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परवरिश में कमी रह गयी!

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार हमारे एक साथी हैं, साधुराम जी. जैसा नाम, वैसा ही स्वभाव और दिल भी. साधुराम की एक छोटी सी परचून की दुकान थी. अच्छी पत्नी उर्मिला. एक प्यारी बेटी हर्षा. और एक छोटा सा मकान. लेकिन, उर्मिला एक एक्सीडेंट में चल बसी. जाते-जाते तीन साल की हर्षा को झोली में डालते […]

वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
हमारे एक साथी हैं, साधुराम जी. जैसा नाम, वैसा ही स्वभाव और दिल भी. साधुराम की एक छोटी सी परचून की दुकान थी. अच्छी पत्नी उर्मिला. एक प्यारी बेटी हर्षा. और एक छोटा सा मकान. लेकिन, उर्मिला एक एक्सीडेंट में चल बसी. जाते-जाते तीन साल की हर्षा को झोली में डालते हुए कह गयी- पहाड़ सी जिंदगी अकेले नहीं बिता पाओगे. दूसरी शादी कर लेना. लेकिन, साधुराम ने उर्मिला की याद को बनाये रखने खातिर दूसरी शादी नहीं की. हर्षा को पाला. उसे डॉक्टर बनाया. उसका सहपाठी था, डॉ अरविंद. दोनों की धूमधाम से शादी भी की. शादी के बाद दोनों हैदराबाद चले गये. अस्पताल में जॉब मिल गयी. बेटी-दामाद ने आग्रह किया- पापा, हमारे साथ रहिये. लेकिन, साधुराम ने मना कर दिया.
समय अच्छा गुजरता रहा. साधुराम 75 साल के होने को आ गये. उन्हें लगा कि अब उन्हें बेटी-दामाद के पास रहना चाहिए. उन्होंने वसीयतनामा तैयार किया और पहुंच गये हैदराबाद. बेटी-दामाद और उनके दो बच्चे उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट आये. तीन बेडरूम का फ्लैट था उनका. एक में बेटी-दामाद, एक में बच्चे और एक में साधुराम एडजस्ट हो गये.
कुछ दिन सब कुछ बहुत अच्छा चला. एक दिन साधुराम ने हर्षा को अपनी मंशा बतायी- सोचता हूं जिंदगी के बाकी दिन तुम लोगों के साथ ही बिता दूं. बेटी-दामाद खुश हुए. कुछ दिन और गुजरे. बेटी और दामाद दोनों को अमेरिका में जॉब मिल गयी, एक बहुत बड़े हॉस्पिटल में. जब वीजा के लिए आवेदन का वक्त आया तो बेटी ने कहा- सॉरी पापा. आप हमारे साथ नहीं चल सकते. हॉस्पिटल ने छोटा सा फ्लैट दिया है, प्राइवेसी मैंटेन करना मुश्किल है. आपको बाद में बुला लेंगे. तब तक आपको ओल्ड एज रिसॉर्ट में शिफ्ट किये देते हैं.
यह सुन कर साधुराम की आंखें छलछला आयीं. कुछ नहीं बोले. अगले दिन पहली फ्लाइट से वे लखनऊ लौट आये. मित्र, रिश्तेदार, पड़ोसी, किरायेदार सब बहुत खुश हुए. किरायेदार ने कहा- अब से आप का ख्याल हम रखेंगे. किरायेदार की छोटी सी पोती नैना उनकी गोद में बैठ गयी- दादू, आप अब हमें छोड़ कर कभी मत जाना.
साधुराम कुछ दिन बाद अचानक हमारे घर आये. हमारे हाथ में एक लिफाफा थमाया- न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये. इसमें मेरी रजिस्टर्ड वसीयत की एक कॉपी है. वसीयत थी- मेरा हर तरह से ख्याल रखनेवाले किरायेदार उमेश मेहता, उसकी पत्नी जाह्नवी, उसके बेटे, बहू और उसकी बेटी नैना के नाम बराबर-बराबर संपत्ति.फिर साधुराम ने ऊपर की ओर देखा-माफ करना उर्मिला, मेरी परवरिश में कुछ कमी रह गयी.

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