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जानिए, आखिर क्यों भूकंप के बाद फैलती है अफवाह

-रजनीश उपाध्याय- -1934 के भूकंप के बाद फैली अफवाहों से सामने आया था सिद्धांत- पटना : शनिवार को नेपाल और भारत में आये भूकंप के बाद बेसिर पैर की अफवाहों से लोग परेशान हैं. ऐसे ही अफवाह 1934 के भूकंप के बाद भी कई दिनों तक फैले थे. तब इन्हीं बेसिर-पैर कीअफवाहों के विश्लेषण के […]

-रजनीश उपाध्याय-

-1934 के भूकंप के बाद फैली अफवाहों से सामने आया था सिद्धांत-

पटना : शनिवार को नेपाल और भारत में आये भूकंप के बाद बेसिर पैर की अफवाहों से लोग परेशान हैं. ऐसे ही अफवाह 1934 के भूकंप के बाद भी कई दिनों तक फैले थे. तब इन्हीं बेसिर-पैर कीअफवाहों के विश्लेषण के आधार पर पटना कॉलेज के प्रो जमुना प्रसाद ने अफवाहों का सामाजिक औरमनोवैज्ञानिक सिद्धांत दिया था. करीब 80 साल पुराना यह सिद्धांत बाद के दिनों में विश्व स्तर के सिद्धांत के लिए आधार बन गया. तब और अब के अफवाहों की अंतर्वस्तु में कोई खास फर्क नहीं है. फर्क सिर्फ इसके फैलाव के माध्यम का है. 1934 में ये अफवाह एक मुंह से दूसरे मुंह तक होते हुए एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचते थे. पिछले दो दिनों से जो अफवाहें फैल रही हैं, वे भी झूठी और अतिरंजित हैं. लेकिन, अब येसोशल मीडिया के जरिये फैल रही हैं.

प्रो प्रसाद ने 15 जनवरी, 1934 के भूकंप के बाद फैले 30 अफवाहों का दस्तावेजीकरण कर उनका विश्लेषण किया था. इन अफवाहों में से अधिकतरभूकंप की त्रासदी के बारे में कोरी बकवास और कुछ अतिरंजित थीं. प्रो प्रसाद का सिद्धांत 1935 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ साइक्लॉजी में ह्यद साइक्लॉजी ऑफ र्यूमरह्ण नाम से प्रकाशित हुई थी. फिर 1950 में इसका दूसरा भाग प्रकाशित हुआ. 1952 में समाजशास्त्र के प्रोफेसर दुर्गानंद सिन्हा ने इसे आगे बढ़ाया और 1957 में अमेरिका के लियोंड फेस्टिंगर नेअफवाहों के मनोविज्ञान को लेकर एक सिद्धांत दिया. लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि उन्होंने जमुना प्रसाद का जिक्र न कर दुर्गानंद सिन्हा के शोध की चर्चा की. प्रो जमुना प्रसाद के शोध के

मुताबिक, अफवाह के विकास की मूल वजह व्यग्रता है . यही अफवाह के प्रसार में प्रेरक ऊर्जा का काम करता है.अफवाह, भावनात्मक अस्थिरता की वजह से तेजी से फैलता है और जब भावनात्मक स्थिरता होने लगती है, तो इसका प्रसार धीरे-धीरे कम होने लगता है, अफवाह न फैले, इसके लिए जरूरी है कि भावनात्मक अस्थिरता को लगातार कम किया जाये. उन्होंने भूकंप से हुई बरबादी से उत्पन्न चिंता को भावनात्मक उदिग्नता का नाम दिया था.पटना में शनिवार की दोपहर अफवाह फैली कि शाम तक भयंकर तीव्रता वाला भूकंप आयेगा और सब कुछ तहस-नहस हो जायेगा. इसी तरह रविवार को चांद उल्टा नजर आने की अफवाह फैली. मनोविज्ञान के शिक्षक प्रो जयमंगल देव का कहना है कि प्रो जमुना प्रसाद का शोध आज के दौर मेंप्रासंगिक है.

आपदा प्रबंधन से गायब है मनोविज्ञान, क्या कहा था प्रो जमुना प्रसाद ने

भूकंप के बाद व्यक्ति के भीतर पहले से भय व्याप्त रहता है. भयमें उसे जो समाचार मिल रहा है, उसमें असंगति होती है, तो

उसकी उलझन और भी बढ़ जाती है. वह भय के दौरान अपनीमानसिक परेशानी से खुद को बचाना चाहता है. ऐसे में उसे

भ्रामक समाचारों से खुद को आश्वस्ति का अनुभव होता है. इसेवह सही मान लेता है. अफवाह अपने भीतर के भय को भ्रमित

करने की एक युक्ति है.

1934 में फैली थी अफवाह

1. पटना शहर में पांच हजार मकान ध्वस्त

2. पटना कॉलेज भवन क्षतिग्रस्त

3. साइंस कॉलेज के केमेस्ट्री विभाग का

भवन चार फुट धंसा

4. हाइकोर्ट भवन को गंभीर क्षति, जमीन

से पानी निकला

5. पटना में जमीन से गरम पानी निकल

रहा है

6. भूकंप के दौरान गंगा सूख गयी और

नहा रहे लोग बालू में धंस गये

7. मुंगेर में मलबा हटाने के दौरान 13

हजार शव मिले

8. 26 फरवरी, 1934 को पटना में प्रलय

आयेगा

9.16 जनवरी, 1934 को भूकंप का

दूसरा झटका से पटना जीपीओ

भवन गिरा

सभी अफवाहें झूठी या अतिरंजित

1. नुकसान को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया

2. पुराने ब्लॉक का केवल ऊपरी भाग गिरा

3. भवन थोड़ा सा खिसका

4. थोड़ा सा क्षतिग्रस्त

5. कोरा बकवास

6. अतिरंजित, झूठी बात

7. कोई प्रलय नहीं आया

8. जीपीओ भवन सही-सलामत

इस बार भी अफवाह

पटना में स्केल 13 तक की तीव्रता का

भूकंप आयेगा (भूकंप की भविष्यवाणी नहीं

हो सकती)

प्रलय आयेगा (कोई प्रलय नहीं आया)

चांद उल्टा दिख रहा है (चांद बिल्कुल

सही था)

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