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झाड़ू फेंको, ‘घर वापसी’ कराओ

सत्य प्रकाश चौधरी प्रभात खबर, रांची रुसवा साहब ने मीर की तरह अभी यह एलान नहीं किया है कि ‘मीर के दीन-ओ-मजहब को अब पूछते क्या हो/ कश्का खेंचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया’. इसलिए वह घबराये हुए हैं. न जाने किस चौक-चौराहे पर‘घर वापसी’ करानेवाला कोई ‘रामजादा’ मिल जाये. विकास के […]

सत्य प्रकाश चौधरी प्रभात खबर, रांची

रुसवा साहब ने मीर की तरह अभी यह एलान नहीं किया है कि ‘मीर के दीन-ओ-मजहब को अब पूछते क्या हो/ कश्का खेंचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया’. इसलिए वह घबराये हुए हैं. न जाने किस चौक-चौराहे पर‘घर वापसी’ करानेवाला कोई ‘रामजादा’ मिल जाये.

विकास के रंग में खुद को रंग कर देश की गद्दी तक पहुंचनेवालों का रंग उतरना शुरू हो गया है. भई, रंगे सियारों का रंग एक न एक दिन तो उतरता ही है. अब वो हर तरफ ‘हिंदू राष्ट्र’ की हुआं-हुआं मचाये हुए हैं. सियारा वैसे तो बड़े डरपोक होते हैं, लेकिन शाम ढलने के बाद जब एकसाथ हुआं-हुआं करना शुरू करते हैं तो दिल डूबने लगता है, मानो कोई अनहोनी कहीं आसपास ही हो. ऐसी ही किसी अनहोनी की आशंका से घिरे रुसवा साहब, पप्पू पनवाड़ी की दुकान पर पहुंचे. वहां मुन्ना बजरंगी जमे हुए हैं. उसी कूड़े के ढेर के बगल में, जिसे साफ करते हुए वह शहर के सभी अखबारों में अपनी फोटो छपवा चुके हैं. कई दिनों तक इस मुगालते में रहे कि स्वच्छता अभियान के तहत उन्होंने इतनी ‘मेहनत’ की है, सरदार फोन कर शाबाशी जरूर देगा. लेकिन फोन नहीं आया. बेचारे परेशान हैं- का पर करूं सिंगार कि पिया मोर आन्हर. मुन्ना बजरंगी घनघोर आस्तिक हैं, लेकिन वह ‘कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है..’

जैसी फुसलाने वाली बातों में यकीन नहीं रखते. वह तो एसएमएस, फोन, फैक्स, ईमेल, व्हाट्सऐप और न जाने क्या-क्या करके तुरंत अपना ‘हाल-ए-जार’ दिलदार को बताने के हिमायती हैं. अब यह हो कैसे, इस सोच में मुन्ना इस कदर खोये हुए हैं कि एक पान पूरे सवा घंटे से उनके मुंह में टिका हुआ है. तभी उनका ध्यान भंग हुआ, एक मोमबत्ती जुलूस से, जो पेशावर में मारे गये बच्चों को श्रद्धांजलि देने के लिए निकाला गया था. दाढ़ी-टोपी और हिजाब बता रहे थे कि जुलूस निकालनेवाले मुसलमान हैं. मुन्ना ने पान थूका और पप्पू से मुखातिब हुए, ‘‘अब मियां लोग को बुझाया है. ई बेटा लोग को जब अपने पर पड़ी है तो मोमबत्ती लेकर घूम रहे हैं.’’

रुसवा साहब ने इसे अनसुना कर दिया. पप्पू भी उनकी वजह से अटपटा महसूस कर रहे थे, इसलिए उन्होंने बात मोड़ी, ‘‘मुन्ना भैया आप ई मोमबत्ती-वोमबत्ती छोड़िए और स्वच्छता अभियान पर ध्यान दीजिए. पिछली बार आप झाड़ू लगाये, तो देखे न कितना फोटो छपा. झाड़ू में बहुत दम है. हमरे केजरीवाल जी की तरह आप भी मशहूर हो जायेंगे.’’ केजरीवाल का नाम सुनते ही मुन्ना को पित्ती उछलने लगी, लेकिन वह जवाब देने की जगह खुद से बात करने लगे, ‘‘नहीं, नहीं, अब झाड़ू लगाने से काम नहीं बनने वाला. शाबाशी तो तभी मिल सकती है, जब ‘घर वापसी’ करायी जाये.’’ मुन्ना ने फैसला कर लिया, कचरे की सफाई से बेहतर है कचरा चुननेवालों को खोजना. टीका लगा कर उनकी ‘घर वापसी’ कराओ और मीडिया में छा जाओ. झाड़ू गया तेल लेने..

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