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डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: तकनीक से संवरेगी जिंदगी

डिजिटल इंडिया यानी एक ऐसा भारत जहां सूचनाओं और सेवाओं तक आपकी ऑनलाइन पहुंच हो, केंद्र सरकार के नये कार्यक्रम का यही लक्ष्य है. कंप्यूटर के बाद मोबाइल फोन के जरिये इंटनेट के तेजी से प्रसार ने आज कई तरह के जरूरी कामों को घर बैठे निपटाना सुगम बना दिया है, लेकिन सरकारी अस्पताल और […]

डिजिटल इंडिया यानी एक ऐसा भारत जहां सूचनाओं और सेवाओं तक आपकी ऑनलाइन पहुंच हो, केंद्र सरकार के नये कार्यक्रम का यही लक्ष्य है. कंप्यूटर के बाद मोबाइल फोन के जरिये इंटनेट के तेजी से प्रसार ने आज कई तरह के जरूरी कामों को घर बैठे निपटाना सुगम बना दिया है, लेकिन सरकारी अस्पताल और स्कूल सहित कई विभाग अब भी ऐसे हैं, जिनकी सेवाएं लेने के लिए लोगों को चल कर जाना पड़ता है. ऐसे में डिजिटल इंडिया से कैसे संवरेगी आम लोगों की जिंदगी और क्या हैं इस कार्यक्रम की राह में चुनौतियां, इसी पर एक नजर.

भले ही भारत की बहुसंख्यक आबादी आज भी इंटरनेट की पहुंच से दूर है, फिर भी भारत में सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों का आंकड़ा 10 करोड़ से ऊपर हो जाना अपने आप में एक बड़ा बदलाव है. इतनी तो दुनिया के कई विकसित देशों की आबादी भी नहीं होगी. 10 करोड़ का यह आंकड़ा भारत की डिजिटल साक्षरता का भी आंकड़ा है. यानी वह आबादी जो कार्य पाने, व्यापार और अन्य जरूरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. पिछले तकरीबन एक दशक से भारत को किसी और चीज ने उतना नहीं बदला, जितना इंटरनेट ने बदल दिया है. रही-सही कसर इंटरनेट आधारित फोन यानी स्मार्टफोन ने पूरी कर दी.

स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. आइटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि 2019 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करनेवाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 65 करोड़ हो जायेगी. सिस्को के मुताबिक वर्ष 2014 में मोबाइल डेटा ट्रैफिक 69 प्रतिशत तक बढ़ा. साथ ही वर्ष 2014 में पूरी दुनिया में मोबाइल उपकरणों एवं कनेक्शनों की संख्या बढ़ कर 7.4 बिलियन तक पहुंच गयी. स्मार्टफोन की इस बढ़त में 88 प्रतिशत हिस्सेदारी रही और उनकी कुल संख्या बढ़ कर 439 मिलियन हो गयी.
रेल आरक्षण व्यवस्था कारगर
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. इससे बहुत सी योजनाओं के वास्तविक कार्यान्वन पर नजर रखी जा सकती है. कई मामलों में नौकरशाही की बाधाओं को भी कम किया जा सकता है. इसे लेकर पिछले कुछ समय में देश में कई तरह के प्रयोग हुए हैं, जो काफी उम्मीद बंधाते हैं. खासकर रेलवे आरक्षण को लेकर जो प्रयोग हुए हैं, उनमें से ज्यादातर सफल कहे जा सकते हैं.
देश में इ-कॉमर्स को विस्तार देने और इसमें लोगों का भरोसा कायम करने का श्रेय भारतीय रेलवे को जाता है. इससे कुछ हद तक व्यवस्था में पारदर्शिता भी आयी है. इस कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण काम हुआ है एसएमएस टिकटिंग का. रेलवे ने एसएमएस को रेल टिकट की मान्यता देकर कागज के अनावश्यक इस्तेमाल से मुक्ति का रास्ता तैयार किया है. यह जरूर है कि सरकार के दूसरे विभागों ने इस सिलसिले को इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ाया है. सरकारी विभागों के एप्स की निर्भरता बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि वह आम जनता के लिए कितने उपयोगी साबित होते हैं.
हम यह उम्मीद तो करते हैं कि लोगों को इन सब तरीकों से नौकरशाही की बाधाओं से मुक्ति दिलायी जा सकेगी, लेकिन सच यही है कि इन्हें लागू करने का जिम्मा अब भी उसी नौकरशाही के हवाले है. इसी नौकरशाही के कारण इ-गवर्नेस की सोच एक हद तक पहुंच कर रुक गयी. ज्यादातर सरकारी विभाग अपनी वेबसाइट बना कर अपने पुराने रवैये पर लौट आये. अगर हम चाहते हैं कि नया रु झान पूरी तरह कामयाब हो, तो इस रवैये को बदलना सबसे पहली जरूरत है. केंद्र सरकार ही नहीं, कई राज्यों की सरकारें भी इ-गवर्नेस की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. इस मामले में रेलवे और डाक विभाग के एप्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
हमें नहीं भूलना चाहिए की पिछली यूपीए सरकार ने इस दिशा में पहल करते हुए सौ से ज्यादा विभागों में मोबाइल गवर्नेस पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था. वहीं सरकारी आंकड़ों को सबको उपलब्ध कराने के साथ जनता के लिए उसे सुलभ कराने के लिए राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति (एनडीएसएपी) 2012 भी बनी, जिसके अनुसार आंकड़ा प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था सरकार के विभिन्न उपक्रमों में संयोजन के हिसाब से उपयुक्त नहीं है. इसी दिशा में राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता व अभिगम्यता नीति को ध्यान में रखते हुए ‘डाटा डॉट जीओवी डॉट इन’ वेबसाइट का निर्माण हुआ है, जहां सरकार के समस्त विभागों के गैर-संवेदनशील आंकड़ों का संग्रहण किया जा रहा है.
प्रशासन में बढ़ेगी पारदर्शिता
माना जाता है कि आंकड़ों तक आम जन की पहुंच से प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ेगी और उनके तार्किक विश्लेषण से देश में हो रहे सामाजिक आर्थिक बदलाव पर नजर रखते हुए योजनाएं बन सकेंगी. भारत के लिए यह रास्ता महत्वपूर्ण इसलिए हो सकता है कि मोबाइल हैंडसेट अकेला ऐसा माध्यम है, जिससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचा जा सकता है. यह अकेला ऐसा माध्यम है, जो शहरों और कस्बों की सीमा को लांघता हुआ तेजी से दूरदराज के गांवों तक पहुंच गया है. इसके साथ ही देश में कंप्यूटर के मुकाबले मोबाइल पर इंटरनेट सुविधा हासिल करनेवालों की संख्या भी बढ़ चुकी है. लोगों के लिए तो यह कई तरह की सुविधाएं हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है ही, साथ ही सरकार के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. इसलिए सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्र म में अगर एम-गवर्नेस का प्रयोग होता तो यह ज्यादा लाभकारी होता.
बड़ी आबादी अब तक वंचित
माना जाता रहा है कि इंटरनेट का बढ़ा इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लायेगा और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा, लेकिन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की नयी रिपोर्ट हमारी आंखें खोल देती है, जिसमें भारत को भ्रष्टाचार के मामले में 176 देशों की सूची में 94वें पायदान पर रखा गया है. सूचना क्रांति का शहर केंद्रित विकास देश के सामाजिक आर्थिक ढांचे में डिजिटल डिवाइड को बढ़ावा दे रहा है. भारत की अमीर जनसंख्या का बड़ा तबका शहरों में रहता है, जो सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल करता है. उदारीकरण के पश्चात देश में एक नये मध्यम वर्ग का विकास हुआ, जिसने उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को प्रेरित किया. इसका परिणाम सूचना प्रौद्योगिकी में इस वर्ग के हावी हो जाने के रूप में भी सामने आया. देश की शेष 70 प्रतिशत जनसंख्या न तो इस प्रक्रि या का लाभ उठा पा रही है और न ही सहभागिता कर पा रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ना जरूरी
भारत जैसे देश में जहां मोबाइल इंटरनेट का बेतहाशा इस्तेमाल बढ़ा है, वहां ऐसी सुविधा लोगों को और ज्यादा मोबाइल इंटरनेट से जोड़ने के लिए प्रेरित करेगी. लेकिन हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहां इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी है और इंटरनेट के बाजारीकरण की कोशिशें जारी हैं. ऐसे में सरकार का यह प्रयास आम उपभोक्ताओं के इंटरनेट सर्फिग समय को कितना सुहाना बनायेगा, इसका फैसला अभी होना है.
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, भारत की ग्रामीण जनसंख्या का कुछेक प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है. यह आंकड़ा इस हिसाब से बहुत कम है, क्योंकि इस वक्त ग्रामीण इलाकों के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 18 प्रतिशत को इसके इस्तेमाल के लिए 10 किलोमीटर से ज्यादा का सफर करना पड़ता है. तकनीक के इस डिजिटल युग में हम अभी भी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत समस्याओं के उन्मूलन में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं.
मुकुल श्रीवास्तव
तकनीकी मामलों के लेखक

शहर और गांव के बीच की दूरी पाटेगा डिजिटल इंडिया
आम आदमी को डिजिटल सशक्तिकरण के जरिये देशभर में सुशासन अभियान को तीव्र गति देने के लिए केंद्र सरकार महत्वाकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया सप्ताह’ की शुरुआत करने जा रही है. इस योजना को डिजिटल रूप से सशक्त भारत की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. सरकार का दावा है कि इस योजना से देश के विकास की रफ्तार बढ़ेगी, आम आदमी की जिंदगी बेहतर व आसान हो सकेगी.
डिजिटल इंडिया को एक गेम चेंजर कार्यक्रम के तौर पर देखा जा रहा है. केंद्र सरकार चाहती है कि देश के हर नागरिक के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बने. सेवाओं को आसानी से उपलब्ध कराना सरकार का मकसद है. पोस्ट ऑफिसों को कॉमन डिजिटल सर्विस सेंटर के रूप में विकसित किया जायेगा और छोटे शहरों में भी बीपीओ खोले जायेंगे. भारतीयों के डिजिटल सशक्तीकरण के प्रयासों से इस योजना का लक्ष्य इस क्षेत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इससे जोड़ना है.
डिजिटल इंडिया कार्यक्र म के तहत भारत सरकार चाहती है कि तमाम सरकारी विभाग और देश की जनता एक-दूसरे से डिजिटल रूप से जुड़ जायें, ताकि वे सभी तरह की सरकारी सेवाओं से लाभ उठा सकें और देशभर में सुशासन सुनिश्चित किया जा सके. देश के सुदूर इलाके में स्थिति किसी गांव में रहनेवाला व्यक्ति हो या किसी विकसित शहर में, दोनों को ही सभी सरकारी सेवाएं समान रूप से डिजिटली अथवा ऑनलाइन हासिल हों, यही डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य है.
इस अहम सरकारी योजना को अमली जामा पहनाने के बाद आम जनता के लिए यह संभव हो जायेगा कि किस सरकारी सेवा को पाने के लिए उसे किस तरह और कहां ऑनलाइन आवेदन करना है और उससे किस तरह लाभान्वित हुआ जा सकता है.
‘डिजिटल इंडिया वीक’
डिजिटल इंडिया वीक के तहत देश के 600 जिलों में कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे. इस बीच प्रधानमंत्री ने विभिन्न शहरों में वाइ-फाइ की सुविधा को भी लॉन्च किया है. साथ ही प्रधानमंत्री ने नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल को भी लॉन्च किया है. इसके अलावा, केंद्र सरकार की योजना छोटे शहरों में भी बीपीओ खोलने की है.
डिजिटल इंडिया वीक के दौरान डिजिटल लॉकर सेवा का शुभारंभ भी किया गया है. इसके तहत लोग अपने प्रमाण पत्रों समेत अन्य दस्तावेजों को डिजिटल स्वरूप में सुरिक्षत रख सकेंगे. इसमें आधार कार्ड नंबर और मोबाइल फोन के जरिये पंजीकरण कराना होगा. डिजिटल लॉकर में सुरिक्षत रखे जानेवाले डॉक्यूमेंट्स को सरकारी एजेंसियों के लिए भी हासिल करना आसान होगा. किसी व्यक्ति के विभिन्न दस्तावेज अगर डिजिटल लॉकर में हैं, तो उसे सरकारी योजनाओं के लिए इनकी फोटोकॉपी देने की जरूरत नहीं होगी.

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के उद्देश्य
डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी ह. इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से और ऑनलाइन उपलब्ध हों. इससे सरकारी और प्रशासनिक सेवाओं को आम लोगों के लिए सुगम बनाने के साथ-साथ सार्वजनिक जवाबदेही को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं.
ब्रॉडबैंड हाइवेज
ब्रॉडबैंड हाइवेज के जरिये देश के समूचे भौगोलिक दायरे के भीतर एक तय समय सीमा में बड़ी संख्या में सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है. ठीक उसी तरह से जैसे किसी हाइवे पर एक से ज्यादा लेन होने से उतने ही समय में ज्यादा गाड़ियां आसानी से दौड़ सकती हैं. ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जायेगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी.
सभी को मोबाइल कनेक्टिविटी सुलभ कराना
ज्यादातर शहरी इलाकों में मोबाइल फोन आसानी से सुलभ है, लेकिन देश के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों समेत दूरदराज क्षेत्रों में नागरिकों को यह सुविधा नहीं हासिल हो पायी है. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का मकसद ग्रामीण उपभोक्ताओं को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग की सेवाएं आसानी से मुहैया कराना है.
पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम
पोस्ट ऑफिस के लिए यह दीर्घावधि विजन वाला कार्यक्रम हो सकता है. इस कार्यक्र म के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में विकसित किया जायेगा. नागरिकों को विभिन्न सरकारी सेवाएं मुहैया कराने के लिए वहां अनेक तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा.
इ-गर्वनेस यानी टेक्नोलॉजी के जरिये शासन में सुधार
इसके तहत विभिन्न विभागों के बीच सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जायेगा. यह कार्यक्रम सेवाओं और मंचों के एकीकरण- यूआइडीएआइ (आधार), पेमेंट गेटवे (बिलों के भुगतान) आदि में मददगार साबित होगा. साथ ही सभी प्रकार के डाटाबेस और सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मुहैया कराया जायेगा. इसके अलावा, स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आइडी कार्डस आदि की जहां भी जरूरत पड़े, वहां उसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है.
इ-क्रांति यानी सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी
इसमें अनेक बिंदुओं को फोकस किया गया है. इ-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (करीब ढाई लाख) में वाइ-फाइ की नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करने की योजना है. किसानों को वास्तविक समय में मूल्य संबंधी सूचना, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना भी इनमें शामिल है. इसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में ऑनलाइन मेडिकल परामर्श, रिकॉर्ड और संबंधित दवाओं की आपूर्ति समेत लोगों को इ-हेल्थकेयर की सुविधा देना भी इनमें शामिल है. न्याय के क्षेत्र में इ-कोर्ट, इ-पुलिस, इ-जेल, इ-प्रोसिक्यूशन की सुविधा. वित्तीय इंतजाम के तहत मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो-एटीएम प्रोग्राम.
सभी के लिए सूचना मुहैया कराना
इस कार्यक्र म के तहत सूचनाओं और दस्तावेजों तक ऑनलाइन पहुंच कायम की जायेगी. इसके लिए ओपन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जायेगा, जिसके माध्यम से नागरिक सूचना तक आसानी से पहुंच सकेंगे. नागरिकों तक सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित मंचों पर सक्रिय रहेगी. साथ ही, नागरिकों और सरकार के बीच दोतरफा संवाद की व्यवस्था कायम की जायेगी.
इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में आत्मनिर्भरता
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़े तमाम उत्पादों का निर्माण देश में ही किया जायेगा. इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है, ताकि वर्ष 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में देश आत्मनिर्भरता हासिल कर सके. इसके लिए आर्थिक नीतियों में संबंधित बदलाव भी किये जायेंगे. फैब-लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसेट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्डस, माइक्रो-एटीएम आदि को बढ़ावा दिया जायेगा.
रोजगार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी
कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्र म को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जायेगा. कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जायेगा. आइटी सेवाओं से जुड़े कारोबार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जायेगा. देखा गया है कि तकनीकी कौशल आधारित नौकरियां हासिल करने में गांवों और छोटे शहरों में लोग पीछे रह जाते हैं. ऐसे में इन इलाकों में रहने वालों को आइटी से जुड़ी नौकरियों के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा, ताकि इन लोगों को जीवन स्तर बढ़ सके.
अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स
डिजिटल इंडिया कार्यक्र म को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचागत सुविधाएं स्थापित करनी होंगी.

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