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भारत-बांग्लादेश संबंध को नयी ऊंचाई

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के चार-दिवसीय दौरे पर हैं. वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में अनेक उतार-चढ़ाव आये हैं, पर राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों में परस्पर सहयोग लगातार मजबूत हुए हैं. मौजूदा यात्रा में ऊर्जा, रक्षा और नदी समझौतों के संदर्भ में प्रगति की संभावनाएं […]

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के चार-दिवसीय दौरे पर हैं. वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में अनेक उतार-चढ़ाव आये हैं, पर राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों में परस्पर सहयोग लगातार मजबूत हुए हैं. मौजूदा यात्रा में ऊर्जा, रक्षा और नदी समझौतों के संदर्भ में प्रगति की संभावनाएं हैं.

।। पुष्परंजन ।।

( ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक )

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को बांग्लादेश में लोग बड़े प्यार से ‘दादाबाबू’ बुलाते हैं. ‘दादाबाबू’ वहां बड़ी बहन के पति के वास्ते बोलते हैं. देश की प्रथम महिला शुभ्रा मुखर्जी नारेल जिले के भद्रबिला गांव की थीं. भद्रबिला की दीदी दो साल पहले दुनिया छोड़ गयीं, मगर ‘दादाबाबू’ का सम्मान कम नहीं हुआ है. इस बार प्रधानमंत्री शेख हसीना ‘दादाबाबू’ के लिए धोती-कुर्ता और हिलसा मछली लेकर आयी हैं. पिछली बार 19 अगस्त, 2015 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की दिवंगत पत्नी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए शेख हसीना नयी दिल्ली आयी थीं.

हिलसा मछली बेहतरीन स्वाद के साथ-साथ शुभ कार्यों की प्रतीक है. 21 साल पहले 1996 में शेख हसीना ने ‘हिलसा’ पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बाबू के लिए उपहार स्वरूप भिजवाया था, तब 12 दिसंबर को गंगा जल समझौते पर दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर हुआ था. तो क्या इस दफा तीस्ता जल समझौते का कुछ होना है? विदेश मंत्रालय के अधिकारी बस इतना संकेत दे रहे हैं कि बातचीत ‘प्रगति’ पर है. राष्ट्रपति भवन के 9 अप्रैल वाले शाही डिनर में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उपस्थित होंगी. लेकिन क्या तीस्ता पर उनकी ओर से हामी होगी? यह इस समय का सबसे बड़ा सवाल है.

* तीस्ता पर ममता का ट्रंप कार्ड

भारत-बांग्लादेश के बीच 54 नदियां समान रूप से बहती हैं. इन साझी नदियों से लाभ प्राप्त करने के लिए जून 1972 से ‘संयुक्त नदी आयोग’ (जेआरसी) काम कर रहा है. तीस्ता पर क्या करना है, इसकी पटकथा अवश्य लिखी जायेगी, ऐसी उम्मीद दोनों तरफ से है. बांग्लादेश-भारत संबंध को पटरी पर बनाये रखना है, तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से विमर्श जरूरी है, यह संदेश बार-बार गया है. नवंबर 2000 तक ज्योति बसु बंगाल के मुख्यमंत्री रहे, उनके बाद ग्यारह साल तक बुद्धदेब भट्टाचार्य इस पद की जिम्मेदारी संभालते रहे, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि बांग्लादेश से किसी समझौते में इन नेताओं ने केंद्र पर हावी होने की चेष्टा की. 2011 में तीस्ता समझौते के करीब मनमोहन सिंह और शेख हसीना पहुंच गये थे, मगर ऐन वक्त ममता बनर्जी ने ‘वीटो’ लगा दिया. हालांकि, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253 केंद्र को यह अधिकार देता है कि किसी देश से संधि के लिए सूबे की सरकार से सहमति लेने को वह बाध्य नहीं है.

* विरोध की वजह

अपार बहुमत के साथ आयी मोदी सरकार को भी ममता बनर्जी ने हड़का रखा है. उनसे पूछे बगैर ढाका बात नहीं होती है. सुषमा स्वराज जब जून 2014 में तीन दिनों की बांग्लादेश यात्रा पर जा रही थीं, तब ममता बनर्जी से फोन पर बात करना उन्होंने मुनासिब समझा था. 6 जून, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी, ममता बनर्जी के साथ दो दिन के लिए बांग्लादेश गये, तब तीस्ता पर बात बनने की उम्मीद जग गयी थी. मगर, उस सौहार्द्रपूर्ण माहौल में भी ममता के तेवर तीस्ता पर सख्त थे. ‘ओई पार बांग्ला’ की आंतरिक राजनीति में तीस्ता समझौता अहम है. विपक्षी बीएनपी, जमात-ए-इसलामी नेता गाहे-बगाहे शेख हसीना की आलोचना करते हैं कि वह देश के अनुकूल समझौता कराने में विफल रही हैं. साल 2019 में बांग्लादेश में भी आम चुनाव है. तीस्ता सिक्किम से बहती है, मगर मुख्यमंत्री पवन चामलिंग से तीस्ता समझौते पर राय नहीं ली जाती. यों, सिक्किम की पनबिजली परियोजनाओं की वजह से अब तीस्ता के प्रवाह में कमी आने लगी है. भारत 1,907.8 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) जल का इस्तेमाल कर रहा है, जिसमें बंगाल जैसे बड़े सूबे का शेयर मात्र 176 ‘बीसीएम’ है, और बांग्लादेश 1 हजार 211 ‘बीसीएम’ जल स्रोत का इस्तेमाल कर रहा है. ममता बनर्जी द्वारा विरोध की वजह जल स्रोत पर अधिक शेयर की मांग है, जो बहुत हद तक वाजिब है.

* सुरक्षा का सवाल

भारत-बांग्लादेश के बीच 4096.7 किलोमीटर लंबी सीमा चुनौती भरी है. इसमें 1116.02 किलोमीटर सीमा नदियों से लगी है. भारत-बांग्लादेश की सीमाएं बंगाल, त्रिपुरा, असम, और मेघालय को छूती है. 31 जुलाई 2015 को दोनों देशों के नागरिकों ने इंक्लेव (चित्तोमहल) का आदान-प्रदान किया, जिसमें भारत के 102 और बांग्लादेश के 71 इंक्लेव थे. इंक्लेव में उभयपक्षीय देशों के नागरिकों की आखिरी बसावट 30 नवंबर 2015 को संपन्न हो गई. यह मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक थी, जिसकी कोशिशें 1974 के बाद कई सरकारों ने की थीं. 7 मई, 2015 को संविधान के 100वें संशोधन के बाद इसका मार्ग प्रशस्त हुआ. इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि भारत सुरक्षा चिंता से मुक्त है.

* आतंकवाद, घुसपैठ, और पशु तस्करी

बांग्लादेश से सबसे बड़ी समस्या घुसपैठ, और आतंकवाद की रही है. इससे लगी सीमाएं ‘कैटल कॉरीडोर’ के नाम से कुख्यात हैं. 2015 में बीएसएफ ने डेढ़ लाख मवेशियों को पकड़ा था. 2016 में पशु तस्करी में कमी आयी, और पकड़े गये पशुओं की संख्या घट कर एक लाख 20 हजार रह गयी. 2015 से 2016 के आखिर तक बीएसएफ द्वारा फायरिंग में 77 लोग सीमा पार करते समय मारे गये, और 108 घायल हुए. बाज दफा दोनों देशों के बीच यह तनाव का कारण बनता है. 2009 से 2014 के बीच बांग्लादेश ने भारत विरोधी आतंकी गुटों के 17 सरगनाओं को पकड़ने का दावा किया है, जिनमें से कईयों का प्रत्यर्पण भारत किया गया है. इससे दोनों देशों की लीडरशिप का आपसी भरोसा बढ़ा है.

* प्रतिरक्षा सहयोग

भारत ने इस बार पांच अरब डॉलर की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ बांग्लादेश को देना स्वीकार किया है. पहले यह तीन अरब डॉलर थी. 2016-17 में बांग्लादेश का प्रतिरक्षा बजट मात्र 2.8 अरब डॉलर का है, जिस वजह से उसकी निर्भरता चीन पर अधिक रही है. चीन ने जब से दो पनडुब्बियां बांग्लादेश को देनी स्वीकार की है, बंगाल की खाड़ी में हमारी सुरक्षा चिंता बढ़ गयी है. पांच अरब डॉलर की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ से बांग्लादेश को भारत से मिलिट्री हार्डवेयर खरीदने में आसानी होगी, और शायद पांच साल की अवधि वाले सुरक्षा सहमति पत्र पर अमल के बाद बांग्लादेश, चीनी फंदे से बाहर निकल सके. प्रतिरक्षा सहमति पत्र में टेक्नोलॉजी के स्तर पर सहयोग, समुद्री अधोसंरचना विकास जैसे सामरिक विषयशामिल हैं.

*ऊर्जा जरूरतें, और परमाणु बिजलीघ्र

इस समय बांग्लादेश को 2600 मेगावाट बिजली की सप्लाइ भारत से की जा रही है. उसकी ऊर्जा जरूरतों के लिए पूर्वोत्तर में पनबिजली परियोजनाएं, सिलीगुड़ी से बांग्लादेश के पार्बतीपुर तक हाइ स्पीड डीजल पाइप लाइन बनाने की व्यवस्था की जायेगी. ढाका से 160 किलोमीटर दूर रूपुर में दो परमाणु बिजलीधर रूसी कंपनी ‘रोसआतोम’ बना रही है, जिसमें भारतीय सहभागिता मील का पत्थर साबित होगा. ‘रूपुर-वन’ पर काम अगस्त 2017 से, और रूपुर-2 एटमी पावर स्टेशन 2018 से बनना आरंभ होगा. ओएनजीसी और बीपीसी को 6900 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइनें लगानी हैं, जो पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार और बांग्लादेश की ऊर्जा जरूरतें पूरी करेंगी. बस यही मनाइये कि सब कुछ सुचारू रूप से चले!

अब तक

दक्षिण एशिया के ये पड़ोसी देश 4000 किलोमीटर से अधिक सीमा साझा करते हैं. दिसंबर, 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद अलग और स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश को मान्यता देने वाला भारत पहला देश था. सबसे पहले राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद बांग्लादेश के भारत का सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक सहयोग लगातार बढ़ता ही गया है.

द्विपक्षीय व्यापार

पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक विकास के मोर्चे पर दोनों देशों के बीच संबंध प्रगाढ़ हुए हैं. वर्ष 2015-16 (जुलाई-जून तक) में भारत ने बांग्लादेश को 5452.90 मिलियन डॉलर का निर्यात किया था, जबकि इस अवधि में बांग्लादेश से 689.62 मिलियन डॉलर का आयात हुआ था. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 2011-12 से 2015-16 के बीच दोनों के आपसी व्यापार में 17 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई. भारत से निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से शेख हसीना ने दो विशेष आर्थिक क्षेत्र मोंग्ला और भेड़ामारा की घोषणा की है. यातायात से जोड़ने के लिए भी कोलकाता-ढाका-अगरतला और ढाका-गुवाहाटी-शिलांग की बस सेवा की शुरुआत की गयी है.

सीमा का मुद्दा

विभाजन के बाद से ही अवैध अप्रवासियों का मुद्दा भारत के लिए बड़ी समस्या रहा है. हाल ही सर्वोच्च न्यायालय ने असम के रास्ते भारत में होनेवाली घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा की घेराबंदी का निर्देश दिया है. आतंकवादी वारदातों और तस्करी को रोकने के उद्देश्य से सीमा पर स्थितियां चिंताजनक रही हैं.

आतंकवाद है बड़ी चिंता

शेख हसीना का भारत दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब बांग्लादेश में इसलामिक स्टेट से जुड़ी घटनाओं का सिलसिला तेजी से बढ़ा है. साल 2013 के बाद से धार्मिक ध्रुवीकरण में भी तीव्रता आयी है. हसीना सरकार द्वारा 1971 के युद्ध अपराधियों के खिलाफ चलायी गयी मुहिम के खिलाफ कट्टरपंथी जमातों ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं. आइडीएसए की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश सरकार द्वारा भारतीय विदेश मंत्रालय को भेजी गयी जानकारी में कहा गया है कि हरकत-उल जिहाद-अल इसलामी बांग्लादेश (हुजी-बी) और जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के अनेक आतंकी भारत में घुसपैठ कर चुके हैं. आतंकवाद के मुद्दे भारत के साथ बांग्लादेश का समर्थन सकारात्मक रहा है. गत सार्क सम्मेलन के बहिष्कार और बिम्सटेक में भारत के प्रस्तावों का समर्थन कर बांग्लादेश ने विश्वसनीय पड़ोसी का उदाहरण पेश किया है.

तीस्ता नदी जल विवाद

एक पड़ोसी के रूप में ऊर्जा, निवेश और सुरक्षा जैसे तमाम मुद्दों पर बेहतर साझेदारी और समझदारी होने के बावजूद दोनों देशों के बीच तीस्ता नदी के जल बंटबारे को लेकर लंबे समय से सहमति नहीं बन पायी है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के समय जल बंटवारे पर सहमति बनने के आसार दिख रहे थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आपत्ति उठाये जाने के कारण यह मामला सुलझ नहीं सका था. बांग्लादेश को प्रधानमंत्री को तीस्ता नदी जल बंटवारे समेत कई अन्य मसलों पर फिलहाल कोई हल नहीं निकल सका है, लेकिन उन्हें भविष्य में इसके हल होने को लेकर उम्मीदें हैं.

रक्षा समझौते

भारत-बांग्लादेश के बीच रक्षा प्रशिक्षण को लेकर लंबे समय सहमति रही है. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग से जुड़े दो समझौतों और ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना पर सहमति बनी है. रक्षा सौदों के लिए नयी दिल्ली ने 50 करोड़ डॉलर की मदद घोषणा की है. भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बांग्लादेश अहम भागदारी है, ऐसे में भारत वह हर कदम उठायेगा, जिससे आतंकी या विद्रोही गुट भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल न कर सकें. फिलहाल, बांग्लादेश के लिए चीन सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है. भारत चीनी प्रभावों को कम करने के लिए ट्रेनिंग कॉलेज, मिलिट्री हार्डवेयर, साइबर सुरक्षा और असैन्य परमाणु सहयोग जैसे तमाम मुद्दों पर ठोस और सकारात्मक मुद्दों पर पहल की है.

ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग

दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग सकारात्मक दिशा में बढ़ा है. जल्द ही बांग्लादेश के लिए त्रिपुरा से 60 मेगावाॅट बिजली आपूर्ति शुरू हो जायेगी. वर्ष 2013 से पश्चिम बंगाल 500 मेगावाट और गत वर्ष से त्रिपुरा 100 मेगावाॅट बिजली की आपूर्ति कर रहा है. अगले दो वर्षों में भारत ने बांग्लादेश को दी जानेवाली 500 मेगावाॅट बिजली को बढ़ा कर 1100 मेगावाॅट करने का लक्ष्य रखा है.

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