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आतंकी हमले से निबटने की झारखंड में कोई तैयारी नहीं

रांची: अगर झारखंड के रिहायशी इलाकों में आतंकी हमला करते हैं, तो मुकाबला करनेवाले सुरक्षा तंत्र को ही पहुंचने में लंबा वक्त लग जायेगा. क्योंकि राज्य पुलिस के पास न तो प्रशिक्षित फोर्स है और न ही आधुनिक हथियार ही हैं. आतंकियों से निपटने के लिए क्वीक एक्शन टीम सिर्फ एसटीएफ की है. इस फोर्स […]

रांची: अगर झारखंड के रिहायशी इलाकों में आतंकी हमला करते हैं, तो मुकाबला करनेवाले सुरक्षा तंत्र को ही पहुंचने में लंबा वक्त लग जायेगा. क्योंकि राज्य पुलिस के पास न तो प्रशिक्षित फोर्स है और न ही आधुनिक हथियार ही हैं. आतंकियों से निपटने के लिए क्वीक एक्शन टीम सिर्फ एसटीएफ की है.

इस फोर्स को रिहायशी इलाकों में कार्रवाई करने का कोई प्रशिक्षण नहीं मिला है. यहां सुरक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आइएम) के आतंकी रांची में टिक कर कुकर बम बनाते रहे. रांची के विभिन्न हिस्सों में आकर ठहरते रहे, लेकिन राज्य पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी.

पुलिस को इसकी जानकारी तब मिली, जब पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में ब्लास्ट करने पहुंचे रांची निवासी आतंकी इम्तियाज पटना में गिरफ्तार हुआ. उसके बाद नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआइए) के लोग सक्रिय हुए.

.. तो कुछ नहीं कर पायेगी एसटीएफ

झारखंड में स्पेशल फोर्स के नाम पर एसटीएफ है, लेकिन रिहायशी इलाकों या किसी संस्थान में कुछ होने पर यह फोर्स कुछ नहीं कर पायेगी, क्योंकि इस फोर्स को जंगल व पहाड़ में लड़ने का प्रशिक्षण दिया गया है. रिहायशी इलाकों में दुश्मन का मुकाबला करने का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है.

कहीं भी सुरक्षा के इंतजाम नहीं

देश में कहीं भी आतंकी घटना होने के बाद झारखंड में हाई अलर्ट किया जाता है. पर, पुलिस में कोई सक्रियता नहीं दिखती. ट्रेनों पर सवार होनेवाले और बस स्टैंडों के आसपास संदिग्धों पर नजर रखने की कोई व्यवस्था नहीं की जाती. सार्वजनिक स्थलों मॉल या पार्क की सुरक्षा निजी स्तर पर की गयी है, लेकिन वह नाकाफी है. यहां तैनात सुरक्षाकर्मी न तो प्रशिक्षित हैं और न ही अलर्ट रहते हैं. कुछ मॉल में डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर लगे हुए हैं. वहां तैनात सुरक्षाकर्मी मेटल डिटेक्टर लिये भी रहते हैं, लेकिन उन्हें यह पता ही नहीं रहता है कि किस तरह की गैरकानूनी वस्तु के संपर्क में आने पर हाथ का यंत्र किस तरह का आवाज करता है.

डिटेक्टर की आवाज सुनने वाला कोई नहीं

रांची रेलवे स्टेशन के मेन गेट पर दो डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर लगे हुए हैं. एक स्टेशन के भीतर जाने के लिए है, जबकि दूसरा स्टेशन से बाहर निकलने के लिए. दोनों डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर मशीन चालू हालत में है. उसके भीतर से आने-जाने पर आवाज भी निकलती है. लेकिन आवाज किस खतरे या वस्तु के बारे में बता रहा है, इस बात पर गौर करने के लिए वहां कोई व्यक्ति नहीं रहता. व्यक्ति यदि डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर के बगल से भी निकल जाये, तो भी कोई रोकने वाला नहीं.

बस स्टैंड की सुरक्षा भगवान भरोसे

रांची मे चार बस स्टैंड हैं. यहां से दूसरे जिलों व राज्यों के लिए बसें खुलती हैं. खादगढ़ा बस स्टैंड से सबसे अधिक बसें खुलती हैं. बस स्टैंड की सुरक्षा के लिए यहां एक टीओपी है, पुलिसकर्मी भी यहां पदस्थापित हैं. पुलिसकर्मी टीओपी के भीतर ही रहते हैं. बाहर निकलते हैं, तो दूसरे कारणों से, सुरक्षा को लेकर नहीं. सरकारी बस स्टैंड में भी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है.

एसएसपी ने भेजा सभी स्कूलों को पत्र, राजधानी के सभी स्कूलों में लगेंगे सीसीटीवी कैमरे

पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल में हुए आतंकी हमले के बाद राजधानी के स्कूलों की सुरक्षा को लेकर योजना तैयार की गयी है. बुधवार को एसएसपी प्रभात कुमार ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा से संबंधित योजना तैयार की. उन्होंने बताया कि स्कूल के मुख्य गेट पर सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्णय लिया गया है. साथ ही स्कूल के मुख्य गेट पर एक रजिस्टर रखा जायेगा. जिसमें अंदर आने-जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति का ब्योरा दर्ज किया जायेगा. इस संदर्भ में स्कूल प्रबंधन को पत्र भेजा गया है. संबंधित क्षेत्र के थाने को स्कूलों की सुरक्षा पर ध्यान रखने का निर्देश दिया गया है. एसएसपी ने बताया कि पुलिस का काम किसी घटना के होने के बाद सतर्क होने तक सीमित नहीं है. घटना से सबक लेकर बचाव का उपाय करना है. सीसीटीवी कैमरा लगाने से संदिग्ध आगंतुकों की जानकारी मिल सकेगी.

छह साल में भी नहीं बना एटीएस

आतंकी खतरों से निपटने के लिए झारखंड पुलिस के पास अपना फोर्स नहीं है. करीब छह साल से झारखंड में एंटी टेररिस्ट स्क्वायड (एटीएस) के गठन की प्रक्रिया चल रही है. स्पेशल ब्रांच के तत्कालीन एडीजी जीएस रथ ने एटीएस गठन का प्रस्ताव दिया था. सरकार के स्तर पर एटीएस में 800 फोर्स को लेकर सवाल उठे और फाइल वापस लौट गयी. स्पेशल ब्रांच के तत्कालीन एडीजी अशोक कुमार सिन्हा के समय भी एक प्रस्ताव सरकार को भेजा गयी, जिसमें फोर्स की संख्या 800 की जगह 300 किया गया. इस बार भी पूर्व के बहाना बना कर ही प्रस्ताव को वापस कर दिया गया. करीब छह माह पहले स्पेशल ब्रांच ने एक और प्रस्ताव भेजा. इसमें फोर्स की संख्या 150 बताया गया है. लेकिन, इस प्रस्ताव पर भी अब तक सरकार की सहमति नहीं मिली है.

दूसरों की सूचना पर आश्रित यहां की पुलिस

आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के मामले में झारखंड पुलिस पिछलग्गू की भूमिका में है. दूसरे राज्य या केंद्रीय एजेंसियों से मिलने वाली सूचनाओं पर कार्रवाई करना ही राज्य पुलिस का काम रह गया है. हालांकि राज्य पुलिस एहतियाती कदम जरूर उठाती रही है. एनआइए (नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी) के सहयोग से पुलिस कार्रवाई करती है. एनआइए से लगातार संपर्क रखने के लिए सीआइडी के आइजी संपत मीणा को नोडल ऑफिसर बनाया गया है.

कार्रवाई को लेकर कोई तैयारी नहीं

किसी इलाके में आतंकी घटना होने पर किस थाने की पुलिस किस तरह की कार्रवाई करेगी. कैसे और कहां रुक कर कार्रवाई करेगी. सीनियर अफसर किस तरह रिएक्ट करेंगे. झारखंड में इस तरह की मामूली तैयारी भी नहीं की गयी है. वीडी राम (अभी सांसद) जब डीजीपी थे, तब शहरी क्षेत्र में नक्सलियों से निबटने के लिए हर शहर के लिए एक ब्लू प्रिंट तैयार किया गया था. लेकिन कुछ दिनों बाद ही ब्लू प्रिंट को पुलिस ने भुला दिया. वह अब कहां है, इसकी जानकारी किसी को नहीं.

सुरक्षा इंतजाम के नाम पर सिर्फ बेहतरीन एंटी बम स्क्वायड ही

झारखंड पुलिस में आठ एंटी बम स्क्वायड है. सभी सक्वायड किसी भी तरह के बम को निष्क्रिय करने में सक्षम है. उनके पास सभी तरह के अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध है. एक बम स्क्वायड को हजारीबाग में रखा गया है. इस स्क्वायड में शामिल पुलिस पदाधिकारी दूसरे पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण देने का भी काम करते हैं. शेष सात बम स्क्वायड को रांची में ही रखा गया है. जरूरत पड़ने पर उन्हें तुरंत भेजा जाता है.

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