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Friday, March 29, 2024

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मालदा और पटना के बीच चली होली स्पेशल ट्रेन

भागलपुर : यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ से निपटने के लिए रेलवे ने सोमवार को मालदा और पटना के बीच होली स्पेशल ट्रेन चलायी. होली स्पेशल ट्रेन मालदा से रात आठ बजे खुली और भागलपुर रात के 12.35 बजे पहुंची. यहां दो मिनट का ठहराव के बाद पटना के रवाना होगी. यह ट्रेन दूसरे दिन मंगलवार […]

भागलपुर : यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ से निपटने के लिए रेलवे ने सोमवार को मालदा और पटना के बीच होली स्पेशल ट्रेन चलायी. होली स्पेशल ट्रेन मालदा से रात आठ बजे खुली और भागलपुर रात के 12.35 बजे पहुंची. यहां दो मिनट का ठहराव के बाद पटना के रवाना होगी. यह ट्रेन दूसरे दिन मंगलवार सुबह 8.05 बजे पटना से मालदा के लिए चलेगी. जो भागलपुर दोपहर 12.58 बजे पहुंचेगी. इसके बाद दो मिनट का ठहराव के बाद मालदा के लिए रवाना हो जायेगी.

इस ट्रेन का मालदा पहुंचने का समय शाम 4.30 बजे निर्धारित है. होली स्पेशल ट्रेन चलाने से होली पर घर लौटने वालों को थोड़ी-बहुत राहत मिली है.

मालदा-आनंद विहार वाया भागलपुर होली स्पेशल ट्रेन 28 मार्च से : मालदा से आनंद विहार वाया भागलपुर व सुलतानपुर होली स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा पहले हो चुकी है. यह ट्रेन 28 मार्च से चलेगी. मालदा और आनंद विहार के बीच दो-दो फेरा लगायेगी. मालदा से 28 मार्च व चार अप्रैल को आनंद विहार के लिए खुलेगी.
वहीं आनंद विहार से 29 मार्च व पांच अप्रैल को मालदा के लिए खुलेगी. यानी, होली स्पेशल ट्रेन मालदा से सोमवार को, तो आनंद विहार से मंगलवार को चलाने का दिन नर्धिारित किया गया है. मालदा से सुबह 9.05 बजे और आनंद विहार से शाम 5.10 बजे खुलने का समय तय किया गया है. यह ट्रेन अप में दोपहर 12.53 बजे, तो डाउन में शाम 6.45 बजे भागलपुर पहुंचेगी. होली स्पेशल ट्रेन में सात स्लीपर, दो एसी-थ्री, एक एसी-टू एवं दो एसएलआर कोच रहेंगे.
घरों तक ही सिमट कर रह गये हैं लोग
पहले होली को भक्त प्रह्लाद की भक्ति को प्रदर्शित करते हुए मनाते थे. इसमें अधर्म पर धर्म की जीत को दिखाया जाता था. उस समय लोग खुशी मनाते थे. एक-दूसरे के घर जाकर बड़ों का पांव छूकर आशीर्वाद लेते थे. पकवान का आनंद लेते थे. आज के समय में होली केवल नाम मात्र व दिखावा हो गया है. बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना तो दूर, उन्हें पूछते भी नहीं. लोग एक-दूसरे से परहेज करने लगे हैं.
श्रवण बाजोरिया, अध्यक्ष, अध्यक्ष, नगर शाखा मारवाड़ी सम्मेलन
पहले होली में पूरे मोहल्ले में चौपाल लगती थी. सभी लोग पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे झाल-मंजीरा, ढोलक आदि के साथ जोगिरा गाते थे. यह कार्यक्रम होली के एक-दो सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाता था. समाज के प्रमुख लोगों के यहां प्रतिदिन होली गीत व पकवान की व्यवस्था होती थी. इसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं होता था. पहले दो दिन की होली होती थी. एक दिन धूल खेल होता था, दूसरे रंग-गुलाल की होली होती थी. अब यह नशीले पदार्थों का सेवन करने का बहाना बन गया है. होली को बदरंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती. बावजूद आज भी होली प्रेम-सद्भाव और आपसी भाईचारे का त्योहार है.
जगदीशचंद्र मिश्र पप्पू, महासचिव, चेंबर ऑफ कॉमर्स
पहले होली में शालीनता होती थी, अब शालीनता नहीं देखी जा रही है. बड़े-बुजुर्गों का जो सम्मान था, उसमें व्यापक रूप से कमी आयी है, जो सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है. पहले होली का हुड़दंग भी आनंद देता था, अभी का हुड़दंग दु:खदायी होता है. पहले की होली में हंसी-मजाक कई लोगों के विवाद को सुलझाने का कारगर कदम होता था.
पीके सुल्तानिया, अध्यक्ष, भागलपुर गुड्स ट्रांसपोर्ट एसाेसिएशन
पहले होली में युवा व बुजुर्ग एक साथ होली गाते थे. भारतीय संस्कृति व सभ्यता के अनुसार ही सभी लोग अपने बड़े-बुजुर्गों का आदर करना नहीं भूलते. पहले शिष्टाचार था, अब अनुशासन के बल पर ही कोई बड़ों का इज्जत करता है, इसमें दबाव दिखता है. होली आज भी सद्भावना का त्योहार है, लेकिन सद्भावना के बीच कड़वाहट भी घुल जाता है. इक्के-दुक्के लोगों के कारण समाज के सभी लोग परेशान होते हैं. इससे अपनी संस्कृति पर असर पड़ता है.
विजय साह, कार्यवाहक सचिव
जिला स्वर्णकार संघ
अब न वह होली रही, न ठिठोली रही, न वह मस्ती रही. कहां गये वे दिन, जब होली के सप्ताह पूर्व ही होली का खुमार चढ़ना शुरू हो जाता था. रात-रात भर मोहल्ले की टोलियां अष्टपदी, चौपदी, जोगिया और चेती सामूहिक रूप से बैठ मस्ती भरे स्वर में गाती थी. होली में रंग-गुलाल, अबीर के खेल होते थे. मोहल्ले में लोग कमर में ढोलक बांध और हाथ में झाल लिये हर घर के दरवाजे पर जाते थे. गृहस्वामी उनका पूआ, मालपुआ और ठंडई-भांग से स्वागत करते.
सब एक दूसरे के गले मिलते थे. उस समय सांप्रदायिक सद्भाव था. मुझे याद है कि हमारे नानाजी को होली की मुबारकवाद देने बड़ी संख्या में उनके परिचित मुसलमान मित्र पहुंचते थे. उनका स्वागत मिठाई, पुआ व लांग-इलाइची से किया जाता था. नाना जी से होली पर मिलने एक मौलाना आये थे. उनकी सफेद दाढ़ी पर मैंने पीछे से अबीर मल दिया. नानाजी जब मुझे डांटने लगे, तब मौलाना साहेब ने कहा-अरे बच्चे हैं. होली पर अबीर लगा ही दिया, तो कौन बड़ी बात हो गयी. यह थी, उस समय की सहिष्णुता और भाईचारा. आज होली में न तो वह मस्ती रही और न वह उल्लास.
मुकुटधारी अग्रवाल, संरक्षक, इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
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