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Friday, March 29, 2024

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दशहरा और संस्कृति : दशहरे पर सौ साल से हो रहा यहां नाटक

अनीश अंकुरपटना जिले में बाढ़ के पास एक मशहूर गांव है पंडारक, जहां पिछले 100 वर्षो से आज तक हर वर्ष नाटक होता है. पंडारक पटना से 80-85 किमी पूरब में बसा गांव है. बाढ़ के पास स्थित गंगा किनारे बसा यह गांव अपने प्रसिद्घ ‘सूर्य मंदिर’ के साथ-साथ अपनी राजनीतिक सक्रियता के लिए भी […]

अनीश अंकुर
पटना जिले में बाढ़ के पास एक मशहूर गांव है पंडारक, जहां पिछले 100 वर्षो से आज तक हर वर्ष नाटक होता है. पंडारक पटना से 80-85 किमी पूरब में बसा गांव है. बाढ़ के पास स्थित गंगा किनारे बसा यह गांव अपने प्रसिद्घ ‘सूर्य मंदिर’ के साथ-साथ अपनी राजनीतिक सक्रियता के लिए भी जाना जाता है. इस इलाके में पंडारक अपेक्षाकृत संपन्न गांव माना जाता है. बाढ़ के पास एनटीपीसी का चर्चित निमार्णाधीन बिजलीघर भी पंडारक के पास ही है.

पंडारक में नाटकों का मंचन 1914 से हो रहा है. कई नाट्य मंडलियां एक साथ सक्रिय हैं. बिहार के कुछ शहरों में तो हो सकता है आपको एक भी नाट्यमंडली न मिले, लेकिन 7-8 नाटक करनेवाली संस्थाएं इस गांव में अब भी हैं. जैसे ‘हिंदी नाटक समाज’, पुण्यार्क कला निकेतन, किरण कला निकेतन, कला मंदिर, नव आर्ट्स, आजाद कला, कला कुंज आदि. ‘हिंदी नाटक समाज’ सर्वाधिक पुरानी नाट्य संस्था मानी जाती है. यही संस्था 1914 से निरंतर काम करनेवाली मानी जाती है. हिंदी नाटक समाज, पंडारक द्वारा सबसे पहला नाटक ‘इंदरसभा’ का प्रदर्शन किया गया.

पंडारक में रंगमंच की शुरुआत का सारा श्रेय चौधरी रामप्रसाद शर्मा और इंद्रदेव नारायण शर्मा नुनू बाबू को जाता है. पुराने कलाकारों में स्व द्वारिका सिंह, बाबाघर, कामेश्वर सिंह, हरि सिंह, सावरन तिवारी, रामदास, नाटक सम्राट ब्रrादेव त्रिपाठी, प्रयाग राम, हीरालाल, बोढ़न साव, सखीचंद गुप्ता, पं ज्ञानधारी त्रिपाठी, रामवतार सिंह, किशुन महतो ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया. इस गांव की नाटक के क्षेत्र में प्रसिद्घि का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1956 में इस गांव में हिंदुस्तानी थियेटर के किंवदंती पुरुष माने जानेवाले पृथ्वीराज कपूर यहां आये थे और अपनी टीम के साथ ‘कलिंग विजय’ नाटक का प्रदर्शन किया था. उनके साथ उनके पुत्र शशि कपूर भी थे. प्रख्यात साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी भी उस मौके पर वहां मौजूद थे. पृथ्वीराज कपूर ने इस अवसर पर कहा था, ‘‘ हिंदी नाटक समाज, पंडाकर सत्यम, शिवम, सुंदरम की दिव्य आभा से आभासित हो. मैं इसके समुज्ज्वल भविष्य की सुखद कामना करता हूं’.

दशहरे के मौके पर कई स्थलों पर नाटकों की प्रस्तुति चलती रहती है. पूरा गांव जैसे नाटकों के मंचन को सफल बनाने में जुटा हो. एक अंदरूनी प्रतियोगिता की भावना भी काम करती हुई नजर आती है. पंडारक को जो बात बाकी गांवों की नाट्यमंडलियों से अलग करती है, वह है नये और आधुनिक किस्म के नाटकों का मंचन. इस काम में सबसे ज्यादा पहलकदमी अजय कुमार, विजय आनंद, शिव कुमार शर्मा, रविशंकर आदि जैसे रंगकर्मियों ने किया है. बाकी गांवों में अब भी पौराणिक या ऐतिहासिक नाटक मंचित होते रहते हैं, लेकिन यहां नाटकों को लेकर नये प्रयोग किये गये.

भिखारी ठाकुर का नाटक ‘गबर घिचोर’ एवं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का मशहूर नाटक ‘बकरी’, ‘अमली’, जांच पड़ताल, चरन दास चोर, घासी राम कोतवाल, सिंहासन खाली है, यहूदी की लड़की, बड़ा नटकिया कौन, कलिंग विजय, कंपनी उस्ताद, बिदेसिया जैसे चर्चित और मशहूर नाटकों के मंचन गांव के कलाकारों द्वारा किये गये हैं. इस वर्ष ‘संगीत नाटक अकादमी’ द्वारा मनायी गयी भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर ‘किरण कला निकेतन’, पंडारक के कलाकारों द्वारा प्रेमचंद रंगशाला में ‘सत्य हरिश्चंद’ नाटक का प्रभावशाली मंचन किया गया. इसके अलावा ‘पटना पुस्तक मेले’ में होनेवाले नुक्कड़ नाटकों में पंडारक की रंग संस्थाओं, किरण कला निकेतन, पुण्यार्क कला निकेतन आदि का प्रदर्शन हर साल देखने का मौका मिलता रहा है. इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय बात यह रही है कि बिहार के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बिहार की जिन चुनिंदा 18 नुक्कड़ नाट्य टीमों का चयन हुआ, उनमें पंडारक की टीम भी शामिल थी. पटना से हर वर्ष अभिनेता खासकर अभिनत्रियां पंडारक जाती हैं.

पटना रंगमंच की कई अभिनेत्रियां पंडारक में जाकर अभिनय कर चुकी हैं. इसकी प्रमुख वजह गांव की लड़कियों का अब भी नाटक में भाग नहीं लेना है. स्त्री पात्रों के लिए पटना की अभिनेत्रियों को आमंत्रित किया जाता है. वे वहां दो-चार दिन ठहर कर नाटकों का रिहर्सल कर नाटकों का मंचन करती हैं. पंडारक जैसे गांव में भी लड़कियां नाटक में भाग लेने से कतराती रही हैं. वहां के कलाकारों के साथ-साथ वहां के समाज को यह काम करने में आगे आना है. लड़कियों के मामले में गांव का सामंती और पिछड़ा सोच यहां आड़े आता है. वैसे अजय कुमार ने अपनी पुत्री को रंगमंच पर उतार कर एक प्रेरणादायी पहलकदमी ली है.

आधुनिक कला केंद्र है पंडारक

रिचर्ड एटेनबेरो की ‘गांधी’ फिल्म में काम करनेवाली पटना रंगमंच की मशहूर अभिनेत्री रहीं नूर फातिमा पंडारक रंगमंच से जुड़ी थीं. वे ज्यादातर वहां की संस्था ‘कला मंदिर’ के नाटकों में भाग लेती थीं. पंडारक से अपने जुड़ाव के बारे में उन्होंने कहा था, ‘‘ पंडारक सच में आधुनिक कला केंद्र है, जहां प्रत्येक कलाकार, कलामर्मज्ञ और दर्शक अपने से लगते हैं. वहां के कण-कण से मेरा कलात्मक और भावनात्मक संबंध है’. थियेटर के कई विद्वान मानते हैं कि थियेटर को यदि बचना है, अपनी प्रासंगिकता सिद्घ करनी है, तो उसे स्थानीयता का ख्याल रखना होगा, उसे गांवों की ओर मुड़ कर अपनी बोली पर ध्यान देना होगा. मेरे ख्याल से थियेटर और समाज का रिश्ता एक दूसरे को कैसे प्रभावित करता है, इस चीज को देखने-परखने के लिहाज से भी गांवों की ओर नाटक के शोधार्थियों का ध्यान जाना चाहिए. पंडारक इस लिहाज से भी एक उदाहरण हो सकता है.

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