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कोयलाः अध्यादेश आया पर कई सवाल बाक़ी

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता सोमवार को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिए ऊर्जा, सीमेंट और इस्पात क्षेत्र में निजी कंपनियों को ई-ऑक्शन द्वारा कोयला खदान हासिल करने की इजाज़त दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 218 में से 214 कोयला खदानों का आवंटन किया था. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के फ़ैसले […]

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सोमवार को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिए ऊर्जा, सीमेंट और इस्पात क्षेत्र में निजी कंपनियों को ई-ऑक्शन द्वारा कोयला खदान हासिल करने की इजाज़त दे दी.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 218 में से 214 कोयला खदानों का आवंटन किया था.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के फ़ैसले के बारे में बताते हुए कहा कि सीमेंट, स्टील और ऊर्जा के क्षेत्र में ईंधन की सख़्त ज़रूरत है और इसी वजह से सरकार यह अध्यादेश लाई है.

लेकिन इस अध्यादेश में कई ऐसी बातें हैं जो स्पष्ट नहीं हो सकी हैं. बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद इन अस्पष्ट बातों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं.

रिवर्स ऑक्शन या उल्टी नीलामी

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आम तौर से नीलामी में विक्रेता नीलाम की जाने वाली वस्तु का एक दाम लगाता है जिसके बाद खरीदार उसकी बोली लगाते हैं और जिसने सब से अधिक बोली लगाई वह वस्तु उसके नाम हो जाती है.

लेकिन रिवर्स ऑक्शन या उल्टी नीलामी में होता उल्टा है. इस प्रक्रिया में खरीदार ऑनलाइन जाकर रियल टाइम में विक्रेताओं को किसी चीज़ या सर्विस पर बोली लगाने का निमंत्रण देता है. जो विक्रेता सब से सस्ती बोली लगाता है, खरीदार वो चीज़ या सर्विस उसी से खरीदता है.

मतलब ये हुआ कि अगर आप एक बड़ा दफ्तर खोलना चाहते हैं जहाँ आप कई कम्प्यूटर्स लगाने का इरादा रखते हैं तो आप ऑनलाइन जाकर एक कॉन्ट्रैक्ट ऑफर करें और विक्रेताओं को बोली लगाने की दावत दें.

आपको जो सब से कम दाम में कंप्यूटर्स सप्लाई करने की बोली लगाता है कॉन्ट्रैक्ट उसी को दें. पहली बार इसका इस्तेमाल अगस्त 2001 में अमरीकी विमान कंपनी यूएस एयरवेज़ ने किया था.

ई-ऑक्शन

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क्यूंकि रिवर्स ऑक्शन ऑनलाइन होता है इसी लिए इस प्रक्रिया को ई-ऑक्शन कहते हैं.

इसमें घपला होने की सम्भावना बिलकुल नहीं के बराबर होती है.

इसी लिए इस प्रक्रिया को पारदर्शी समझा जाता है.

सबसे अधिक फायदा किसको?

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इस अध्यादेश के एक प्रावधान की काफ़ी प्रशंसा की जा रही है. अरुण जेटली के अनुसार इसका मुनाफ़ा केवल राज्य सरकारों को मिलेगा. केंद्र सरकार कुछ नहीं लेगी.

इसका मतलब साफ़ है कि जिस राज्य में कोयला खदान अधिक होंगे उसको फ़ायदा अधिक होगा. कोयले का उत्पादन छत्तीसग़ढ में सब से अधिक होता है.

क्यूंकि इस राज्य में सब से अधिक कोयले के खदान हैं तो फ़ायदा भी सब से ज़्यादा इसी राज्य को होगा.

वैसे कोयले के खदान झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडीशा और महाराष्ट्र में भी हैं जिससे इन राज्यों को भी फ़ायदा होगा.

कोयला खदान वाले राज्य अपनी कमाई बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक कोयला बेचने में दिलचस्पी दिखाएंगे जिससे कोयले का उत्पादन भी बढ़ेगा.

अध्यादेश का मतलब?

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पिछले कुछ सालों से स्टील, सीमेंट और बिजली बनाने वाली कंपनियां कोयला विदेश से आयात करती रही हैं.

लेकिन अब अगर उन्हें कोयला देश के अंदर खदानों से मिलेगा तो इससे आयात घटेगा और इन कंपनियों की पैदावार बढ़ेगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी.

इस अध्यादेश का मतलब निजीकरण?

अरुण जेटली ने साफ़ किया कि इसका मतलब कोयले के खदानों का निजीकरण नहीं है.

लेकिन इस कदम का साफ़ मतलब है कि भविष्य में निजीकरण का रास्ता अपनाया जाए तो अधिक दिक्कतें नहीं होंगी.

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