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ताकि बच्चे बनें जागरूक

शफक महजबीन टिप्पणीकार आजकल लोगों में किताब पढ़ने का शौक पीछे छूट रहा है और उसकी जगह अब स्मार्ट फोन ने ले लिया है. शायद इसीलिए मशहूर अंग्रेजी लेखक चेतन भगत कहते हैं कि मेरा कम्पटीशन लेखकों से नहीं है, बल्कि व्हाॅट्सएप और सोशल मीडिया से है. कुछ लोग तो किताब पढ़ने को वक्त की […]

शफक महजबीन
टिप्पणीकार
आजकल लोगों में किताब पढ़ने का शौक पीछे छूट रहा है और उसकी जगह अब स्मार्ट फोन ने ले लिया है. शायद इसीलिए मशहूर अंग्रेजी लेखक चेतन भगत कहते हैं कि मेरा कम्पटीशन लेखकों से नहीं है, बल्कि व्हाॅट्सएप और सोशल मीडिया से है.
कुछ लोग तो किताब पढ़ने को वक्त की बरबादी तक समझते हैं. जबकि अच्छे विचारों वाली किताबें हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ हमारी शख्सीयत को भी निखारती हैं. एक शोध बतलाता है कि अगर रोजाना सिर्फ तीस मिनट अच्छी किताबें पढ़ी जायें, तो इससे उम्र दराज होती है, क्योंकि एक अच्छी कहानी पढ़ने से दिमाग एक्टिव और टेंशनफ्री रहता है. इससे नींद भी अच्छी आती है और स्वास्थ भी बेहतर रहता है.
हाल में एक खबर आयी है कि जर्मनी में बच्चे किताब पढ़ने के शौकीन हैं और वे मैगजीन पढ़ना भी खूब पसंद करते हैं. दरअसल, उनके माता-पिता, टीचर और बड़े-बुजुर्ग पढ़ने-लिखने को लेकर जागरूक हैं और उन्हें भी इसके लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि जर्मनी के बच्चे सोशल मीडिया से दूर हैं, लेकिन इतना जरूर है कि वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्यादातर स्टडी के लिए करते हैं.
जर्मनी में ही सबसे पहले प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई थी और वहां आज इंटरनेट से भी लोग भारी तादाद में जुड़े हुए हैं. वह देश भारत से ज्यादा आधुनिक होते हुए भी अपनी आधुनिकता और तकनीक का इस्तेमाल फालतू चीजों के लिए नहीं करता, या वहां इसका चलन बहुत कम है.
जर्मनी के बच्चे व्हाॅट्सएप के जरिये सवाल-जवाब करते-समझते हैं और स्टडी मैटेरियल का आदान-प्रदान करते हैं. भद्दे चुटकुलों में उनकी दिलचस्पी कम है. लेकिन, हमारे देश में स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल अफवाह उड़ाने में ज्यादा होता लग रहा है. लोग उल्टे-सीधे मैसेजेज का आदान-प्रदान करते हैं. कभी-कभी तो लड़ाई तक की नौबत आ जाती है. इस तरह उनका ज्यादा वक्त चुटकुले-खुराफात में ही बर्बाद हो जाता है.
जागरूकता की कमी के चलते हमारे देश का किशोर वर्ग तकनीक के अच्छे पहलुओं से इतर जाकर बुरे पहलुओं की तरफ ज्यादा आकर्षित होता है, जिसका असर बहुत नकारात्मक होता है.
ऐसे में हमारे समाज का यह कर्तव्य है कि वह किशोरों को जागरूक बनाये, ताकि वे अपने समय का सदुपयोग ज्ञान बढ़ाने में कर सकें. हमारे बौद्धिकों और तकनीकी विशेषज्ञों को चाहिए कि हर नयी तकनीक को लेकर समाज में जागरूकता लाने का भी काम करें. ताकि, तकनीक के गलत इस्तेमाल से होनेवाले बुरे और नकारात्मक असर से हमारे बच्चे बच सकें. वे खूब किताबें पढ़ें, जगरूक बन सकें और देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें. ऐसी सीख हमें कहीं से भी मिले, तो जरूर लेनी चाहिए.

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