाद्य पदार्थ विषैले हो रहे हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार, मां के दूध में डीडीटी की मात्र, मनुष्य के शरीर के लिए निर्धारित सामान्य मात्र से 77 गुना अधिक हो चुकी है. अहमदाबाद स्थित ‘कंज्यूमर एजूकेशन एंड रिसर्च सोसायटी’ ने अपने अध्ययन में आटे की एक मशहूर ब्रांड में खतरनाक रसायन ‘लिंडेन’ पाया था. पानी विषैला होने से जमीन की ऊर्वरता घट रही है. पानी में रहनेवाले तमाम उपयोगी जीव-जंतुओं और मछलियाें की प्रजातियां लुप्तप्राय हो रही हैं.
कारखानों के विषैले कचरे नदियों में गिर कर मछलियों को विषाक्त करते हैं. कीटनाशक, हाइड्रोकार्बन और भारी धातुओं के अवशेष मछलियों में भारी मात्र में मौजूद हैं, इसलिए ये मछलियां खाने योग्य नहीं हैं. पशु-पक्षी विषैले खाद्य पदार्थो और वनस्पतियों को खाकर मर रहे हैं. गौरैया विलुप्त होने के कगार पर है. डिक्लोफैनक नामक दवा से जानवरों का मांस जहरीला हो गया है, जो गिद्धों के विलुप्त होने का कारण है.
हमारे देश में दवाओं के साथ दिये गये निर्देशों को ज्यादातर किसान पढ़ नहीं पाते. कीटनाशकों की खरीद और प्रयोग वे दूसरे किसानों से पूछ कर करते हैं. पानी और उनमें मिलाये जानेवाले कीटनाशकों की मात्र उचित नहीं रखी जाती. छिड़काव को लेकर जरूरी सावधानियां नहीं बरती जाती. सब्जियों को कीटनाशक छिड़कने के कितने दिनों बाद बाजार में लाया जाना चाहिए, इसका ख्याल नहीं रखा जाता. जल्द मुनाफा कमाने के लिए फलों को कार्बाइड से पकाया जाता है.
सब्जियों-फलों के छिलकों में घुला कीटनाशक हमारे शरीर में पहुंच रहा है. दुधारू पशुओं के स्तनों में ‘आक्सीटोक्सीन’ सूई लगा कर दूध निकाला जा रहा है, जो हारमोंस अंसुतलन, गुर्दे की खराबी, कैंसर और बच्चों में मानसिक विकृतियां पैदा कर रहा है. हालांकि ‘पशुक्रूरता निवारण अधिनियम 1960’ की धारा 12 के तहत यह अपराध है. ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ ने कुछ साल पहले 2,205 गायों-भैंसों के दूध का परीक्षण कर पाया कि 85 प्रतिशत जानवरों में कीटनाशकों की मात्र, ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ द्वारा निर्धारित मात्र से ज्यादा है.
भटिंडा व वारांगल में सबसे ज्यादा कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है. इसलिए यहां सबसे ज्यादा बांझपन और कैंसर के मरीज बढ़े हैं. भटिंडा के ज्यादातर जमीनी पानी में क्लोराइड की मात्र तय मानक से ज्यादा है. वहां की जमीन बंजर हो रही है. 2004 में महाराष्ट्र के अंगूरों में ज्यादा कीटनाशक पाये जाने पर जापान ने अंगूर लदा जहाज लौटा दिया था.
अजीब विडंबना है कि कीटनाशक बनानेवाली कंपनियों के दबाव में सुलभ और सस्ती जैविक (आर्गेनिक) खेती को हतोत्साहित किया जा रहा है. कुतर्क यह दिया जाता है कि विश्व की तुलना में भारत में केवल 2 प्रतिशत कीटनाशकों का प्रयोग होता है, जबकि खाद्यान्न उत्पादन में भारत का हिस्सा 16 प्रतिशत है. इन तथ्यों को नजरअंदाज किया जाता है कि विदेशी कंपनियों द्वारा हमारे देश में प्रतिबंधित दवाएं बेच दी जाती हैं. चूंकि हमारे किसान प्रशिक्षित नहीं हैं, इसलिए वे जरूरी सावधानियों या कीटनाशकों के कुप्रभावों के बारे में नहीं जानते हैं.
खेती-बारी में कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण हमारे देश में गुर्दे, त्वचा ,बांझपन, अल्सर और कैंसर की बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं. इसलिए जरूरी है कीटनाशकों का प्रयोग रोका जाये और अविलंब जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाये.

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