24.3 C
Ranchi
Friday, March 29, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

भाजपा सुपर हाईवे पर, विपक्ष जीरो पर

राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार छला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से भाजपा के लिए दिल्ली और बिहार एक फांस की तरह था. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लोकल बॉडी चुनाव बुरी तरह हारने और अंदरूनी कलह बढ़ जाने से और बिहार में नीतीश कुमार के साथ आ जाने से भाजपा की यह फांस […]

राजेंद्र तिवारी

वरिष्ठ पत्रकार

छला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से भाजपा के लिए दिल्ली और बिहार एक फांस की तरह था. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लोकल बॉडी चुनाव बुरी तरह हारने और अंदरूनी कलह बढ़ जाने से और बिहार में नीतीश कुमार के साथ आ जाने से भाजपा की यह फांस खत्म हो गयी. भाजपा की राजनीति से असहमति रखने वाले लोगों को लगता था कि नीतीश कुमार विपक्ष की धुरी कर बनकर शराबबंदी, दहेज विरोध व बालविवाह जैसे सामाजिक मुद्दों और महिला सशक्तिकरण के बूते देश में भाजपा के नैरेटिव के बरक्स मजबूत कथा गढ़ने का काम करेंगे. लेकिन कांग्रेस ने इस संभावना पर पानी फेर दिया है.

भ्रष्टाचार विरोधी नैरेटिव अब भाजपा के पक्ष में और मजबूती से दिखाई देगा जिसके नीचे बाकी की सभी चीजें छिपायी जा सकेंगी. लालू प्रसाद और उनके कुनबे का राजनीतिक भविष्य इसी नैरेटिव की भेंट चढ़ जाए, तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए.

भाजपा 2019 के लिए सुपर हाईवे बना रही है

2014 में आम चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने सत्ता की राजनीति के लिए अपना डिजाइन और आर्किटेक्चर गढ़ना शुरू किया. इसमें कुछ मौलिक हो न हो, लेकिन इसमें विपक्ष को प्रतिक्रियावादी बनाकर चारों खाने चित्त करने की क्षमता जरूर है. नीतीश कुमार का भाजपा के साथ जाना इसका मजबूत उदाहरण है. जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने 70 में से 67 सीटें जीतकर और बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में महागठबंधन ने 243 में से 178 सीटें जीतकर भाजपा को चारों खाने चित्त कर दिया था, तबसे यह कहा जाने लगा था कि एकजुट विपक्ष भाजपा को 2019 में सत्ता से बेदखल करने की क्षमता रखता है, बस उसे एक अच्छा नेता मिल जाए. पंजाब व गोआ में और दिल्ली के म्युनिसपल चुनावों में आप के कमजोर प्रदर्शन व आप की अंदरूनी कलह और उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन के हश्र के बाद सिर्फ नीतीश कुमार ही एक मात्र ऐसे नेता दिखायी दे रहे थे जो देश के स्तर पर नरेंद्र मोदी के सामने बराबरी से खड़े हो सकते थे.बशर्ते विपक्ष इनके साथ एकजुट हो सके. लेकिन भाजपा के आर्किटेक्चर व डिजाइन ने इस संभावना को भी समाप्त कर दिया. नजर डालिये विपक्षी नेताओं पर तो अभी कोई आपको इस कद-काठी का न दिखाई दे रहा होगा जो नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सके. यानी भाजपा 2019 के आम चुनाव के लिए सुपर हाईवे बना रही है.

दिग्भ्रमित और किंकर्तव्यविमूढ़ कांग्रेस

विपक्ष में आने के बाद बिहार का घटनाक्रम कांग्रेस की महाविफलता ही कही जाएगी. कांग्रेस जिन मूल्यों की बात करती है और जिन मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश करती प्रतीत होती है, महागठबंधन का टूटना उसकी प्रतिबद्धता की पोल ही खोल रहा है. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पिछले दिनों कहा था कि कांग्रेस के पास नेता नहीं है और नीतीश कुमार के पास संगठन. यदि कांग्रेस नीतीश को अपना नेता मान ले तो विपक्ष बहुत मजबूती से भाजपा का सामना कर सकता है.

यह बात कुछ लोगों को मुंगेरीलाल के सपने की तरह लगी होगी, लेकिन राजनीति तो संभावनाओं का खेल है. इन संभावनाओं को मूर्त रूप देने का काम सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस को ही शुरू करना था. देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और उसके नेता संभावनाओं को जमींदोज करने में लगे रहे, तो दूसरे छोटे दलों से क्या उम्मीद की जा सकती थी. ऐसे में जब लगभग सभी विपक्षी दलों के नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के दाग या छींटे दिखायी दे रहे हों, भाजपा के लिए ईमानदारी का नैरेटिव और मजबूत कर देना अब बहुत आसान हो गया है.

लालू का कुनबा और राजद की उम्मीदें!

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अगला चुनाव आने से पहले तेजस्वी प्रसाद, तेज प्रताप, मीसा भारती व राबड़ी देवी आदि भ्रष्टाचार में निपट जाएंगे? यदि नहीं भी निपटे तो क्या बड़े भाई तेज प्रताप अपने छोटे भाई तेजस्वी का नेतृत्व स्वीकार करेंगे. लालू प्रसाद तो पहले से ही सजायाफ्ता हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.पार्टी जितना एकजुट बाहर से दिख रही है, उतना है नहीं. 2013 में पार्टी टूट ही गयी थी.

उस समय राजनीतिक घटनाक्रम कुछ ऐसा शुरू हुआ कि सब दब-छिप गया. दरअसल, राजद ही नहीं, कुनबे वाली हर पार्टी के सामने संकट है इस वक्त. वह चाहें, राजद हो, बसपा हो, सपा हो या करुणानिधि की डीएमके आदि. इन लोगों ने सांप्रदायिकता विरोध और सामाजिक न्याय के नारे की आड़ में भ्रष्टाचार को कभी मुद्दा ही नहीं बनने दिया.

आज जब यह मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ रहा है और ईमानदारी (दिखावे के लिए ही सही) एक जरूरी मूल्य के तौर पर स्थापित हो रही है, इन सबके लिए बहुत मुश्किल दिन शुरू हो रहे हैं. इन स्थितियों से उबरने के लिए जो राजनीतिक दृष्टि व हुनर होना चाहिए, वह मौजूदा घटनाक्रम के दौरान न तेजस्वी में नजर आया और न तेजप्रताप में. यह बात सही है कि राजद के पास यादव और मुसलिम वोट हैं, लेकिन कब तक?

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें