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वॉशिंगटन डायरीः हैप्पी हैलोवीन!

ब्रजेश उपाध्याय बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन से कैपिटल हिल इन दिनों उजाड़ और भुतहा नज़र आता है. एक तो चारों तरफ़ सूखे पत्तों की भरमार है, दूसरे इमारत की गुंबद में आई दरारों की मरम्मत के लिए जो उसके इर्द-गिर्द काली-काली लोहे की जालियां लिपटी हुई हैं उनसे एक अलग ही स्पेशल इफ़ेक्ट पैदा हो रहा […]

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कैपिटल हिल इन दिनों उजाड़ और भुतहा नज़र आता है. एक तो चारों तरफ़ सूखे पत्तों की भरमार है, दूसरे इमारत की गुंबद में आई दरारों की मरम्मत के लिए जो उसके इर्द-गिर्द काली-काली लोहे की जालियां लिपटी हुई हैं उनसे एक अलग ही स्पेशल इफ़ेक्ट पैदा हो रहा है.

सांसद और सेनेटर भागे हुए हैं अपने-अपने इलाक़ों में जनता को डराने. आप सोचेंगे कि हैलोवीन का त्योहार है, डरने-डराने का मौसम है.

इसमें बच्चे, बूढ़े और जवान तरह-तरह के मुखौटे लगाकर एक-दूसरे को डराते हैं तो सियासतदान क्यों पीछे रहें.

वॉशिंगटन से ब्रजेश उपाध्याय की डायरी

लेकिन डराने से मेरा मतलब चुनाव प्रचार से था, यहां दोनों में बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं है.

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हैलोवीन में लोगों को डराने के लिए तरह-तरह के मुखौटों का इस्तेमाल होता है.

डेमोक्रैट को वोट दोगे तो बंदूक रखने का हक़ छीन लेगा, रिपब्लिकन को जिताओगे तो अर्थव्यवस्था का कचूमर निकाल देगा.

ओबामा के हाथ मज़बूत करोगे तो मुसलमानों का राज हो जाएगा, मुझे वोट नहीं दोगे तो तुम्हारे घर में इस्लामिक स्टेट वाले घुस आएंगे, मेरे दोस्त का साथ नहीं दोगे तो तुम्हारी सारी नौकरियां भारत और चीन चली जाएंगी, वगैरह-वगैरह.

सियासतदानों की ख़ासियत ये है कि उन्हें लोगों को डराने के लिए मुखौटे की ज़रूरत नहीं पड़ती या फिर जो चेहरा दिखता है हमें और आपको वो नैचुरल मुखौटा होता है.

बेचारी मासूम अमरीकी जनता को तो डरने का बहाना चाहिए होता है. जिसने अच्छे से डराया, उससे चिपक लेती है.

टिम कुक

लेकिन अब सबसे बड़ा डर उनके लिए पैदा हो गया है ऐप्पल के सीईओ टिम कुक की वजह से.

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कुक साहब ने सरेआम ऐलान कर दिया है कि वो समलैंगिक हैं और ये भी कह दिया कि उनके लिए भगवान के हाथों से मिला हुआ ये सबसे बड़ा तोहफ़ा है.

इतने बड़े मुकाम पर पहुंचकर, 53 की उम्र में उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी और रुझान दुनिया के सामने क्यों खोल दिया, उस पर अभी अख़बारों के पन्ने रंगे जा रहे हैं और रंगे जाएंगे.

लेकिन मैं तो सोच रहा हूं कि उन लाखों, करोड़ों अमरीकियों का क्या होगा जिनकी जान आईफ़ोन, आईपैड, मैक और आईपॉड में बसती है.

डर

हर नया मॉडल लॉन्च होते ही दुकानों के बाहर कतारें लग जाती हैं, डेटिंग, चैटिंग, नौकरी, बैंक, गाड़ी, घर सबकी चाभी तो आईफ़ोन में होती है यहां.

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कैसे काम चलेगा उनका आईफ़ोन के बगैर? आईफ़ोन में ही रहती है उनकी पर्सनल खिदमतगार सीरी. सीरी रास्ता बताओ, सीरी गाना लगाओ, सीरी मुझसे बातें करो, सीरी मुझे हंसाओ. अब क्या होगा?

अमरीका के 29 राज्यों में किसी भी महिला या पुरुष को फ़ौरन नौकरी से निकाला जा सकता है अगर ये पता चल जाए कि वो समलैंगिक हैं, कुछ साल पहले तक फ़ौज में भी यही हालत थी.

ज़्यादातर चर्चों में पादरी उनकी शादी करवाने से इनकार कर देते हैं, बिज़नेस मीटिंग्स में कई बार उन्हें सामने नहीं भेजा जाता कि कहीं दूसरी पार्टी उनसे हाथ मिलाना नहीं पसंद करे.

हैप्पी हैलोवीन!

ऐसे में जब ये पता चला है टिम कुक समलैंगिक हैं तो उनके बनाए आईफ़ोन, आईपैड को कंज़रवेटिव अमरीका कैसे हाथ लगाएगा? धर्म भ्रष्ट होने का डर, अगली पीढ़ी के गुमराह होने का डर, चर्च का डर, समाज का डर — कैसे उबरेगा अमरीका इससे.

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अमरीका के अलावा मुझे चिंता सता रही है बाबा रामदेव की भी. उनके योगा क्लासेज़, उनकी अमृतवाणी आई-ट्यूंस पर भी हैं.

बाबाजी तो समलैंगिकता को बीमारी मानते हैं. मुझे पूरा यकीन है वो आई-ट्यूंस से रिश्ता तोड़ लेंगे. आख़िर पूरी दुनिया की सेहत ठीक करने का उन्होंने बीड़ा उठाया है.

हैलोवीन का डर तो एक-दो दिनों में खत्म हो जाएगा. लेकिन देखिए आईफ़ोन के डर से अमरीका कैसे उबरता है.

हैप्पी हैलोवीन!

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