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तीज : हर विवाहिता पिया के लिए करती है सोलह श्रृंगार, जानिए इसके वैज्ञानिक पहलू

रश्मि‍ शर्मा rashmiarashmi@gmail.com तीज का पर्व हर विवाहिता के लिए वह सौभाग्य-सा है, जिसे सच्चे मन से निभा कर वह पति के लिए मंगल कामना करती है. उसके अच्छे स्वास्थ्य व लंबी आयु की कामना करती है. वह चाहती है कि उसके व्रत का तप उसके जीवनसाथी को हर बला से दूर रखे. विवाह के […]

रश्मि‍ शर्मा
rashmiarashmi@gmail.com
तीज का पर्व हर विवाहिता के लिए वह सौभाग्य-सा है, जिसे सच्चे मन से निभा कर वह पति के लिए मंगल कामना करती है. उसके अच्छे स्वास्थ्य व लंबी आयु की कामना करती है. वह चाहती है कि उसके व्रत का तप उसके जीवनसाथी को हर बला से दूर रखे. विवाह के बाद यही ऐसा अवसर होता है जब मनमोहे पिया के लिए स्त्रियां सोलह शृंगार करती हैं. परंपराओं व रीति-रिवाज का आखिर यह कैसा ताना-बाना है, जो हमारी लोक संस्कृति को समृद्ध तो बनाता ही है, रिश्तों के बंधन को भी सात जन्मों के लिए अटूट कर देता है यह पर्व.
नवयौवना हों या उम्रदराज महि‍लाएं, तीज के दि‍न सभी सजती-संवरती हैं, बि‍ल्‍कुल दुल्‍हन की तरह. सोलह शृंगार से परि‍पूर्ण उसका दमकता रूप पूनम के चांद को भी मात दे दे. शादी के बाद की जिस स्त्री का पहला तीज हो, उसके लिए तो यह अनूठा मौका यह होता है.
हरि‍याली तीज श्रावण मास में मनाया जाता है, जि‍से श्रावणी तीज या कजली तीज भी कहते हैं, मगर हम भादो मास में मनाये जानेवाले तीज को ‘हरतालि‍का तीज’ के रूप में जानते हैं. यह भाद्रपद, शुक्‍लपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. इस दि‍न कुंवारी लड़कि‍यां मनचाहे पति‍ और वि‍वाहि‍ताएं पति‍ की लंबी आयु की कामना के साथ व्रत रखती हैं और शंकर-गौरी की पूजा करती हैं. हरतालि‍का नाम इसलि‍ए पड़ा, क्योंकि पार्वती को पि‍ता के घर से हरकर सखि‍यां जंगल में ले गयी थीं.
जब मैं छोटी थी, तभी से परि‍वार में सभी को तीज व्रत करते और सोलह शृंगार करते देखा. घर में कई दि‍न पहले से तैयारी चलती. खासकर व्रतवाले दि‍न और कई बार व्रत के ठीक एक दि‍न पहले बननेवाले पकवान और गुझि‍या, जि‍से हमारे यहां पिड़ुकि‍या कहा जाता है, हमलोग मां के साथ-साथ व्रत की तैयारी करते.
महि‍लाएं एकत्र होकर पूजन कथा सुनतीं और पूजा करतीं. कहीं-कहीं घर में बालू से शि‍व-पार्वती की प्रति‍मा बना कर पूजन करने का रिवाज है. सुबह सभी महि‍लाएं एकत्र होतीं और पहले गौरा को सिंदूर लगा कर खुद भी लगाती हैं. तब आपस में एक-दूसरे को सिंदूर लगाने के बाद गीत गाते हुए नदी या तालाब में वि‍सर्जन कर देतीं. वापस घर आकर व्रत का पारण करतीं.
बहुत विस्तार से तब पता चला जब घर में भाभी आयीं. उनकी पहली तीज शादी के छह महीने बाद पड़ी. पता चला कि‍ वह यहां तीज न करके मायके जायेंगी.
मां ने बताया कि‍ नव-ब्याहता पहला तीज मायके में ही करती है और ससुराल से कपड़े, फल और मि‍ठाइयां सहि‍त सुहाग की डलि‍या मायके जाती है. इसके पीछे संभवत: दो कारण हैं. एक तो चूंकि‍ पार्वती ने कौमार्य अवस्था में ही व्रत कि‍या था, इसलि‍ए इसे पहली बार मायके में करने का वि‍धान है. दूसरा, मायके में पहला तीज मनाने के पीछे सामाजि‍क कारण है कि‍ नयी बहुएं अपनी सखि‍यों संग सज-संवरकर उत्साह से पर्व करती हैं. यह कठि‍न पर्व माना जाता है, क्योंकि‍ इसमें जल भी नहीं पिया जाता.
सोलह शृंगार के वैज्ञानिक पहलू
सोलह शृंगार अर्थात् उबटन, स्नान, वस्त्रधारण, केश प्रसाधन, काजल, सिंदूर से मांग भरना, महावर, तिलक, चिबुक पर तिल, मेहंदी, सुगंध लगाना, आभूषण, पुष्पमाला, मिस्सी लगाना, तांबूल और अधरों को रंगना. मगर हर जगह शृंगार की परि‍भाषाएं अलग हैं, पर इनमें वैज्ञानि‍क कारण भी छिपे हैं. जैसे-
बिंदी लगाने के पीछे दृष्टिकोण है कि माथे पर दोनों भौंहो के बीच एक नर्व प्वाइंट होता है, जिसे ‘आज्ञा चक्र’ भी कहते हैं. यह एकाग्रता को नियंत्रित करता है.
इसी प्रकार सिंदूर में मर्करी और चूना होता है, जो ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है. नथ पहनने के पीछे विज्ञान है कि बायें नाक की नर्व का संबंध सीधे गर्भाशय से होता है, जो प्रसव के दौरान होनेवाली समस्याओं से बचाता है. झुमका पहनने से महिलाओं के कठिन दिनों में सहायता मिलती है. इसी प्रकार बाकी शृंगारों के पीछे अलग-अलग विज्ञान छिपे हैं.
– परंपरा में नयापन
बना रहे मेरा सुहाग
नवविवाहित कन्याओं के लिए उनके सुसराल से शृंगार सामग्री आती है. इसके पीछे मान्यता है कि‍ चूंकि‍ पत्नी अपने पति‍ की लंबी उम्र के लि‍ए व्रत रखती है, तो ससुरालवाले आर्शीर्वाद के तौर पर यह भेजते हैं. जब भाभी पहली तीज पर मायके गयीं, तो उनके लि‍ए तीज पहुंचाने मैं भी गयी. एक बड़ी डलि‍या में शृंगार की सभी चीजें थीं.
फि‍लहाल हम सब भाभी के मायके पहुंचे. बि‍हार में है उनका मायका. तीजवाले दि‍न भाभी गंगा कि‍नारे गयीं और नदी में स्नान के बाद नये कपड़े पहने. लकड़ी के पीढ़े पर नदी से बालू लेकर शि‍व-गौरी की प्रति‍मा बनायी.
पूजन के बाद मां का दि‍या खोंइछा लेकर भाभी वापस घर आयीं. उनके भाई पीढ़े को लेकर आये और उसी शि‍व-पार्वती के बालू के वि‍ग्रह को घर में स्थापि‍त कर दि‍या. शाम को सारी सुहागि‍नें एकत्र हुईं और पूजन के बाद कथा सुनीं. पूजा समाप्त होने के बाद भाभी ने फि‍र नया वस्त्र पहना और गौरा का सिंदूर लगाया.
यह सि‍लसि‍ला रातभर चलता रहा. सभी महि‍लाएं गीत-भजन गाते हुए जगी रहीं.
रात्रि‍ जागरण के लि‍ए शि‍व भजन ही गाया जाता है, जि‍समें शि‍व को मनाने की बात आती है –
”का ले के शि‍व के मनाइब हो शि‍व मानत नाहीं
हाथी और घोड़ा शि‍व के मनहु न भावे
डमरू कहां से हम पाइब हो शि‍व मानत नाहीं”
”शि‍वशंकर चले कैलाश, बूंदि‍यां पड़ने लगी
गौरी ने रोप दि‍या हरी-हरी मेंहदी
शंकर ने रोप दि‍या भांग, बूंदि‍यां पड़ने लगी”
‘कइसे तू शिव के मनवलु ए गउरा’ तो कभी गीत में मान-मनौव्वल भी चलता है-
”केहू साजन के आपन इंतजार करता
मेहंदी हाथ लगा के तन पे शृंगार करता”
”तीज के त्योहार बा नया लुगा चाही,
सोहाग सिंगार कईसे मेहंदी लगाईं,
दोसरो के देख शौकियात नईखs काहे,
भईल बियाह कमात नईखs काहे”
मान्यता है कि‍ रात में सो जाने से व्रत का पूरा फल नहीं मिलता.
जब मेरी शादी हुई तो मेरे ससुराल का चलन थोड़ा अलग था. यहां मायका और ससुराल दोनों पक्षों ने मुझे कपड़े और शृंगार सामग्री दि‍ये. तीज से एक दि‍न पहले हाथों में मेहंदी रचायी गयी. घर में पिड़ुकि‍या और ठेकुआ बनने लगा. दूसरे दि‍न तीज में सुबह नहाकर रोज की तरह पूजन की गयी. शाम को सोलह शृंगार कि‍या. हालांकि आजकल कुछ लोग पत्नी के साथ-साथ नि‍र्जला व्रत रखते हैं. यह परंपरा से अलग जरूर है, मगर एक अच्छी शुरुआत भी है, जो दोनों में एक-दूसरे के लिए प्यार और समर्पण को जाहिर करती है. फिर बदलते वक्त के साथ कुछ अच्छी चीजें अपनाने में हर्ज ही क्या है.
सौभाग्य का दिन
दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार हरितालिका व्रत का इस बार 24 अगस्त, गुरुवार को मनाया जायेगा. विवाहित स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए एवं कन्याएं भावी जीवन में सुयोग्य जीवनसाथी मिलने की कामना से इस कठिन व्रत को श्रद्धा विश्वास के साथ पूर्ण करेंगी.
माना जाता है कि देवी पार्वती को 108 जन्मों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी तब भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया. भगवान शिव और देवी पार्वती ने इस तिथि को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया है. मान्यता है कि इस दिन जो सुहागन स्त्रियां सोलह शृंगार करके शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, उनका सुहाग लंबे समय तक बना रहता है.

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