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आंबेडकर जयंती पर विशेष : दामोदर डैम के निर्माता डॉ आंबेडकर

सुभाष लोखंडे/भंते तिस्सावरो : दामोदर नदी का उद्गम झारखंड के आदिवासी बहुल जिला लातेहार में हुआ है. दामोदर में आनेवाली बाढ़ से लाखों एकड़ खेती बरबाद होती थी. जान माल का नुकसान उठाना पड़ता था. इसलिए इसे दुख की नदी के नाम से जाना जाता था. डॉ बाबासाहब आंबेडकर ब्रिटिश काल में 1942 से 46 […]

सुभाष लोखंडे/भंते तिस्सावरो : दामोदर नदी का उद्गम झारखंड के आदिवासी बहुल जिला लातेहार में हुआ है. दामोदर में आनेवाली बाढ़ से लाखों एकड़ खेती बरबाद होती थी. जान माल का नुकसान उठाना पड़ता था. इसलिए इसे दुख की नदी के नाम से जाना जाता था.

डॉ बाबासाहब आंबेडकर ब्रिटिश काल में 1942 से 46 तक ऊर्जा, श्रम और सिंचाई विभाग में कैबिनेट मंत्री थे. उन्होंने दामोदर नदी की भयानक स्थिति को देखते हुए दामोदर प्रकल्प निर्माण के बारे में सोचा.

इस संदर्भ में दामोदर प्रकल्प पर तीन जनवरी 1945 में आयोजित पहली मीटिंग (कलकत्ता के सचिवालय) में हुई. इसमें बंगाल व बिहार सरकार और तत्कालीन केंद्रीय मध्यवर्ती सरकार के कई प्रतिनिधि भी शामिल हुए. डॉ बाबा साहब ने दामोदर नदी प्रकल्प पर आयोजित तीन परिषदों का नेतृत्व किया. इस परिषद में बाढ़ नियंत्रण और उससे सुरक्षा के बारे में क्या योजना होनी चाहिए. प्रकल्प के कारण नदी का नियंत्रण कैसा होना चाहिए. सूखे से कैसे निबटेंगे.

विद्युत निर्माण कैसे किया जायेगा. इस विषय पर आंबेडकर जी ने विस्तृत मार्गदर्शन किया था और इसका का खाका तैयार किया था. अमेरिका के टेनेसी प्राधिकरण की तरह भारत में भी बहुउद्देश्यीय दामोदर प्रकल्प होना चाहिए ऐसा उन्होंने ठान लिया था. उनके भाषणों में भी यही केंद्र बिंदु होता था. बहुउद्देश्यीय डैम के बारे में कई किताबों में भी उल्लेख है कि सभी डैम को छोटा या बड़ा विरोध ङोलना पड़ा. उदा. अमेरिका में टेनेसी डैम को अगर तत्कालीन अमेरिकन राष्ट्राध्यक्ष रूझवेल्ट का समर्थन नहीं मिलता तो यह डैम नहीं बन पाता.

नर्मदा डैम को गलत ढंग से विरोध नहीं होता तो यह डैम बहुत पहले ही बन जाता. तुंगभद्रा डैम पर मद्रास और हैदराबाद में चल रहे विवाद को खत्म करने में करीब 20 वर्ष लग गये. भाखरा और नांगल प्रकल्प को पूरा होने में 40 वर्ष का समय लगा. कृष्णा-नागाजरुन सागर का आधा कार्य पूरा होने के बाद 10 वर्ष काम ठप रहा था.

परन्तु इसके विपरीत कहानी दामोदर की है. दामोदर डैम ने डॉ आंबेडकर जी के नेतृत्व में अच्छी प्रगति की और इसके लिए प्रांतीय सरकार की भी मदद मिली थी. इसके लिए 1944 में निर्णय हुआ और प्राथमिक अभियांत्रिकी का खाका अगस्त 1945 में तैयार हो कर उसे मान्यता भी मिली थी. मतभेद दूर करते हुए अगस्त 1947 में प्रांतीय सरकारों ने दामोदर प्रकल्प के लिए आर्थिक सहायता देने की जवाबदेही ली और इसके लिए दामोदर नदी प्राधिकरण मंडल की स्थापना की.

दामोदर प्राधिकरण का प्रस्ताव दिसंबर 1947 में लोकसभा में पेश कर फरवरी 1948 में इसका बिल पास कर दिया गया. इसी तरह सात जुलाई 1948 को दामोदर प्राधिकार को कानूनी मान्यता मिल गयी. (डॉ बाबासाहब आंबेडकर नियोजन जल व विद्युत विकास-भूमिका व योगदान किताब के सार से)

डॉ बाबा साहब ने इस डैम के श्रम विभाग के पुनर्वासन विषय की मीटिंग में 22 अप्रैल 1946 को कहा कि जिस किसान की खेती की जमीन गयी है उनको बदले में खेती की जमीन ही मिलनी चाहिए. उनको खेती का उचित मुआवजा मिलना चाहिए और उस किसान के पारिवारिक सदस्य को नौकरी मिलनी चाहिए. ऐसा हुआ या नहीं इस पर एक कमेटी बनानी चाहिए और इसका समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए.

डॉ आंबेडकर ने दामोदर के पुनर्वासन के लिए एक अच्छी नीति बनायी थी. बंगाल हो या उस समय का बिहार हो, इन सारे लोगों ने आंबेडकर जी की पुनर्वासन नीति की धज्जियां उड़ा दी है. आज तक दामोदर प्रकल्प पीड़ितों का पुनर्वासन अधूरा है. झारखंड में बदलती राजकीय परिस्थिति में जमीनी नेता रघुवर दास जी से हमें आशा है कि वे अवश्य इसके लिए कुछ करेंगे. उनकी विकास नीति पर हमारा विश्वास भी है. दामोदर प्रकल्प के बारे में एक बात हमें आज तक समझ में नहीं आयी कि झारखंड बने 14 वर्ष बीत गये हैं.

दामोदर का उद्गम झारखंड में है, सारी परियोजना झारखंड में, परंतु इस प्राधिकरण का मुख्यालय कोलकाता में है और इसका 95 प्रतिशत लाभ बंगाल राज्य लेता है और झारखंड अंधेरे में है. लोग रोजी रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं.

हम प्रांतीय भेदभाव नहीं मानते है, लेकिन डॉ बाबासाहब की नीति के अनुसार, ना ही पुनर्वासन पर अमल हुआ है और ना ही इसके लिए सर्वे कमेटी बनी है. इस संदर्भ में झारखंड के सारे राजनीतिक एक होकर अपना हिस्सा बंगाल से क्यों नहीं मांगते. हमारी मुख्य मांग यह है कि पानी के मूल्यांकन के लिए, पुनर्वासन के मूल्यांकन के लिए, बिजली निर्मिती के मूल्यांकन के लिए, नदी प्रदूषण मूल्यांकन के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास जी को तत्काल एक कमेटी की स्थापना करना चाहिए. आज की स्थिति में इसकी काफी जरूरत है.

इस कमेटी के माध्यम से दामोदर की सारी स्थिति स्पष्ट हो जायेगी. देश के कई राज्यों में उनके डैम प्रकल्प के लिए इस प्रकार की मूल्यांकन कमेटियां मौजूद हैं. ओड़िशा के हीराकुंड डैम के लिए भी डॉ बाबासाहब ने काफी मार्गदर्शन एवं परिश्रम किया है. आज 14 अप्रैल उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर हम उनका अभिवादन करते हैं.

बंगाल राज्य भी दामोदर प्राधिकरण का पूरा लाभ ले रहा है. डॉ बाबासाहब के महापरिनिर्वाण को और दामोदर प्रकल्प बने 60 वर्ष से अधिक समय हो गया है. डॉ आंबेडकर के जन्म दिन पर बंगाल सरकार को भी डॉ बाबासाहब आंबेडकर का भव्य स्मारक बनाना चाहिए. इसमें संबंधित सारी किताबें होनी चाहिए. सभागृह होना चाहिए. यहां विद्यार्थियों व शोधकर्ता के लिए स्टडी हॉल होना चाहिए. यही डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी के प्रति हमारा सच्च आभार होगा.

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