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Thursday, March 28, 2024

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दिल्ली में जनता परिवार का महाधरना आज

नयी दिल्ली/पटना/लखनऊ : पूर्ववर्ती ‘जनता परिवार’ के छह दल अपनी ‘महाविलय’ योजना के अग्रगामी कदम के रूप में सोमवार को दिल्ली में ‘महाधरना’ देंगे. ये दल एक मंच साझा कर जनता का ध्यान इस ओर दिलायेंगे कि किस तरह नरेंद्र मोदी सरकार विभिन्न मोरचों पर असफल रही और चुनावी वादों को पूरा नहीं किया. यह […]

नयी दिल्ली/पटना/लखनऊ : पूर्ववर्ती ‘जनता परिवार’ के छह दल अपनी ‘महाविलय’ योजना के अग्रगामी कदम के रूप में सोमवार को दिल्ली में ‘महाधरना’ देंगे. ये दल एक मंच साझा कर जनता का ध्यान इस ओर दिलायेंगे कि किस तरह नरेंद्र मोदी सरकार विभिन्न मोरचों पर असफल रही और चुनावी वादों को पूरा नहीं किया. यह महाधरना अब जंतर-मंतर की जगह संसद मार्ग पर होगा. इसे तृणमूल कांग्रेस ने भी समर्थन दिया है. उम्मीद है कि उसके नेता भी इसमें शामिल होंगे. इस बीच चर्चा यह भी है कि इस समाज को तोड़ना चाह रहे हैं.

मौके पर लालू प्रसाद के नेतृत्ववाला राजद और नीतीश कुमार की अगुआईवाला जदयू एक हो सकते हैं. इससे जनता परिवार के छह दलों के ‘महाविलय’ की प्रक्रिया को भी गति मिलेगी. माना जा रहा है कि बिहार में अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा का संयुक्त रूप से सामना करने की तैयारी के लिए दोनों दल ‘महाविलय’ की प्रतीक्षा किये बगैर पहले से ही एक दल का रूप ले लेंगे. उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं. इसलिए सपा व जदयू (एस) के विलय की इतनी जल्दी नहीं है. इस ‘महाविलय’ के प्रयास में सबसे सक्रिय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा था कि दिल्ली में दिया जानेवाला ‘महाधरना’ छह दलों के संभावित विलय की ओर ‘पहला ठोस कदम’ होगा. इधर, भाजपा का कहना है कि इस कवायद से मोदी लहर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

प्रयास लंबे समय से

पिछले कई महीनों से इस विलय की प्रक्रिया जारी है. इस पहल के तहत पिछले महीने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पांच दलों जदयू, जनता दल (एस), इंडियन नेशनल लोकदल, समाजवादी जनता पार्टी और राजद के नेताओं को दिल्ली स्थित अपने आवास पर बैठक की थी.

काला धन, बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी का घेराव

महाधरने में काला धन वापस लाने के नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव में किये गये वादों को पूरा नहीं करने पर उनकी सरकार को निशाने पर लिया जायेगा. इसके अलावा युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में सरकार के कथित तौर पर नाकाम रहने पर भी उसे घेरा जायेगा.

बिहार से पहुंचे नेता-कार्यकर्ता

महाधरने में शामिल होने के लिए बिहार से पार्टी के विधायक, विधान पार्षद और पदाधिकारी दिल्ली पहुंच गये हैं. विधानसभा में राजद के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, विधायक सलमान रागीव व विधान पार्षद को बिहार निवास में जगह नहीं मिल सकी. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि पिछले दो दिनों से बिहार से आनेवाली ट्रेनों से नेता-कार्यकर्ता पहुंच रहे हैं. बिहार के हर जिले से इसमें सहभागिता होगा. महाधरना सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक चलेगा. महाधरना में जदयू समेत दूसरे दलों के इतने नेता-कार्यकर्ता हो जायेंगे, धरनास्थल पर जगह कम पड़ जायेगी. अगल-बगल की सड़कों पर भी भीड़ जमा हो जायेगी. बिहार जदयू के विधायक अशोक कुमार मुन्ना, विधान पार्षद नीरज कुमार, रूदल राय, संजय गांधी, राजू यादव, अनुज कुमार सिंह, ललन सर्राफ, रणवीर नंदन, पार्टी के महासचिव रवींद्र सिंह, नवीन कुमार आर्य, राज्य नागरिक परिषद् के महासचिव छोटू सिंह समेत पार्टी के नेता-कार्यकर्ता दिल्ली पहुंच चुके हैं.

विश्लेषकों का नजरिया

रखना होगा विकास का खाका

जनता के परिवार के नेता मोदी सरकार को घेरने की कारगर रणनीति को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं. इसके लिए उन्हें हकीकत और फसाने के बीच असली भेद को मिटाना होगा. यदि वे अपने मकसद में सफल होते हैं, तो उनका पारंपरिक वोट बैंक उनके और निकट आयेगा. उन्हें अपने-अपने राज्य के विकास का स्पष्ट खांका जनता के बीच रखना होगा. वोट तो सरकार के कामकाज पर ही मिलेगा.

डॉ रमेश दीक्षित, पूर्व प्रोफेसर, लखनऊ विवि

मोदी के लिए यूपी अहम

ऐसे कार्यक्र मों से न तो नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगेगी और न ही यूपी, बिहार वह अन्य राज्यों में विकास को गति दी जा सकती. यूपी की जनता ने भाजपा को इस उम्मीद से जीत दिलायी कि वह राज्य की हालत दुरुस्त करने में जुटेगी. सीएम अखिलेश यादव ने राज्य के विकास के लिए दो लाख करोड़ की मांग की है, पर केंद्र चुप है. सपा इस पर मोदी सरकार को घेर सकती है.
प्रो आशुतोष मिश्र, राजनीतिक शास्त्र, लखनऊ विवि

क्यों पड़ी जरूरत

लोकसभा चुनाव में बिहार में भाजपा के नेतृत्ववाले गंठबंधन के हाथों जदयू, राजद और कांग्रेस को कड़ी शिकस्त मिली थी. बाद में राज्य विधानसभा की कुछ सीटों के लिए हुए उपचुनाव में इन तीनों दलों ने आपसी तालमेल से चुनाव लड़ा और बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद ही महाविलय की कवायद तेज हो गयी थी.

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