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रामजी का बेड़ा कौन करेगा पार!

सत्य प्रकाश चौधरी प्रभात खबर, रांची बचपन से ही एक भजन सुनता आ रहा हूं- रामजी करेंगे बेड़ा पार.. लेकिन अब हालत यह है कि वह खुद मंझधार में फंस गये हैं. प्रभु राम ‘त्रहि माम-त्रहि माम’ की पुकार लगा रहे हैं, पर भक्त हैं कि फाल्गुनी पाठक के गानों पर गरबा और डांडिया खेल […]

सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
बचपन से ही एक भजन सुनता आ रहा हूं- रामजी करेंगे बेड़ा पार.. लेकिन अब हालत यह है कि वह खुद मंझधार में फंस गये हैं. प्रभु राम ‘त्रहि माम-त्रहि माम’ की पुकार लगा रहे हैं, पर भक्त हैं कि फाल्गुनी पाठक के गानों पर गरबा और डांडिया खेल रहे हैं. वैसे भी जब 40 हजार वाट के साउंड सिस्टम पर मैंने पायल है छनकायी.. बज रहा हो, तो फरियादी की आवाज कहां सुनायी देती है.
कान पायल की छनक में फंसे हुए हैं, तो नैना भी कम दगाबाज नहीं हैं. इस-उस जगह बने टैटुओं से चिपके हुए हैं. रेशमी जुल्फों के पेचो-खम में उलझे हुए हैं. सुरमई अंधेरे में जब बहकता तन-मन हो, पानी की तरह बहता धन हो, तब कौन जाये गरबा की ये गलियां छोड़ कर किसी की पुकार सुनने. खैर, अब बताते हैं कि रामजी का दर्द क्या है.
जिस अवध की सरजमीन पर उन्होंने और उनके पूर्वजों ने राज किया, अब वहां कोई रामलीला करने वाला नहीं मिल रहा है. एकाध जगह हो भी रही है, तो वह रामलीला कम और ‘रंग लीला’ ज्यादा लगती है. फिल्मों की तर्ज पर उसमें आइटम सांग फिट किये जाते हैं. रावण जब-तब दरबार में बैठे-बैठे बोर होने लगता है और ‘नृत्य’ पेश किये जाने का हुक्म देता है. यह नृत्य खास मुंबई के शराबखानों से आयातित है, जिसे ‘बार बाला नृत्य’ कहा जाता है.
रावण मजा ले या न ले, पर दर्शक पूरा मजा लेते हैं. जो हो, रामजी परेशान हैं कि क्यों उनका बाजार भाव गिरता जा रहा है और मां दुर्गा का सेंसेक्स हर साल नयी ऊंचाइयों को छू रहा है. उनके राज्य अवध से लेकर उनकी ससुराल मिथिला तक दुर्गा पूजा का बोलबाला है. घर के साथ ससुरालवालों ने भी धोखा दे दिया है. कभी दरभंगा की रामलीला की पूरी हिंदी पट्टी में धूम रहती थी, सुना है कि अब वहां भी कोई नामलेवा नहीं है. अब वक्त आ गया है कि रामजी हकीकत कबूल कर लें. भई, आज की तारीख में कौन राम बनना चाहेगा? जो आदमी राज-पाट छोड़ पिता के वचन की रक्षा के लिए जंगल-जंगल भटकने चल दे, उसे बछिया का ताऊ नहीं तो और क्या कहा जायेगा? ऐसे आदमी के रास्ते पर कौन चलना चाहेगा!
रामजी, ये जमाना त्याग का नहीं, भोग का है. आज हर किसी को शक्ति चाहिए, भोग के लिए. धनबल, बाहुबल, सत्ताबल के बिना इ लाइफ भी कौनो लाइफ है! दुर्गा के पास शक्ति है, आपके पास क्या है? आपको तो खुद शक्ति पूजा करनी पड़ी थी. निराला जी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ लिख कर सिर्फ आपकी छवि खराब की है. आजकल लड़के-लड़कियां सरस्वती पूजा में भी टूटे रहते हैं. ये न समझ लीजिएगा कि सब ज्ञान के भूखे हैं. भूख तो डॉलर की है, मोटे सैलरी पैकेज की है, सरस्वती मैया तो बस निमित्त मात्र हैं. रामजी, दुकान वही चलती है जिसके माल के लोग खरीदार हों. आपके पास जो माल है, वह पुराना पड़ चुका है, उसे पूछनेवाला कोई नहीं. आप बस ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ होने के मुगालते में जीते रहिए.

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