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झारखंड में भ्रष्टाचारियों से निबटने के लिए मई तक कानून

राज्य में भ्रष्टाचारियों के निबटने के लिए मई तह कठोर कानून बनाने का काम पूरा कर लिया जायेगा. वित्तीय वर्ष के अंतिम दिनों में केंद्र से मिलनेवाले पैसों को निकाल कर रखना एक मजबूरी है. पर, इसकी भी एक सीमा है. विकास का पैसा खर्च करने के बदले बैंकों में रखने की परंपरा से बचने […]

राज्य में भ्रष्टाचारियों के निबटने के लिए मई तह कठोर कानून बनाने का काम पूरा कर लिया जायेगा. वित्तीय वर्ष के अंतिम दिनों में केंद्र से मिलनेवाले पैसों को निकाल कर रखना एक मजबूरी है. पर, इसकी भी एक सीमा है. विकास का पैसा खर्च करने के बदले बैंकों में रखने की परंपरा से बचने के लिए योजनाओं पर समयबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है और मॉनीटरिंग की जा रही है. 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आलोक में राज्य को पहले के मुकाबले मिलनेवाली अधिक राशि का आकलन किया जा रहा है. सरकार में खाली पड़े पदों को भरना विकास के दृष्टिकोण से जरूरी है. नियुक्तिों से पड़नेवाले वित्तीय प्रभाव का आकलन किया जा रहा है और राजस्व स्नेतों को विकसित किया जा रहा है. यह बात राज्य के मुख्य सचिव राजीव गौबा ने प्रभात खबर के विशेष संवाददाता शकील अख्तर से राज्य की समस्याओं, विकास और आर्थिक पहलू पर बातचीत के दौरान कही. पेश है बातचीत के मुख्य अंश :
राज्य में अब तक विकास का मतलब आधी अधूरी योजनाएं और आखिरी वक्त में ट्रेजरी से पैसा निकाल कर बैंकों में रखना है. यह परंपरा सी बन गयी है. हालात कैसे बदलेंगे?
मैं पुरानी बातों में उलझना नहीं चाहता. सरकार उन सभी अधूरी योजनाओं को एक निश्चित समय सीमा में पूरा करने की कोशिश कर रही है, जो समय पर पूरी नहीं हो सकी थीं. अब योजनाओं की नये सिरे से मॉनीटरिंग की जा रही है. मैं हर सोमवार को 10-10 विभागों के सचिवों/अधिकारियों के साथ उनके विभागों के माध्यम से चलायी जा रही योजनाओं की प्रगति की जानकारी ले रहा हूं. योजनाओं को लागू करने में आनेवाली परेशानियों को उसी वक्त दूर करने की कोशिश कर रहा हूं,ताकि योजनाएं समय पर पूरी हो सकें और लोगों को इसका लाभ मिल सके. विकास एक व्यापक शब्द है. कम से कम शब्दों में इसे आधारभूत संरचना निर्माण, रोजगार के साधन उपलब्ध कराना, सभी वर्गों का सामाजिक व आर्थिक विकास और इसके लिए बेहतर मानव संसाधन तैयार करने के काम को माना जा सकता है. सरकार ने राज्य की जरूरतों को ध्यान में रख कर बजट के दौरान कई घोषणाएं की थी. हम सभी उन घोषणाओं को पूरा करने में लगे हैं. जहां तक विकास के नाम पर ट्रेजरी से पैसा निकाल कर बैंकों में रख लने का सवाल है, तो ऐसा करना कुछ मामलों में सरकार की मजबूरी है. जिन योजनाओं में केंद्र से वित्तीय वर्ष के अंतिम दिनों में पैसा मिलता है, उन योजनाओं का पैसा निकाल कर रखना एक मजबूरी है.
विकास मद का पैसा निकाल कर बैंकों में रख लेने की कोई सीमा होगी या नहीं?
हां, इसकी सीमा होनी चाहिए. इस बात का आकलन किया जा रहा है कि वित्त नियमावली के कौन-कौन से नियम वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हैं. आकलन और विश्लेषण के बाद उसे राज्य की जरूरत के हिसाब बदला जायेगा. बहुत सारे राज्यों ने इस तरह के बदलाव किये हैं. वैसे उन योजनाओं का पैसा निकाल कर बैंकों में रख लेना सही नहीं है, जिन योजनाओं पर राज्य का अपना पैसा खर्च होता है. विकास का पैसा बैंकों में रखने से बचने के लिए ही हर काम को समयबद्ध तरीके से किया जा रहा है. एक निश्चित समय में योजना बनाने, स्वीकृति आदेश, आवंटन आदेश, टेंडर प्रक्रिया आदि को निबटाने की कोशिश की जा रही है. इसके अलावा पहले से बैंको में रखे गये पैसों का हिसाब किताब लिया जा रहा है. जो पैसा जिन योजना के लिए था, उस पर खर्च कर योजना को पूरा करने का काम शुरू कर दिया गया है. हड़बड़ी में किसी भी योजना की गुणवत्ता में किसी तरह की कमी नहीं हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है. योजनाओं के क्रियान्वयन में किसी भी कीमत पर गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जायेगा.
विकास के उद्देश्य से बेहतर मानव संसाधन जुटाने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्या बदलाव लाने का इरादा है?
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार इन क्षेत्रों में नियुक्तियों की घोषणाएं कर चुकी है. कुछ और क्षेत्रों में आवश्यक्ता का आकलन किया जा रहा है. सरकार बेहतर तरीके से काम कर सके, इसके लिए मैन पावर का होना जरूरी है. इस मामले में सिर्फ शिक्षित के साथ साथ कुशल (स्किल्ड) मानव संसाधन की जरूरत है. इसलिए सरकार ने स्किल डेवपलमेंट को मिशन के तौर पर लिया है. बेहतर स्किल डेवलपमेंट के लिए राज्य सरकार ने भारत सरकार की संस्था नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ एकरारनामा भी कर लिया है. इससे अपने अलावा दूसरे राज्यों को भी कुशल मानव संसाधन मिल सकेगा.
राज्य गठन के बाद औद्योगिकीकरण के लिए एमओयू हुए. पर, इसका कोई परिणाम ठोस परिणाम सामने नहीं आया. सरकार ने अब फिर से निवेश के लिए आमंत्रित करना शुरू किया है. निवेश की कोशिशें साकार हों. इसके लिए क्या किया जा रहा है?
पहले के एमओयू को पूरी तरह सफल नहीं होने के कई कारण रहे हैं. कहीं एमओयू करनेवाले बाद में सुस्त पड़ गये, तो किसी को दूसरी राज्य में बेहतर मौका मिला और वे वहां चले गये. कहीं-कहीं प्रशासनिक लापरवाही भी हुई. सिंगल विंडो सिस्टम बना, लेकिन चल नहीं सका. इन सभी बातों से सबक लेने के बाद नये सिरे से सिंगल विंडो सिस्टम को चलाने के लिए प्रोफेशनल्स का चयन किया गया है. इसके लिए दूसरे राज्यों के सिंगल विंडो सिस्टम का अध्ययन किया गया. सिंगल विंडो सिस्टम के लिए इवाई (अरनेस्ट एंड यंग ग्लोबल लिमिटेड) के नाम से चर्चित कंपनी के साथ एकरारनामा किया गया है. तीन माह में नये कलेवर के साथ सिंगल विंडो सिस्टम शुरू हो जायेगा. इसमें सक्षम अधिकारियों को तैनात किया जायेगा. उद्योग से जुड़े अधिकारियों को अभी से ही निवेश के प्रस्तावों पर सहानुभूति से विचार करने का निर्देश दिया गया है.
राज्य में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है. इससे निबटने के लिए क्या कर रहे हैं?
भ्रष्टाचारियों के निबटने के लिए मई तह नये कानून को मूर्त रूप दे दिये जाने की संभावना है. एंटी करप्शन ब्यूरो बनाने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है.ब्यूरो को निगरानी के मुकाबले अधिक शक्तियां दी जायेंगी. ब्यूरो को आजादी भी दी जायेगी, ताकि उसे हर काम के लिए सरकार के आदेश की जरूरत नहीं हो. अभी तो निगरानी को किसी के खिलाफ प्रारंभिक जांच के लिए भी सरकार के अनुमति की जरूरत होती है. प्रारंभिक जांच सहित कुछ और बिंदुओं पर उसे सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं होगी. उसे भ्रष्टाचार से अजिर्त की गयी संपत्ति को सरकार के कब्जे में देने, नीलाम करने आदि का अधिकार होगा. भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के बाद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए अधिकतम एक माह का समय होगा. जल्दी ट्रायल पूरा करने और दोषी पाये जाने पर सजा देने के लिए अगल कोर्ट बनाये जायेंगे. ब्यूरो को दी जानेवाली आजादी की एक सीमा तक होगी, ताकि वह अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल नहीं कर सके. ब्यूरो को आवश्यक्ता के अनुरूप अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराये जायेंगे.
13 वें के मुकाबले 14 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आलोक में राज्य को कितना अधिक पैसा मिलेगा?
14 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं को भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है. वित्त विभाग इस बात का आकलन कर रहा है कि 13 वें वित्त आयोग के मुकाबले 14 वें वित्त आयोग की अवधि में राज्य को कितने का शुद्ध आर्थिक लाभ होगा. जल्द की इसकी गणना कर ली जायेगी.
14 वें वित्त आयोग ने 32 के बदले 42 प्रतिशत राशि देने की अनुशंसा की है. केंद्र से इसे मान तो लिया है. पर, केंद्र ने बीआरजीएफ, राजीव गांधी सशक्तीकरण अभियान, मॉडल स्कूल सहित आठ योजनाओं में पैसा देने से इनकार कर दिया है. फंडिंग पैटर्न के इस बदलाव से राज्य को कितने का आर्थिक लाभ होगा. राज्य में इन योजनाओं को जारी रखा जायेगा या नहीं?
केंद्रीय योजनाओं के फंडिंग पैटर्न में होनेवाले बदलाव से पड़नेवाले वित्तीय प्रभाव का हिसाब किताब वित्त विभाग द्वारा किया जा रहा है. जिन केंद्रीय योजनाओं में केंद्र से पैसा नहीं मिलेंगे या कम मिलेगा, हो सकता है उनमें से कुछ योजनाएं बंद करनी पड़े. राज्य की जरूरतों और पहले से चल रही योजनाओं की ताजा स्थिति के आकलन के बाद ही सरकार किसी नतीजे पर पहुंचेगी कि किस योजना को बंद कर दिया जाये और किसे जारी रखा जाये. हां यह बात जरूर है कि अब केंद्र से मिलनेवाली राशि को बहुत की समझदारी से खर्च करना होगा. क्योंकि केंद्र से पैसा दे कर सारी जिम्मेवारी राज्य पर डाल दी है. अगर कोई योजना विफल होती है तो इसके लिए राज्य की पूरी तरह जिम्मेवार होगा.
केंद्रीय योजनाओं का फंडिंग पैटर्न बदला जा रहा है. अब ज्यादातर योजनाओं में राज्य को अधिक या बराबर पैसा देना होगा. पर, 2015-16 का योजना बजट पहले के फारमूले से तैयार हो गया है. क्या नये सिरे से योजना मद में पैसों का प्रावधान किया जायेगा?
हां, फंडिंग पैटर्न में बदलाव की वजह से चालू वित्तीय वर्ष(2015-16) में योजना मद में किये गये पैसों के प्रावधान में बदलाव करना होगा. केंद्र से फंडिंग पैटर्न के सिलसिले में अंतिम रूप से सूचना मिलने के बाद ऐसा करना पड़ेगा.
राज्य के विभिन्न विभागों में बहुत रिक्तियां हैं. अगर इन्हें भर लिया जाये, तो क्या राज्य का वर्तमान राजस्व वेतन भत्ता के लिए कम पड़ेगा?
वित्त विभाग इस बात की गणना कर रहा है कि वर्तमान राजस्व की स्थिति पर नियुक्तियों का क्या प्रभाव पड़ेगा. राज्य में बहुत सारे पद खाली पड़े हुए हैं. इसकी वजह से राज्य का काम काज प्रभावित हो रहा है. इसलिए खाली पदों को भरना जरूरी है. नियुक्तियों की वजह से राज्य पर पड़नेवाले आर्थिक बोझ की भरपाई के लिए राजस्व के स्नेत विकसित किये जायेंगे.
जरूरत के मुकाबले राजस्व बढ़ाने के लिए कौन सा तरीका अपनायेंगे.
राजस्व बढ़ाने के लिए फिलहाल तीन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसमें वाणिज्यकर, परिवहन और उत्पाद शामिल है. वाणिज्यकर से राजस्व बढ़ाने के लिए इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट शुरू किये गये हैं. उत्पाद से राज्य को कम राजस्व मिलता है. दूसरे छोटे-छोटे राज्यों को झारखंड के मुकाबले उत्पाद से अधिक राजस्व मिलता है. फिलहाल इस बात की जांच पड़ताल की जा रही है कि क्या राजस्व बढ़ाने के लिए राज्य को नये उत्पाद नीति की जरूरत है. इसमें आवश्यक्तानुसार बदलाव लाया जायेगा या नयी नीति बनायी जायेगी.
गरीबी एक बड़ी समस्या है. अनुदान देने के अलावा गरीबी से लड़ने का कोई दूसरा तरीका नहीं है?
संवैधानिक रूप से राज्य कल्याणकारी है. इसलिए गरीब और असहायों की मदद करना सरकार की जिम्मेवारी है. गरीबों को मदद पहुंचाने के लिए योजनाओं को चलाना जरूरी है. गरीबों को विभिन्न प्रकार की योजनाओं के माध्यम से मदद के अलावा उन्हें अलग अलग क्षेत्रों में रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है. इसे और ज्यादा प्रभावी तरीके से चलाया जायेगा. इन योजनाओं की खामियों को दूर किया जायेगा. इसके अलावा गरीबी से लड़ने के लिए विकास का सहारा लिया जायेगा. अलग-अलग काम के लिए प्रशिक्षण के साथ ही राज्य में रोजगार के अवसर सृजित होने से गरीबी कम होगी. सरकार इसके लिए कोशिश कर रही है. मुख्यमंत्री ने इसके लिए निर्देश दिये हैं.
नक्सल समस्या गंभीर हो गयी है. अब वे गांव से जबरन बच्चों को उठा ले जा रहे हैं. सरकार का क्या कदम होगा?
सरकार इस तरह की घटनाओं पर काबू पाने के उपाय कर रही है. इस तरह की घटनाओं का दृढ़ता से सामना किया जायेगा. पुलिस बल को और सशक्त किया जा रहा है. साथ ही गांव तक में सरकारी की उपस्थिति दर्ज करा कर इस तरह की घटनाओं पर काबू किया जायेगा. राज्य के कुछ हिस्सों में नक्सल समस्या अधिक है. वहां लोगों को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है.

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