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चेतन को छोड़िए आसपास देखिए

दक्षा वैदकर प्रभात खबर, पटना बिहार के लोगों को लेकर दुनियाभर में कई तरह की बातें होती रही हैं. कभी यहां के महान गुणी लोगों की बात होती है, तो कभी बुरे लोगों की. ताजा विवाद चेतन भगत की किताब ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ को ले कर उठा है. उनके इस उपन्यास में एक ऐसे लड़के की […]

दक्षा वैदकर
प्रभात खबर, पटना
बिहार के लोगों को लेकर दुनियाभर में कई तरह की बातें होती रही हैं. कभी यहां के महान गुणी लोगों की बात होती है, तो कभी बुरे लोगों की. ताजा विवाद चेतन भगत की किताब ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ को ले कर उठा है. उनके इस उपन्यास में एक ऐसे लड़के की कहानी बतायी गयी है, जो बिहार का है और उसकी अंग्रेजी कमजोर है. बिहार में भी यह किताब खूब बिक रही है.
लोग यह जानना चाहते हैं कि चेतन भगत ने हम लोगों की तारीफ में और क्या-क्या लिखा है. एक मित्र ने फेसबुक पर लिखा-‘‘भगत ने हम बिहारियों की कमजोर नस पकड़ ली है और उसी से पैसा बना रहे हैं.’’ दूसरे साथी ने लिखा- ‘‘चेतन भगत जैसा नॉवेल कोई बिहारी जब चाहे लिख सकता है.’’ अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने भी फेसबुक पर लिखा, जो मुझे काफी रोचक लगा. उन्होंने लिखा कि ‘‘चेतन भगत ने किताब में अपने हीरो को अंग्रेजी में खराब दिखाया है, जो बिहार के डुमरांव से आता है. लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि इस देश में पहला अंग्रेजी उपन्यास 1793 में बिहार में भोजपुर के रहनेवाले दीन मोहम्मद ने लिखा है. आप असफल रहे चेतन जी. बिहारियों की अंग्रजी आपकी कल्पना से कहीं बेहतर है.’ इस कमेंट को पढ़ने के बाद हमारे एक साथी ने इंटरनेट पर दीन मोहम्मद के बारे में सर्च की. यह बात सच साबित हुई. साथियों ने गर्व से कहा, ‘‘वाह, यह बात तो हमको पता ही नहीं थी.
अब हमारे पास एक और प्वाइंट हो गया, उन लोगों को जवाब देने के लिए जो हमारी भाषा की बुराई करते हैं.’’ यहां मैं चेतन भगत का पक्ष तो नहीं लूंगी, लेकिन एक बात जरूर कहूंगी कि अगर किसी ने अपने उपन्यास में किसी गांव का जिक्र कर दिया है, तो क्या यह इतनी बड़ी बात हो जाती है? हर राज्य, शहर, गांव में कोई न कोई तो ऐसा होता ही है, जिसकी अंग्रेजी खराब है या जिसके साथ कोई हादसा हो गया है या जिस पर कहानी लिखी जा सकती है. इसे पूरे बिहार की अंग्रेजी का मुद्दा बनाने की क्या जरूरत है?
रही बात अंग्रेजी जानने की, तो पत्रकार के रूप में रिसर्च कर के हम ऐसी कई स्टोरीज छाप चुके हैं जिसमें बिहार के कई छात्रों का चयन बड़ी कंपनियों में भाषा की वजह से नहीं हो पा रहा. यह बात मैं नहीं, बल्कि कैंपस सेलेक्शन में अब तक आयी हजारों कंपनियों के अधिकारियों और कॉलेज के प्रोफेसरों ने कही है. सभी का कहना है कि बहुत कम छात्रों की भाषा (खास कर अंग्रेजी) पर पकड़ अच्छी है. पटना की इंगलिश स्पोकन कोचिंग क्लास के किसी भी शिक्षक से आप पूछ लें, वे भी इससे सहमत मिलेंगे.
हिंदी शिक्षकों से पूछ लें, वे कहेंगे कि यहां के बच्चे हिंदी भी भोजपुरी और मगही अंदाज में बोलते हैं. यह सच है कि बिहारी लोग मेहनती है, कई क्षेत्रों में उन्होंने अलग पहचान बनायी है, लेकिन अगर कहीं थोड़ा पीछे रह जा रहे हैं, तो क्यों न उसे सुधार लिया जाये? सुधार की पहली सीढ़ी होती है, यह स्वीकार करना कि ‘हां, हम में फलां कमी है.’

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