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पुस्तकें लेने पहुंचे पब्लिकेशन अधिकारी को छात्रों ने रोका

कॉलेज ने बकाया रखा था बिल वार्ता के बाद लाइब्रेरी में रखवा दी गयीं किताबें बोकारो : बोकारो स्टील सिटी कॉलेज ने बिल बकाया रखा तो पब्लिकेशन के अधिकारी कॉलेज लाइब्रेरी से 550 सौ पुस्तकों के छह पैकेट ले जाने लगे. शनिवार को छात्र नेता दीपक शर्मा, रोहित राय, सुमन कुमार ने यह देखा तो […]

कॉलेज ने बकाया रखा था बिल

वार्ता के बाद लाइब्रेरी में रखवा दी गयीं किताबें
बोकारो : बोकारो स्टील सिटी कॉलेज ने बिल बकाया रखा तो पब्लिकेशन के अधिकारी कॉलेज लाइब्रेरी से 550 सौ पुस्तकों के छह पैकेट ले जाने लगे. शनिवार को छात्र नेता दीपक शर्मा, रोहित राय, सुमन कुमार ने यह देखा तो सप्लायर को रोका. मामले की जानकारी प्राचार्य डॉ महेंद्र मिश्र को दी. पूछताछ के क्रम में जानकारी मिली कि 21 नवंबर 2016 को तत्कालीन प्राचार्य डॉ एसपी शर्मा के कार्यकाल में आगरा के एसबीपीडी पब्लिकेशन द्वारा कॉलेज को करीब लाख रुपये की पुस्तकों की सप्लाई की गयी थी. कॉलेज द्वारा लगभग 10 लाख का भुगतान कर दिया गया था. करीब 80 हजार रुपया बकाया था.
मामले पर प्राचार्य डॉ मिश्र ने अनभिज्ञता जतायी. प्राचार्य कक्ष में पब्लिकेशन के अधिकारी जयपाल त्यागी व लाइब्रेरियन एके चौधरी को बुलाया गया. प्राचार्य उन पर भड़क गये. कहा कि बिना जानकारी के पुस्तकों को ले जाना गंभीर अपराध है. यह चोरी की श्रेणी में आता है. बकाया है, तो भुगतान की मांग की जा सकती है. बगैर प्राचार्य को सूचना दिये लाइब्रेरियन स्तर से पुस्तकों को पब्लीकेशन को वापस सौंपना संदेहास्पद है. इसके बाद पुस्तकों को वापस लाइब्रेरी में रखवा दिया गया. लाइब्रेरियन ने अपनी गलती स्वीकार की. कहा कि 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो जाउंगा. ऐसे में यह झमेला न बन जाये, इसलिए पुस्तकों को वापस कर रहा था.
नैक टीम के दौरा को देखते हुए कॉलेज में व्यवस्था दुरुस्त की जा रही थी. लाइब्रेरी को अपडेट करने के लिए 11 लाख की पुस्तकों की खरीद की गयी. पब्लिकेशन के अधिकारी श्री त्यागी के अनुसार स्नातक प्रथम, द्वितीय व तृतीय सेमेस्टर के साथ पीजी की कुछ पुस्तकों की भी सप्लाइ की गयी थी. लगभग 80 हजार रुपया बकाया का भुगतान बार-बार तगादा के बाद भी नहीं किया जा रहा था. तत्कालीन प्राचार्य डॉ डीके वर्मा ने पुस्तकें ले जाने की बात कही थी. लाइब्रेरियन का कहना है कि कॉलेज द्वारा सेमेस्टर तीन (राजनीति शास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र आदि) की पुस्तकें नहीं मांगी गयी थी. इसके बाद भी सप्लाइ कर दी गयी. विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए पुस्तक रखने का फैसला लिया गया था.

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