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रोते-रोते हंसना

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार पिछले दिनों काॅलेज में पढ़नेवाले एक लड़के की मां की मृत्यु हो गयी. वह मां के जाने के इस दुख को कैसे सहेगा, यह सोच कर बार-बार उसकी आंखें भरी आ रही थीं. जब उससे मेरी मुलाकात हुई, तो वह दुखी तो था, मगर उसकी आंखों में आंसू नहीं थे. अपनी […]

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

पिछले दिनों काॅलेज में पढ़नेवाले एक लड़के की मां की मृत्यु हो गयी. वह मां के जाने के इस दुख को कैसे सहेगा, यह सोच कर बार-बार उसकी आंखें भरी आ रही थीं. जब उससे मेरी मुलाकात हुई, तो वह दुखी तो था, मगर उसकी आंखों में आंसू नहीं थे. अपनी मां की मृत्यु पर उसे किसी ने रोते नहीं देखा. इसी तरह अरसा पहले एक महिला के पिता की मृत्यु हो गयी और उसके भी पहले एक महिला के पति की. उन दोनों से जब मैं मिली, तो किसी की भी आंख में आंसू नहीं थे.

दुख के वक्त बहनेवाले हमारे आंसू कैसे सूख गये? कहां गये? या कि मरना-जीना अब इतना मामूली हो गया है कि रोने की जरूरत ही नहीं रही!

पहले सुनते थे कि आदमी मजबूत दिल के होते हैं और वे रोते नहीं हैं. बड़े से बड़े दुख को भी वे हंसते हुए झेल जाते हैं. वहीं औरतें बात-बात पर रोती हैं, इसलिए हृदय रोगों की कम शिकार होती हैं.

लेकिन, अब तो औरतें भी बेहद मजबूत हो गयी हैं. वे भी रोती नहीं हैं. साथ काम करनेवाली एक महिला ने बहुत दिन पहले कहा था कि वह कभी किसी के सामने नहीं रोती. आखिर अपनी कमजोरी दूसरे को क्यों दिखाये. दफ्तर या जहां प्रतियोगिता का माहौल हो, वहां तो हो सकता है यह बात ठीक लगे, मगर दुख के मौके पर भी क्या इन दिनों लोग इसलिए नहीं रोते हैं कि कोई उन्हें कमजोर न समझ ले कि हंसनेवाले के साथ दुनिया हंसती है और रोनेवाले के साथ कोई नहीं रोता. इसीलिए दुख के मौके पर भी लोग रोते नहीं, बल्कि हंसते दिखना चाहिए.

आंसुओं को लेकर इस तरह की परिभाषाओं ने क्या हमें मनुष्यता, हमारी कोमल भावनाओं से दूर कर दिया है. रोना और विशेष तौर पर दूसरे के दुख पर रोना एक बेहतरीन अभिव्यक्ति है. कमजोरी नहीं. गला काट प्रतिस्पर्धा जरूर रोने और आंसू बहाने को इस तरह परिभाषित करती है.

रोना सिर्फ मनुष्यों में ही नहीं पशुओं में भी होता है. जब हाथियों का कोई संगी-साथी मर जाता है, तो वे सारे इकट्ठा होकर रोते हैं. कुत्ते के मालिक को कुछ हो जाये, तो वह आंसू बहाता है. कौओं के झुंड से कोई कौआ मर जाये, तो उनका शोक मनाना देख कर आप दंग हो सकते हैं. तो फिर शोक के वक्त के हमारे आंसू कौन छीन ले गया? किसने औरतों को वंडरवुमैन और आदमियों को जेम्स बांड और श्वार्जनेगर बनने को प्रोत्साहित किया? और हम सबके आंसू वैसे ही सूख गये जैसे इन गरमियों में पानी के तमाम स्रोत- कुएं, बावड़ी, तालाब, झरने, नदियां आदि.

महान कवि और लेखक जयशंकर प्रसाद ने तो आंसू नाम से पूरी एक कविता पुस्तक लिख दी थी. आज भी इसके छंद पढ़ना एक अनोखा अनुभव है.

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